हॉली यंग
समुद्र का बढ़ता जलस्तर पूरे विश्व के लिए खतरे की घंटी है, खास तौर पर निचले द्वीपों और तटीय शहरों के लिए। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है और इस समस्या का हल क्या है?
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने हाल ही में टोंगा की यात्रा के दौरान चेतावनी दी, "महासागर उफान पर है।” दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में स्थित यह द्वीपसमूह इस इलाके के उन कई देशों में से एक है जो समुद्र के जलस्तर में वृद्धि की वजह से गंभीर खतरे का सामना कर रहे हैं।
वहीं, निचले द्वीप विशेष रूप से असुरक्षित हैं। दुनिया भर में कई तटीय शहर और वहां रहने वाले समुदाय पहले से ही विनाशकारी बाढ़ और तूफानों से जूझ रहे हैं। इससे जान-माल के नुकसान के साथ-साथ रोजगार और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को लेकर खतरा बढ़ गया है।
कितनी तेजी से बढ़ रहा है समुद्र का स्तर?
20वीं सदी की शुरुआत से लेकर अब तक, पूरी दुनिया में समुद्र का स्तर पिछले 3,000 वर्षों में किसी भी अन्य समयावधि की तुलना में तेजी से बढ़ा है। समय के साथ यह गति और भी तेज होती जा रही है।
1880 से समुद्र के स्तर की निगरानी शुरू की गई। उस समय से समुद्र का स्तर 20 सेंटीमीटर से अधिक बढ़ गया है। इसके बढ़ने की गति हर दशक में और तेज होती जा रही है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार, पूरी दुनिया में समुद्र का औसत स्तर 2023 में रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया।
हालांकि, महासागर की गतिशीलता और पृथ्वी के असमान गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के कारण समुद्र का स्तर पूरी दुनिया में एक समान रुप से नहीं बढ़ रहा है। दक्षिण-पश्चिमी प्रशांत के कुछ क्षेत्रों में, 1993 के बाद से समुद्र का स्तर वैश्विक दर से लगभग दोगुना बढ़ा है। महासागरों का जलस्तर कितनी तेजी से बढ़ेगा, यह पृथ्वी के गर्म होने पर निर्भर करता है। इसका साफ मतलब है कि जैसे-जैसे धरती गर्म होती जाएगी, समुद्र का स्तर बढ़ता जाएगा।
अगर दुनिया पेरिस समझौते के तहत तय की गई तापमान की अधिकतम वृद्धि को 1।5 डिग्री सेल्सियस की सीमा तक रख पाए और 2050 तक नेट जीरो एमिशन यानी शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल कर ले, तो सन 2100 तक पूरी दुनिया में समुद्र का स्तर लगभग 38 सेंटीमीटर और बढ़ेगा।
हालांकि, जलवायु परिवर्तन और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से निपटने के लिए जिस तरह से काम किए जा रहे हैं उसे देखते हुए यह अनुमान लगाया जा रहा है कि सदी के अंत तक वैश्विक स्तर पर तापमान में 2।7 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो सकती है। इसका नतीजा समुद्र के स्तर में करीब 56 सेंटीमीटर की बढ़त के रूप में दिखेगा।
भले ही सुनने में यह महज कुछ सेंटीमीटर ही लग रहा हो, लेकिन इसके असर में बहुत अंतर होगा। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि समुद्र के स्तर का हर 2।5 सेंटीमीटर बढ़ना असल में 2।5 मीटर के नुकसान के बराबर है। इसका मतलब है कि उच्च ज्वार और तूफान की लहरें पहले की तुलना में अधिक ऊंचाई तक पहुंच सकती हैं।
इसी तरह, समुद्र के जलस्तर में हर एक सेंटीमीटर की वृद्धि होने से तटीय बाढ़ के कारण 60 लाख अतिरिक्त लोगों के प्रभावित होने का अनुमान है। चरम स्थिति में, वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इंसानी गतिविधियों के कारण सदी के अंत तक समुद्र का स्तर दो मीटर तक बढ़ सकता है।
क्यों बढ़ रहा है जलस्तर?
समुद्र का जलस्तर वैश्विक तापमान में वृद्धि की वजह से बढ़ रहा है। यह वृद्धि ऊर्जा, उद्योग, परिवहन सहित अन्य गतिविधियों के लिए जीवाश्म ईंधन जलाने से निकलने वाले कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और अन्य उत्सर्जन के कारण हो रही है। इससे समुद्र भी गर्म हो रहा है।
पिछले 50 वर्षों में हमारे समुद्र ने वायुमंडलीय तापमान का लगभग 90 फीसदी हिस्सा अवशोषित कर लिया है। समुद्र के तापमान में वृद्धि की गति पिछले 20 वर्षों में दोगुनी हो गई है। दक्षिण-पश्चिम प्रशांत सागर वैश्विक औसत से तीन गुना अधिक गर्म हो रहा है। 2023 में समुद्र के तापमान ने रिकॉर्ड तोड़ दिए।
जब पानी गर्म होता है, तो थर्मल एक्सपेंशन नामक प्रक्रिया की वजह से इसका आयतन बढ़ता है जिससे पानी की मात्रा बढ़ जाती है। वहीं, जब भूमिगत जल का अधिक दोहन किया जाता है यानी पंप के सहारे निकाला जाता है, तो इस वजह से भी समुद्र में पानी की मात्रा बढ़ सकती है।
बढ़ती गर्मी के कारण बर्फ की चादरों और पर्वतीय ग्लेशियरों का पिघलना समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी की एक मुख्य वजह है। हर साल अंटार्कटिका से औसतन 150 अरब टन और ग्रीनलैंड से 270 अरब टन बर्फ पिघल जाती है।
हाल की वैज्ञानिक रिपोर्टों में जलवायु के टिपिंग पॉइंट' के बारे में भी चिंता जताई गई है। इसमें कहा गया है कि तापमान में 1।5 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि होने पर पूरे ग्रीनलैंड और पश्चिमी अंटार्कटिक बर्फ की चादरें हमेशा के लिए पिघल सकती हैं। इससे समुद्र का स्तर काफी बढ़ सकता है।
दुनिया के कौनसे हिस्से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं?
निचले इलाकों में बसे छोटे द्वीप, जैसे कि फिजी, मालदीव और तुवालु समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण सबसे ज्यादा खतरे का सामना कर रहे हैं। यहां तक कि समुद्र के स्तर में मामूली वृद्धि भी इनके अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर सकती है।
हालांकि, समुद्र के स्तर में वृद्धि से पूरी दुनिया को खतरा है। इसकी वजह यह है कि दुनिया की लगभग 40 फीसदी आबादी तट के पास रहती है। वहीं, करीब 90 करोड़ लोग कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में रहते हैं।
दुनिया भर के तटीय शहरों में पहले ही खारा पानी पहुंच चुका है। वहां रहने वाले लोग खारे पानी, विनाशकारी बाढ़ और तूफान की वजह से होने वाले तटीय कटाव, खेती और मीठे पानी की समस्या से जूझ रहे हैं।
2022 की एक स्टडी के मुताबिक, उष्णकटिबंधीय इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। एशिया में बांग्लादेश, भारत, और चीन खास तौर पर खतरे में हैं। बंदरगाह वाले शहर और ऐसे इलाके जहां नदियां समुद्र से मिलती हैं यानी डेल्टा क्षेत्र सबसे ज्यादा जोखिम में हैं। काहिरा, लागोस, लॉस एंजेलिस, मुंबई, ब्यूनस आयर्स और लंदन जैसे बड़े शहरों पर गंभीर असर पड़ने की आशंका है।
इस समस्या का हल क्या है?
विशेषज्ञों का कहना है कि समुद्र के स्तर में वृद्धि को रोकने का तरीका यह है कि उत्सर्जन को तेजी से कम किया जाए। हालांकि, समुद्र के स्तर में कुछ हद तक वृद्धि होती रहेगी। इसकी वजह यह है कि भले ही दुनिया में कल से ही सभी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बंद कर दिया जाए, लेकिन फिर भी कुछ समय तक समुद्र गर्म रहेगा और बर्फ का पिघलना जारी रहेगा क्योंकि एक बार गर्म होने के बाद धरती को ठंडा होने में समय लगता है।
दुनिया भर के देश कई तरह के उपाय अपना रहे हैं। जैसे, समुद्र के पानी को रिहायशी इलाकों तक पहुंचने से रोकने के लिए दीवारें बनाना, तूफान की लहरों को रोकने के लिए अवरोध बनाना, जल निकासी की व्यवस्था को बेहतर बनाना, बाढ़ से निपटने लायक इमारतें बनाना वगैरह।
वहीं, प्रकृति से सीख लेकर भी कुछ उपाय किए जा रहे हैं। जैसे, सेनेगल के समुद्र तटों पर लकड़ी के खूंटे गाड़कर तटीय कटाव को रोकना या कैमरून में मैंग्रोव वनों को फिर से उगाना। समुद्र के बढ़ते जलस्तर से निपटने के लिए, फिजी में पूरे गांव को ऊंचाई वाली दूसरी जगह पर बसाया गया है। मालदीव में तैरता हुआ शहर बनाया गया है। तुवालु में समुद्र से रेत निकालकर नई जमीन तैयार की गई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि कई विकासशील इलाकों को समुद्र स्तर में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले अन्य परिणामों से निपटने के लिए आर्थिक मदद की जरूरत है।