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मिथुन लग्न में सप्तम स्थान

गुरु का शुभ भाव में होना आवश्यक

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पं. अशोक पँवार 'मयंक'

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जिनका मिथुन लग्न है उनके लिए जीवनसाथी हेतु सप्तम भाव के स्वामी गुरु की स्थिति को जानना होगा। चाहे पुरुष हो या स्त्री दोनों के लिए ही सप्तम भाव के स्वामी व दाम्पत्य का कारक शुक्र व सप्तमेश पर पड़ने वाले ग्रहों की दृष्टि सप्तम भाव में बैठे ग्रह व सप्तमेश की स्थिति का अकलन भी आवश्यक है।

सप्तम भाव से संबंधित ग्रहों की दशा-अन्तरदशा बड़ी महत्वपूर्ण होगी। इस लग्न वालों के लिए गुरु का शुभ भाव में होना आवश्यक है। गुरु सप्तम में हो या सप्तम भाव को एकादश, तृतीय या लग्न भाव से दृष्ट होने पर विवाह उत्तम वर या उत्तम कन्या से गुरु के गोचरीय भ्रमण इन्हीं भावों से होने पर होता है। और यदि गुरु की महादशा या शुभ ग्रहों की दशा-अन्तरदशा चलने पर होता है।

सप्तम भाव में शनि हो या सूर्य हो या लग्न में हो तो विवाह देरी से होता है। सप्तमेश नीच का हो या अस्त हो या वक्री हो तो जीवन साथी उत्तम नहीं मिलता या आपस में तनाव रहता है। सप्तम भाव का स्वामी शनि राहु से युति करे तो उसका जीवन साथी मद्यपान, अभक्ष खाद्य का सेवन करने वाला होगा।

सप्तमेश का दशम में होना उत्तम रहेगा, यहाँ से गुरु पंचम दृष्टि से धनभाव को देखने से धन की उत्तम स्थिति को दर्शाता है व वाणी से भी मीठा बनाता है। गुरु की सप्तम दृष्टि चतुर्थ भाव पर सम पड़ने से पारिवारिक सुख उत्तम रहता है। गुरु यहाँ से षष्ट भाव को देखने से कुल दीपक योग भी बनता है।

कहने का तात्पर्य यह है कि जीवन साथी उत्तम हो तो घर-गृहस्थी की नैया पार समझो, नहीं तो सब गड़बड़ रहता है। अतः जीवन साथी के लिए गुरु का शुभ होना ही इस लग्न वालों के लिए ठीक रहेगा। अब शुक्र की बात करें तो इस लग्न वालों के लिए पंचमेश व द्वादशेश होगा। इसकी शुभ स्थिति विद्याअर्जन के लिए उत्तम होती है। वहीं दाम्पत्य जीवन के लिए भी शुभ फलदायी रहती है।

शुक्र उच्च का होना या स्वराशि का होना या नवम भाव में होना दाम्पत्य जीवन के लिए शुभ रहता है। सप्तमेश किसी भी सूरत में शनि-मंगल से दृष्ट न हो न ही इनकी युति में हो। इस प्रकार मिथुन लग्न वालों के लिए उपरोक्त स्थितियाँ उत्तम रहेंगी।

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