रिपोर्ट आदित्य शर्मा
कोरोना महामारी के कारण पिछले महीनों में भारत में साइकल की अभूतपूर्व बिक्री हुई है। अधिक से अधिक लोग संक्रमित होने के डर से सार्वजनिक परिवहन से बचने की कोशिश कर रहे हैं।
तरुण गुप्ता की साइकल की दुकान में टेलीफोन पूरे दिन नॉन-स्टॉप बजता रहा है। जब वे ग्राहकों के साथ बात कर रहे होते हैं, तो बाहर लंबी लाइन लग जाती है। वे बताते हैं कि कारोबार फल-फूल रहा है, लेकिन भीड़ मानसिक रूप से थका देती है। दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह भारत ने भी कोरोना महामारी के दौरान साइकल की बिक्री में उछाल देखा है।
हालांकि भारत के अधिकांश शहर साइकल फ्रेंडली नहीं हैं, फिर भी महामारी के दौरान शौकिया साइकल चालकों में तेज वृद्धि देखी गई, क्योंकि लोग लॉकडाउन में घरों में बंद रहने की वजह से पैदा कैबिन फीवर को मात देने की कोशिश कर रहे थे, एक्सरसाइज कर रहे थे या खचाखच भरे सार्वजनिक परिवहन पर यातायात से बच रहे थे।
तरुण गुप्ता और उनके साथी दक्षिणी दिल्ली में 4 साल से हाई-एंड साइकल और कलपुर्जे की दुकान चला रहे हैं। मार्च में भारत में राष्ट्रव्यापी तालाबंदी के दौरान व्यापार को नुकसान हुआ, लेकिन प्रतिबंधों में ढील के बाद से घाटे की बहुत-कुछ भरपाई हो गई है। उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि हर साल मार्च से जून में बिक्री का शिखर होता है। लेकिन पिछले 2 महीनों में बिक्री 5 गुना तक बढ़ गई है। हमने पूरे साल के लिए पर्याप्त कारोबार कर लिया है।
तरुण गुप्ता अभी भी सुबह 11 बजे अपना स्टोर खोलते हैं लेकिन दुकान बंद करने में उन्हें अक्सर देर हो जाती है, क्योंकि ग्राहक आते ही रहते हैं। उन्होंने कहा कि दुकान में रोजाना लगभग 50-60 ग्राहक आते हैं जिनमें से कुछ एक तो साइकल के लिए 50,000 रुपए से अधिक खर्च करने को भी तैयार रहते हैं।
सस्ती साइकल लगभग 4,000 रुपए में आ जाती है। गुप्ता ने कहा कि साइकल उद्योग में इस तरह का उछाल कभी नहीं आया है। यहां तक कि 50 साल से कारोबार कर रहे डीलरों ने भी इस तरह की बिक्री नहीं देखी है। यह अभूतपूर्व है।
भारतीय शहरों में साइक्लिंग समूह
जैसे-जैसे भारतीय सड़कों पर साइकल चालकों की तादाद बढ़ रही है, लोग मुलाकात करने और साथ मिलकर साइक्लिंग करने के लिए सोशल मीडिया पर ग्रुप बनाने लगे हैं। नई दिल्ली निवासी गुरप्रीत सिंह खरबंदा ने जुलाई के शुरू में एक ग्रुप बनाया। इसके 90 सदस्य हो गए हैं जिनमें से करीब 50 नए हैं। लोग महामारी की नीरस दिनचर्या से ब्रेक चाहते थे। उस समय न कोई आउटिंग संभव थी और न ही कोई फिटनेस।
खरबंदा ने डीडब्ल्यू को बताया कि मैं सामुदायिक बॉन्डिंग की भावना पैदा करना चाहता था और अधिक लोगों को सक्रिय होने और स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहता था। यह राइड के दौरान नए लोगों से मिलने का शानदार तरीका है। यह ग्रुप ज्यादातर वीकएंड पर मिलता है और पूरे शहर में सवारी करता है। नई दिल्ली में साइकल चालकों के लिए सबसे लोकप्रिय स्थानों में से एक भारत के राष्ट्रपति भवन के सामने स्थित बुलेवार है।
देश के पूर्वी महानगर कोलकाता में साइकल प्रेमी बाइक लेनों की संख्या बढ़ाने की मांग और लोगों के लिए साइकल के फायदों को बढ़ावा देने के लिए साथ आए हैं। ग्रुप का कहना है कि वे शहर में साइक्लिंग संस्कृति को प्रेरित करना और कोलकाता में साइकल चलाने की बाधाओं को दूर करना चाहते हैं। इस समूह के एक सदस्य और आयोजक शिलादित्य सिन्हा ने कहा कि वे लॉकडाउन शुरू होने के बाद से बहुत से लोगों को साइक्लिंग के खेल में लाने में कामयाब हुए हैं। उनके पास कुछ लोग ऐसे भी आते हैं जिन्होंने पहले कभी बाइक की सवारी नहीं की है। सिन्हा ने डीडब्ल्यू से कहा कि जहां तक कोलकाता का सवाल है, एक स्तर पर साइकल की लोकप्रियता में उछाल अप्रत्याशित है जबकि दूसरे स्तर पर यह हमारी तरफ से समर्पित प्रयास है।
कोलकाता में ज्यादातर सार्वजनिक परिवहन लॉकडाउन के दौरान निलंबित कर दिया गया था। अकेले मेट्रो से ही रोजाना 7,00,000 यात्री सफर करते हैं। सिन्हा ने बताया कि लोगों को अब निजी परिवहन की पहले से कहीं अधिक जरूरत है। ज्यादातर लोग कार या मोटरबाइक नहीं खरीद सकते इसलिए साइकल चलाना अब उनके लिए एकमात्र विकल्प बन गया है। यहां तक कि जो लोग मोटर गाड़ी का खर्च उठा भी सकते हैं, वे भी साइकल चलाना पसंद करने लगे हैं।
भारत के शहरी मामलों के मंत्रालय ने कहा है कि महामारी ने शहरों को पैदल चलने वालों और साइकल चालकों के लिए अधिक सुलभ बनाने का अवसर प्रदान किया है। उसने हर शहर में कम से कम 3 बाजारों को ऑटो फ्री करने और अधिक साइकल लेन बनाने की सिफारिश की है।
शोध फर्म डब्ल्यूआरआई इंडिया में शहरी परिवहन के प्रमुख श्रीकुमार कुमारस्वामी ने कहा कि मौजूदा रुझान से साइकल को शहरी क्षेत्रों में परिवहन का एक वैकल्पिक साधन बनाने में मदद मिल सकती है। कुमारस्वामी ने डीडब्ल्यू को बताया कि वर्तमान में साइकल चलाना गरीब लोगों का विकल्प माना जाता है। इसे युवा और शिक्षित लोगों का फैशन बनाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि इसके लिए सड़क सुरक्षा सुनिश्चित करने और साइकल चलाना आरामदेह बनाने की आवश्यकता है, क्योंकि सुरक्षा चिंताओं के कारण अधिकांश लोग साइकल चलाने से डरते हैं। कुमारस्वामी का कहना है कि खास साइकल लेन और उसे यातायात के दूसरे साधनों से अलग करना जरूरी है कि हमें साइकल को प्राथमिकता देने वाले चौराहे बनाने होंगे, टक्कर की संभावना को कम करना होगा और सुरक्षा को बढ़ाना होगा।
चूंकि लॉकडाउन ने यात्रियों से बड़े शहरों में सार्वजनिक परिवहन के विकल्प छीन लिए थे इसलिए साइकल शहर में आवाजाही का अस्थायी समाधान बन गया। लेकिन चीजें सामान्य होने के बाद सार्वजनिक परिवहन पर नए सिरे से विचार करना होगा। साइकल के इस्तेमाल से शहरों में फर्क पड़ सकता है।
ऐसा कब तक चलेगा?
बढ़ती मांग के बीच आपूर्ति में कमी भारत के बाइक बूम पर ब्रेक लगा सकती है। साइकल निर्माता बड़े पैमाने पर हुई मांग को पूरा करने के लिए तैयार नहीं थे और दुकानों का स्टॉक खत्म हो चला है। गुप्ता ने कहा कि मैं पिछले 4-5 दिनों से ग्राहक खो रहा हूं। मुझे स्टॉक की कमी के कारण कई संभावित ग्राहकों को वापस करना पड़ा है।
उनका कहना है कि भारत-चीन सीमा तनाव के कारण आने वाले महीनों में आपूर्ति श्रृंखला भी प्रभावित होने वाली है, क्योंकि आयातकों को बहुत जांच का सामना करना पड़ रहा है और कस्टम अधिकारी माल क्लीयर करने में देरी कर रहे हैं। हम पिछले 20 दिनों से ताजा स्टॉक का इंतजार कर रहे हैं। भारत में साइकल के बहुत सारे कलपुर्जे चीन या ताईवान से मंगवाए जाते हैं।
और वर्तमान उत्साह के बावजूद इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि साइक्लिंग बूम स्थायी होगा। तरुण गुप्ता कहते हैं कि मेरे कई ग्राहक मुझसे कहते हैं कि वे 1 या 2 महीने के बाद साइकल का इस्तेमाल नहीं करेंगे।