दाम्पत्य जीवन तभी सही चलता है जब एक-दूसरे में सही तालमेल हो अन्यथा जीवन नश्वर ही समझो। दाम्पत्य की गाडी़ सही चले इसके लिए अपने जीवनसाथी का स्वभाव व व्यवहार के साथ वाणी भी अच्छी होना चाहिए। वहीं पति को भी अपनी पत्नी के प्रति सजग व वफादार होना चाहिए।
कई बार दाम्पत्य जीवन आर्थिक दृष्टिकोण की वजह से, अन्य संबंधों के चलते भी टूट जाता है। शंका भी दाम्पत्य जीवन में दरार का कारण बनती है। कभी-कभी पारिवारिक तालमेल का अभाव भी एक कारण बनता है। इन सबके लिए सप्तम भाव, लग्न, चतुर्थ, पंचम भाव के साथ-साथ शुक्र-शनि-मंगल का संबंध भी महत्वपूर्ण माना गया है। चतुर्थ भाव में यदि शनि सिंह राशि का हो या मंगल की मेष या वृश्चिक राशि का हो या राहु के साथ हो तो पारिवारिक जीवन कलहपूर्ण रहता है।
शनि-मंगल का दृष्टी संबंध हो या युति हो तो भी पारिवारिक जीवन नष्ट होता है। कोई भी नीच का ग्रह हो तब भी पारिवारिक कलह का कारण बनता है। यदि ऐसी स्थिति हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को जमीन में गाड़ देवें। लग्न का स्वामी नीच का हो या लग्न में कोई नीच ग्रह हो तो वह जातक को बुरी प्रवृति का बना देता है।
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लग्न का स्वामी शनि मंगल से पीडि़त नहीं होना चाहिए। पंचम भाव प्रेम व सन्तान का होता है यदि यह भाव शनि-मंगल के साथ हो या दृष्टि संबंध रखता हो तो उस जातक के जीवन में सन्तान का अभाव या सन्तान से पीडा़ रहती है व उसके जीवन में प्रेम का अभाव रह सकता है। सप्तम भाव जीवनसाथी का होता है, इस भाव का स्वामी राहु से पीडि़त हो तो दाम्पत्य जीवन बाधित रहेगा। इस भाव में भावेश के साथ शनि-मंगल हो तो द्वितीय विवाह होता है या दाम्पत्य जीवन में बाधा रहती है।
सप्तमेश एक घर पीछे यानी (छठवें भाव) सप्तम से द्वादश होगा ऐसी स्थिति भी बाधा का कारण बनती है। यदि ऐसी स्थिति किसी की पत्रिका में हो तो वे उससे संबंधित वस्तु को एक दिन अपने पास रखकर सोए एवं किसी स्वच्छ जमीन में या श्मशान भूमि में गाड़ दें। शुक्र कला, प्रेम, दाम्पत्य का कारक नीच का हो, अस्त हो या वक्री हो तो दाम्पत्य जीवन में बाधा रहती है। लग्न में मंगल हो व शनि सप्तम भावस्थ हो तो निश्चित बाधा का कारण बनता है। सप्तमेश अष्टम में होना भी कष्टकारी रहता है। शुक्र सूर्य से अस्त हो या सूर्य-बुध के साथ शुक्र का होना भी ठीक नहीं रहता।
लग्न में सूर्य या सप्तम में शनि या सूर्य हो तो विवाह में बाधा का कारण बनता है। सप्तम भाव के एक घर पीछे व एक घर आगे क्रूर ग्रह का होना भी ठीक नहीं रहता। नीच का गुरु भी ठीक फल नहीं देता, गुरु के साथ राहु का होना भी कहीं ना कहीं कष्टकारी बनता ही है। शुक्र मंगल की राशि में हो व मंगल शुक्र की राशि में हो तो उस जातक का चरित्र संदिग्ध रहता है। इस कारण दाम्पत्य जीवन में बाधा रहती है।