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वृषभ लग्न में सूर्य-गुरु की युति

द्वादश भाव में बनाती है विदेश यात्रा के योग

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पं. अशोक पँवार 'मयंक'

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सूर्य वृषभ लग्न में चतुर्थ भाव का स्वामी होगा जो जनता, भूमि, भवन, माता, कुर्सी, स्थानीय राजनीति भाव का स्वामी होगा। गुरु अष्टम भाव का स्वामी होकर एकादशेश भी होगा। गुरु अष्टम आयु, गुप्त रोग, मृत्यु, यश वही एकादशेश होने से आय के बारे में देखा जाता है।

सूर्य गुरु की युति लग्न में हो तो ऐसा जातक अपने जीवनसाथी से लाभ पाता है लेकिन स्वयं के लिए लाभदायक नहीं रहता। स्वास्थ्य पर विपरीत असर डालता है, स्वप्रयत्नों से थोडी़-बहुत आय होती रहती है।

सूर्य गुरु यदि द्वितीय भाव में हो तो सूर्य मित्र राशि का व गुरु सम होने से माता से लाभ पाने वाला होगा। आय के क्षेत्र में भी सफलता पाने वाला होगा। कुटुंब के व्यक्तियों का सहयोग मिलता है। वाणी से भी लाभ देता है, ऐसा जातक वाकपटु होता है।

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सूर्य गुरु यदि द्वितीय भाव में हों तो गुरु उच्च का होगा वहीं सूर्य सम होने से माता से कम लाभ रहेगा। वहीं सुख के मामलों में कुछ कमी महसूस होती है। गुरु के उच्च का होने से आर्थिक मामलों में ईमानदारी से लाभ पाने वाला होता है। भाग्य के मामलों में कुछ कमी महसूस होती है।

दाम्पत्य जीवन ठीक रहता है, अपने जीवन साथी से अच्छी सफलता मिलती है। सूर्य-गुरु चतुर्थ भाव में हों तो ऐसा जातक माता, भूमि, जनता के कार्य मे सफलता पाने वाला होता है। स्थानीय राजनीति में सफलता मिलती है। आयु के मामलों में उत्तम स्थिति रहती है। बाहरी संबंधों से सहयोग व लाभ पाने वाला होता है। सूर्य-गुरु यदि पंचम भाव में हों तो विद्या के मामले में अच्छी सफलता पाने वाला होता है, आर्थिक लाभ भी अपने विवेक से लाभ पाने वाला होता है। किसी भी क्षेत्र में ऐसा जातक सफल होता है।

सूर्य-गुरु षष्ट भाव में हों तो सूर्य नीच का होगा वहीं गुरु शुक्र की शत्रु राशि में होने से आर्थिक मामलों मे एवं सुख में कमी महसूस होती है। माता के स्वास्थ्य में भी कमी रहती है। बाहरी संबंध अच्छे रहते हैं।

सूर्य-गुरु की स्थिति सप्तम में हो तो अपने जीवनसाथी से सहयोग पाने वाला होता है, भाइयों मित्रों से सहयोग पाने वाला होता है। स्वयं का स्वास्थ्य कुछ ठीक नहीं रहता। सूर्य-गुरु अष्टम में हों तो आय के मामलों में कमी महसूस होती है। सुख में भी कुछ कमी रहती है, आयु ठीक रहती है। शेयर बाजार में हों तो सावधानी रखें। सूर्य-गुरु की स्थिति नवम में हो तो भाग्योन्नति में बाधा रहती है। मित्रों, भाइयों से सहयोग रहता है। आय में कमी रहती है।

सूर्य-गुरु दशम में होने से माता से लाभ रहता है, आर्थिक मामलों में कुछ कमी के साथ लाभ रहता है। सूर्य-गुरु की स्थिति एकादश भाव में होने से आर्थिक मामलों में लाभ रहता है, पराक्रम में वृद्धि होती है, मित्रों तथा जीवनसाथी से भी सहयोग मिलता है। माता से भी लाभ रहता है। सूर्य-गुरु द्वादश भाव में हों तो बाहर से लाभ पाने वाला होता है। आयु उत्तम होती है, विदेश यात्रा के योग बनते हैं।

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