राजधानी दिल्ली को आगरा से जोड़ने वाली यमुना एक्सप्रेस वे पर अक्सर हादसे होते रहते हैं और इसी कारण इसे ‘हादसों की सड़क’ तक कहा जाने लगा।
उत्तर प्रदेश के आगरा में यमुना एक्सप्रेस वे पर आज सुबह हुए भीषण बस हादसे में 29 लोगों की मौत हो गई है और 18 लोग घायल हो गए। लखनऊ से दिल्ली जा रही उत्तर प्रदेश रोडवेज़ की तेज रफ्तार यह बस सुबह करीब पांच बजे आगरा के पास एक नाले में जा गिरी और देखते ही देखते दर्जनों लोग मौत के मुंह में चले गए।
घटना के तत्काल बाद जिला प्रशासन, पुलिस और आस-पास के लोग भी पहुंच गए और सभी घायलों को अस्पताल पहुंचा दिया गया जहां कुछ की हालत गंभीर बनी हुई है। मौके पर पहुंचे आगरा के जिलाधिकारी एनजी रवि कुमार ने पत्रकारों को बताया कि यमुना एक्सप्रेस वे पर यह बस बैरियर तोड़ते हुए नाले में जा गिरी। डीएम के मुताबिक, "दुर्घटना का कारण फिलहाल जो समझ में आ रहा है वो ज्यादा रफ्तार और ड्राइवर को नींद आ जाना है। बाकी अन्य वजहों की जांच की जा रही है।”
मुख्यमंत्री ने दुर्घटना पर गहरा दुख जताते हुए मृतकों के परिवार वालों को पांच-पांच लाख रुपये मुआवजे की घोषणा की है और दुर्घटना की जांच के आदेश दे दिए हैं। प्रदेश के अपर मुख्य सचिव सूचना अवनीश अवस्थी के मुताबिक, "मुख्यमंत्री ने दुर्घटना की जांच परिवहन आयुक्त, आगरा के मंडलायुक्त और महानिरीक्षक की समिति से कराने के निर्देश दिए हैं। जांच समिति चौबीस घंटे के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।”
हादसों की सड़क
राजधानी दिल्ली को आगरा से जोड़ने वाली यमुना एक्सप्रेस वे पर अक्सर हादसे होते रहते हैं और इसी कारण इसे ‘हादसों की सड़क' तक कहा जाने लगा। बताया जा रहा है कि जब से ये सड़क बनी है तब से पांच हजार से ज्यादा हादसे हो चुके हैं जिनमें करीब आठ सौ लोग अपनी जान गँवा चुके हैं। एक अनुमान के मुताबिक यमुना एक्सप्रेस वे पर होने वाले हादसों में हर सप्ताह पंद्रह से बीस लोगों की मौत हो रही हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक हादसे या तो वाहनों की तेज गति के कारण होते हैं या फिर चालक को झपकी या नींद आने की वजह से। ठंड के मौसम में कुहरे के कारण भी कई बार हादसे होते हैं, हालांकि उसके लिए एक्सप्रेस वे पर जगह फॉग लाइट की व्यवस्था की गई है। गर्मी के मौसम में अक्सर वाहनों के टायर फटने की वजह से भी हादसे होते हैं जिसके लिए पूरे एक्सप्रेस वे का कंक्रीट से बने होने को भी जिम्मेदार बताया जा रहा है।
यमुना एक्सप्रेस वे पर वाहनों की गति सीमा की निगरानी के लिए हाईटेक सिस्टम है, तय सीमा से अधिक की गति से चलने वाले वाहनों को कैमरे में कैद कर इसकी रिपोर्ट आरटीओ और एसपी ट्रैफिक कार्यालय में मेल की जाती है। बावजूद इसके, हादसों में कोई कमी नहीं आ रही है।
रोजाना 400 लोगों की मौत
इस एक्सप्रेस वे का निर्माण साल 2012 में हुआ और तब से लेकर अब तक हर साल सैकड़ों हादसे हो चुके हैं। साल 2018 में तो दो सौ से ज्यादा लोग यहां हुए हादसों में अपनी जान गंवा चुके हैं और ऐसा शायद ही कोई साल हो जब सौ लोग हादसों में न मरे हों।
भारत में सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या बेहद चौंकाने वाली है। हर साल सड़क हादसों में हज़ारों लोगों की जानें जाती हैं। सरकार की ओर से संसद में दी गई जानकारी के मुताबिक, साल 2015 से 2017 के बीच सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या हर साल करीब डेढ़ लाख थी। यानी इन तीन वर्षों में औसतन चार सौ लोगों की मौत हर दिन हुई।
सरकार की ओर से यह जवाब एक्सप्रेस वे और हाइवे पर होने वाली सड़क दुर्घटनाओं के संबंध में मांगी गई जानकारी के संदर्भ में दिया गया था। संसद में पेश किया गया सरकार का यह आंकड़ा सभी सड़क मार्गों को शामिल करते हुए दिया गया था जिनमें एक्सप्रेस वे और हाइवे भी शामिल हैं।
सबसे आगे उत्तर प्रदेश
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इन तीन वर्षों में सबसे ज्यादा दुर्घनाएं उत्तर प्रदेश में हुई हैं। उसके बाद तमिलनाडु और फिर महाराष्ट्र का नंबर आता है।
जहां तक यमुना एक्सप्रेस वे का सवाल है तो यहां हादसों का मुख्य कारण तेज रफ्तार है। ऐसा तब है जबकि यहां गाड़ियों की रफ्तार की एक तय सीमा है, वाहनों की गति पर नजर रखने के लिए जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगे हैं और अक्सर पुलिस पेट्रोलिंग भी करती रहती है। दोपहिया वाहनों को लिए हेलमेट अनिवार्य है और ओवरस्पीडिंग पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है लेकिन लोग इन नियम की अनदेखी कर रहे हैं और पुलिस-प्रशासन की लापरवाही भी हादसों के लिए जिम्मेदार है।
यमुना एक्सप्रेस वे नौ अगस्त 2012 को आम नागरिकों के उपयोग के लिए खोला गया था। यह एक्सप्रेस वे यूपी की तत्कालीनी मुख्यमंत्री मायावती का ड्रीम प्रोजेक्ट था। लेकिन शुरुआती वर्षों में ही यह एक्सप्रेस वे हादसों की वजह से चर्चा में आने लगा और अब तक इसमें लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है।