यूक्रेन की लड़ाई में फंसे आम लोगों को निकालने के लिए दोनों पक्षों के बीच मानवीय गलियारे पर सहमति कभी बनती है, तो कभी टूट जाती है। दोनों पक्ष एक-दूसरे को इसके लिए जिम्मेदार बता रहे हैं। यह मानवीय गलियारा कैसे काम करता है?
संयुक्त राष्ट्र मानव गलियारे को तात्कालिक रूप से लड़ाई रोकने के तरीकों में से एक मानता है। ये असैन्य क्षेत्र होते हैं, जो एक निश्चित समय के लिए खास इलाके में तय किए जाते है। इस पर लड़ाई में जुटे दोनों पक्षों को सहमत होना पड़ता है।
इन गलियारों का मकसद युद्धग्रस्त क्षेत्र में भोजन, दवाइयों की आपूर्ति या फिर वहां से नागरिकों को सुरक्षित निकालना होता है। ये गलियारे उस वक्त खासतौर से जरूरी हो जाते हैं, जब किसी शहर पर घेरा होता है और उस इलाके में रह रहे लोग बुनियादी जरूरतों जैसे भोजन, पानी या बिजली की सप्लाई से कट जाते है। इसके साथ ही ऐसे इलाके, जहां अंतरराष्ट्रीय युद्ध के कानूनों का उल्लंघन होने की वजह से गंभीर मानवीय संकट पैदा हो जाता है। नागरिक इलाकों में भारी बमबारी इसका एक सटीक उदाहरण है। ऐसे मौकों पर मानवीय गलियारे से काफी मदद मिलती है।
कौन बनाता है ये गलियारे
ज्यादातर मामलों में मानवीय गलियारे पर संयुक्त राष्ट्र समझौता कराता है। कई बार ये स्थानीय सामाजिक गुटों के जरिए भी बनाए जाते हैं। गलियारा बनाने के लिए सभी पक्षों की सहमति जरूरी है, इसलिए इसके सैन्य या फिर राजनीतिक दुरुपयोग की आशंका रहती है। कोई सरकार या पक्ष इस गलियारे के जरिए हथियारों की तस्करी या फिर ईंधन उस शहर में ले जा सकता है, जिसका घेराव किया गया है।
दूसरी तरफ इन गलियारों का इस्तेमाल संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षक, सामाजिक संगठन और पत्रकार भी विवादित इलाके में जाने के लिए कर सकते हैं, जहां युद्ध अपराध होने की आशंका होती है।
यूक्रेन में मानवीय गलियारा
पूर्वी यूक्रेन में शनिवार को पांच घंटे के लिए मानवीय गलियारा शनिवार 5 मार्च को बनाने की बात हुई थी। इसके जरिए मारियोपोल के 2 लाख और वोल्नोवाखा के 15,000 लोगों को बाहर निकाला जाना था। हालांकि, यह कोशिश कुछ ही घंटे बाद नाकाम हो गई। नारियोपोल के शहर प्रशासन का कहना है कि लोगों को निकालने का काम कुछ ही घंटो बाद रोकना पड़ा, क्योंकि रूस के सैनिकों ने शहर और उसके आसपास बमबारी चालू कर दी।
उधर समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक रूस का कहना है कि मारियोपोल और वोल्नोवाखा के पास बनाए गए गलियारे का इस्तेमाल नहीं हुआ। रूस समाचार एजेंसी आरआईए का कहना है कि "राष्ट्रवादियों" ने आमलोगों के बचकर भागने की कोशिश रोक दी और रूसी सैनिकों पर युद्धविराम के दौरान गोलीबारी हुई।
यूक्रेन का यह भी कहना है कि बंदरगाह वाले शहर खेरसॉन में रूस ने गलियारे का वादा पूरा नहीं किया। इसके साथ ही शहर में मानवीय सहायता ले जाने वाली 19 गाड़ियों को भी प्रवेश की अनुमति नहीं मिली। इसके बजाय रूसी लोगों ने अपनी ओर से आम लोगों के लिए मदद भेजने की योजना बनाई। खेरसॉन के मेयर इगोर कोलिखाए ने फेसबुक पर लिखा है, "पहले तो उन्होंने हालात को कठिन बना दिया और उसके बाद वो हमें बचा रहे हैं, ताकि हम अपने 'मददगारों' को कैमरे पर दिखाने के लिए शुक्रिया कह सकें।"
मानवीय गलियारे में कौन जा सकता है?
मानवीय गलियारे में कौन जाएगा, इसका फैसला संघर्ष कर रहे पक्ष तय करते हैं। आमतौर पर इनका नियंत्रण निरपेक्ष एजेंसियों के हाथ में रहता है जैसे कि संयुक्त राष्ट्र या फिर रेड क्रॉस जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन। आमतौर पर यही संगठन इलाके, समय और परिवहन के साधन का फैसला करते हैं। यानी कि बस, ट्रक या विमान में किसे इस गलियारे का इस्तेमाल करने की अनुमति होगी।
कुछ दुर्लभ उदाहण ऐसे भी हैं, जिनमें संघर्ष कर रहे पक्षों में से बस एक ने ही मानव गलियारा बनाने का फैसला लिया हो। 1948-49 में बर्लिन पर सोवियत संघ की घेरेबंदी के समय अमेरिका ने एयरलिफ्ट करने का एकतरफा फैसला किया था।
20वीं सदी के मध्य में कई बार मानव गलियारे का इस्तेमाल किया गया। 1938 से 1939 के बीच हुआ किंडरट्रांसपोर्ट इसका एक बड़ा उदाहण है। इस दौरान नाजी कब्जे वाले इलाकों से यहूदी बच्चों को ब्रिटेन ले जाया गया। 1992-95 के बीच हुई बोस्निया के सरायेवो की घेराबंदी के दौरान भी मानव गलियारा बनाया गया था। इसके अलगावा सीरिया के घूटा से लोगों को निकालने के लिए भी मानवीय गलियारा बना था।
हालांकि, कई बार मानवीय गलियारा बनाने या फिर लड़ाई को कुछ देर रोकने की मांग नहीं मानी गई। यमन में कई सालों से चल रही लड़ाई के दौरान संयुक्त राष्ट्र तमाम कोशिशों के बावजूद इसे हासिल कर पाने में नाकाम ही रहा है।