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बृहस्पति का परिभ्रमण

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पं. सुरेन्द्र बिल्लौरे

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चंद्रमा कुंडली के अनुसार जब बृहस्पति परिभ्रमण पर रहते हैं तो किस स्थान पर क्या परिणाम देते हैं एवं उससे क्या लाभ या हानि होती है। आइए जानें-

प्रथम : आर्थिक कष्ट, चिंताएँ घेरती हैं और यात्राएँ होती हैं। रिश्तेदारों से मनमुटाव कराता है।
पृथक से द्वितीय स्थान : घर में खुशी का समावेश होता है। शत्रुओं का नाश कराता है। अविवाहित का विवाह और गृहस्थी वाले के यहाँ बच्चे का जन्म, धनप्राप्ति कराता है अर्थात पूर्ण सुख देता है
तृतीय : धन की कमी कराता है। रिश्तेदारों से कटुता और कार्य में असफलता दिलाता है। यात्रा में नुकसान, बीमारी और स्थान परिवर्तन होता है
चतुर्थ : किसी मित्र या रिश्तेदार से अपमानित कराता है। जातक को गलत कार्य के लिए प्रेरित करता है। साथ ही चोर का भय होता है
पंचम : राजकार्य में सफलता दिलाता है। उच्च अधिकारियों से सम्मान मिलता है। जातक को नए पद की प्राप्ति (पदोन्नति) दिलाता है। बेरोजगार को नौकरी, पुत्र की प्राप्ति होती है। घर में शुभ कार्य होता है। जमीन-जायदाद और अन्य प्रकार के वैभव, विलासिता की वस्तुओं की खरीदी करवाता
षष्ठम : घर में झगड़े करवाता है और कष्ट देता है। रिश्तेदारों से मनमुटाव की स्थिति उत्पन्न होती है। धनहानि, खर्च बढ़ाता है
सप्तम : पारिवारिक खुशियाँ देता है। शादी व नए संबंध कराता है। धन की प्राप्ति देता है। नए विषय का ज्ञान देता है। वाहन सुख तथा बच्चे का जन्म होता है।
अष्टम : अशुभ होता है। घर कलह, शारीरिक कष्ट, मानसिक तनाव आदि कई प्रकार के कष्ट देता है
नवम : जातक को ज्ञानवृद्धि कराता है। कार्य करने की क्षमता बढ़ाता है। यानी कर्म करने की प्रेरणा जगाता है
दशम : बीमारी, धनहानि तथा कष्ट देता है। स्थान परिवर्तन कराता है। जायदाद का नुकसान देता है तथा जीवन कष्टमय कर देता है
एकादश : जीवन में खुशियाँ देता है। पूर्ण तंदुरूस्ती एवं धन की प्राप्ति कराता है। भूमिहीन को भूमि दिलाता है। मकान भी देता है। संतान की प्राप्ति भी कराता है। अविवाहित का विवाह होता है
द्वादश : कष्टप्रद जीवन देता है। मानसिक और शारीरिक तथा बौद्धिक कष्ट देकर तनाव से युक्त कर देता है। इति शुभम।

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