पिछले कुछ समय में शायद ही कोई ऐसा हफ्ता बीता होगा जब अमेरिका या यूरोप में किसी नई सेमीकंडक्टर फैक्ट्री लगाने की योजना की रिपोर्ट सामने न आयी हो। जर्मनी में, इंफीनियॉन कंपनी ड्रेसडेन में और अमेरिकी चिप निर्माता कंपनी इंटेल माग्डेबुर्ग में नई फैक्ट्री स्थापित करना चाहती है। साथ ही, यह चर्चा भी जोरों पर है कि ताइवान की कंपनी टीएसएमसी भी जर्मनी में नया प्लांट लगाने पर विचार कर रही है।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन पहले ही टीएसएमसी और कोरियाई कंपनी सैमसंग को अमेरिका में अपनी फैक्ट्री स्थापित करने के लिए आकर्षित कर चुके हैं। ये दोनों कंपनियां अमेरिका में अरबों डॉलर की लागत से नया चिप प्लांट स्थापित कर रही हैं।
अमेरिका के प्रति आकर्षित होने की सबसे बड़ी वजह है सब्सिडी। बाइडेन प्रशासन के मुद्रास्फीति कमी अधिनियम के तहत 370 अरब डॉलर के पैकेज की घोषणा की गई है। इसके अलावा, चिप एंड साइंस एक्ट के तहत 280 अरब डॉलर निवेश की योजना है। इसका उद्देश्य सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में अमेरिका को मजबूत करना, अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना और स्थानीय हाई-टेक सेंटर स्थापित करना है।
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या यूरोप की टेक्नोलॉजी कंपनियां लंबे समय तक अमेरिकी सब्सिडी के लालच से दूर रह सकती हैं। क्या 43 अरब यूरो वाला ईयू चिप्स एक्ट अमेरिका की तरह ही यूरोप के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है? इन्हीं अरबों यूरो की मदद से, यूरोप 2030 तक चिप उत्पादन को दोगुना करने और वैश्विक स्तर पर अपनी हिस्सेदारी 20 फीसदी तक बढ़ाने की उम्मीद लगाए बैठा है।
ऑस्ट्रियाई टेक्नोलॉजी ग्रुप एटी एंड एस' के प्रमुख अंद्रेयास ग्यासटनमाया ने हैंडेल्सब्लाट अखबार से शिकायती लहजे में कहा, "यूरोप घोषणा करने में विश्व चैंपियन है, लेकिन उन घोषणाओं को लागू करने में पिछड़ जाता है। यूरोप ने जितनी प्रोत्साहन राशि की घोषणा की है वह वैश्विक स्तर पर हिस्सेदारी बढ़ाने के लिहाज से काफी कम है।”
यूरोप के पास चिप बनाने का पुराना अनुभव
यूरोप में यह डर पहले से ही बना हुआ है कि कई बड़ी कंपनियां ईयू छोड़कर अमेरिका चली जाएंगी। पीडब्ल्यूसी कंसल्टेंसी की रणनीति इकाई स्ट्रैटेजी एंड' के उद्योग विशेषज्ञ मार्कुस ग्लोगर इस डर की बात' को तवज्जो नहीं देते हैं। उनका कहना है कि बार-बार यह आलोचना की जाती है कि यूरोप वैश्विक स्तर पर सिर्फ 10 फीसदी चिप का ही उत्पादन करता है, लेकिन यह ध्यान नहीं रखा जाता है कि इस महाद्वीप में "चिप निर्माण को लेकर बेहतर समझ और पूरी तरह से प्रशिक्षित कार्यबल” भी है।
उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "इस बात को पूरी तरह कम करके आंका गया है। आप कहीं भी फैक्ट्री स्थापित कर सकते हैं, लेकिन वहां काम करने के लिए प्रशिक्षित लोगों की जरूरत होती है। यूरोप में लंबे समय से सेमीकंडक्टर का निर्माण हो रहा है। आपको कई जगहों पर फैक्ट्री में ऐसे लोग मिलेंगे जिन्होंने इस काम का प्रशिक्षण यूरोप में लिया है।”
इसी तरह की एक जगह है इंटर यूनिवर्सिटी माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक सेंटर, जो बेल्जियम के ल्यूवेन में स्थित है। यहां टेक्नोलॉजी के क्षेत्र की दिग्गज कंपनियां एक साथ मिलकर शोध करती हैं। इसी तरह म्यूनिख के आसपास, ड्रेसडेन के पास तथाकथित सिलिकॉन सैक्सनी और फ्रांस के यूनिवर्सिटी टाउन के नाम से मशहूर ग्रेनोबल में सेमीकंडक्टर से जुड़े शोध और निर्माण होते हैं। यहां स्थित सैकड़ों कंपनियां सेमीकंडक्टर के कारोबार से जुड़ी हैं।
यूरोप में न सिर्फ ईयू चिप्स एक्ट है, बल्कि यूरोपीय रिकवरी फंड भी है, जिसने अमेरिकी मुद्रास्फीति कमी अधिनियम के समान लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके तहत 2030 तक वित्तपोषण के लिए ईयू ने 19 खरब यूरो धन की व्यवस्था की है।
यूरोपीय संघ की ओर से सहायता
यूरोपीय संघ के शीर्ष अधिकारियों और विशेषज्ञों ने अभियान चलाया, ताकि यूरोप उच्च गुणवत्ता वाले चिप और सुपरकंप्यूटिंग के क्षेत्र में खुद को स्थापित कर सके। ग्लोगर ने कहा, "उनके लिए आपूर्ति श्रृंखला को सुरक्षित करने की तुलना में डिजिटल संप्रभुता हासिल करना ज्यादा महत्वपूर्ण है। दूसरे शब्दों में कहें, तो अपने डेटा पर ज्यादा नियंत्रण रखना। इसकी वजह यह है कि इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की मदद से देश और समाज जितना ज्यादा डिजिटल होगा, तकनीकी संप्रभुता की गारंटी भी उतनी ही बढ़नी चाहिए।
दुनिया के चार सबसे शक्तिशाली सुपर कंप्यूटरों में से दो पहले से ही यूरोप में हैं। एक इटली के बोलोनया में और दूसरा फिनलैंड में है। इसके अलावा, 2024 तक पहला जर्मन एक्सास्केल सुपरकंप्यूटर यूलिश में काम करना शुरू कर सकता है। 1,000 से ज्यादा पेटाफ्लॉप्स वाले इस सुपरकंप्यूटर को जुपिटर नाम दिया गया है। इस एक कंप्यूटर की काम करने की क्षमता 50 लाख नोटबुक के बराबर होगी। अन्य एक्सास्केल सुपरकंप्यूटर म्यूनिख और स्टुटगार्ट में स्थापित किए जाएंगे।
सिर्फ नगद सब्सिडी ही काफी नहीं
ग्लोगर के मुताबिक, सामान्य धारणा यह है कि कंपनियां पता लगाती हैं कि उन्हें सबसे अधिक सब्सिडी कहां मिलती है, लेकिन यह धारणा पूरी तरह सही नहीं है। वह कहते हैं, "इसके लिए पूरा पारिस्थितिक तंत्र काम करता है। सिर्फ चिप फैक्ट्री का निर्माण करना ही काफी नहीं होता। चिप बनाने के लिए कच्चे माल और शोध की भी जरूरत होती है। साथ ही, कई कंपनियों का नेटवर्क एक साथ मिलकर इस पूरे उद्योग को चलाता है।”
ग्लोगर कहते हैं कि बड़ी तकनीकी कंपनियों में उच्च प्रशिक्षित कर्मचारियों को यूरोप, चीन और अमेरिका में लगभग एक समान वेतन मिलता है। यही कारण है कि "इन लोगों को अपने यहां बनाए रखने के लिए काम करने का बेहतर माहौल उपलब्ध कराना जरूरी होता है।” इस वजह से, कर्मचारियों के लिए यूरोप में अन्य विकल्प होना काफी मायने रखता है।
वह आगे कहते हैं, "जब शीर्ष पदों पर काम करने वाले कर्मचारी अपने परिवार के साथ किसी दूसरे देश या महाद्वीप में जाते हैं, तब उनके लिए यह जानना महत्वपूर्ण होता है कि जिस कंपनी के साथ वे काम शुरू कर रहे हैं उसके अलावा उस क्षेत्र में स्विच करने के लिए कोई अन्य विकल्प मौजूद है या नहीं। यह ऐसा पहलू है जिसे अकसर गंभीरता से नहीं लिया जाता' है।”
ग्लोगर के मुताबिक, काम से जुड़े मामलों में शोध भी मायने रखता है। इस क्षेत्र में यूरोप अब भी सबसे आगे है। उदाहरण के लिए, जर्मनी में फ्राउनहॉफर और मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने इंडस्ट्री 4।0 के विकास की गति तय की। जबकि लाइबिनित्स इंस्टीट्यूट और फेर्डिनांड ब्राउन इंस्टीट्यूट भी शोध को बढ़ावा देने वाले बेहतर संस्थान हैं।
जब भी सेमीकंडक्टर बनाने वाली कंपनियों की बात आती है, तो जर्मनी का नाम उभरकर सामने आता है। ड्रेसडेन के आसपास माइक्रोचिप क्लस्टर सिलिकॉन सैक्सनी में करीब 200 कंपनियां सेमीकंडक्टर के कारोबार में हैं।
आपूर्तिकर्ताओं के लिए इस बुनियादी ढांचे का मतलब यह है कि वे दिनों के बजाय मिनटों में अपनी जरूरत पूरी कर सकते हैं। यह ढांचा इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि सेमीकंडक्टर फैक्ट्री में देरी से कंपनियों को करोड़ों यूरो का नुकसान हो सकता है।
योजनाएं लागू करने की धीमी गति
यूरोप का सेमीकंडक्टर उद्योग कुशल कामगार, अत्याधुनिक अनुसंधान और बेहतर अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के समूह से मिलकर बना है। यूरोप में बेहतर आपूर्तिकर्ता कंपनियां भी हैं, जैसे कि नीदरलैंड्स में एएसएमएल, जर्मन लेंस कंपनी सायस या मशीन टूल और लेजर टेक्नोलॉजी की दिग्गज कंपनी ट्रम्फ।
ग्लोगर ने इन तमाम बातों के निष्कर्ष के तौर पर कहा, "अगर कहीं कुछ कमी है, तो वह है योजनाओं को लागू करने की गति। हमें यूरोप में अपने फैसलों को लागू करने का साहस दिखाना चाहिए और
उन फैसलों पर दृढ़ रहना चाहिए। मुझे लगता है कि जर्मन सरकार और यहां का उद्योग जगत, दोनों निश्चित रूप से इसे हासिल कर सकते हैं।”