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जानें कालसर्प दोषयुक्त कुंडली !

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हमें फॉलो करें कालसर्प दोषयुक्त कुंडली
- पं. सुरेश आर. शर्मा

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ज्योतिष शास्त्र में बहुचर्चित योग कालसर्प योग है। सामान्य परिभाषा के अनुसार राहु-केतु के एक सीध में रेखा खींचने के बाद यदि सभी ग्रह एक ओर हों तो जन्मकुंडली में कालसर्प योग का सृजन होता है। इसके अलावा भी बहुत सारी बातों का विचार करके कालसर्प योग का निर्णय करना चाहिए। वास्तव में राहु-केतु छाया ग्रह हैं। उनकी अपनी कोई दृष्टि नहीं है। राहु का नक्षत्र भरणी और केतु का आश्लेषा है। राहु के नक्षत्र भरणी के देवता काल हैं और केतु नक्षत्र आश्लेषा के देवता सर्प हैं।

राहु-केतु के जो फलित मिलते हैं, उनको राहु-केतु के नक्षत्र देवताओं के नामों से जोड़कर कालसर्प योग कहा जाए तो यह अशास्त्रीय नहीं माना जाएगा। प्रकृति कुछ कहना चाहती है, ग्रह एवं तारों के माध्यम से जन्मकुंडली में कुछ योगों का प्रादुर्भाव होता है। कई बार देखा जाता है कि जन्मकुंडली राजयोग कारक है या कुंडली में श्रेष्ठ ग्रहों का योग है, फिर भी जातक को वांछित फल प्राप्त नहीं होता है। इस प्रश्न का उत्तर वृहत पाराशर होरा शास्त्र में मिलता है। इस शास्त्र के अनुसार कुछ कुंडलियों में कालसर्प योग बनता है। इस योग के लिए कहा गया है कि

अग्रे वा चेत पृष्ठतो प्रत्येक पाश्वें भाताष्ट के राहु केत्वोन खेट योग प्रोक्ता सर्पश्च तस्मिन जीतो जीतः व्यर्थ पुयर्ति पीयात।

राहु-केतु मध्य राहु-केतु सप्ते विघ्ना हा कालसर्प सारिकः सुतयासादि सकला दोषा रोगेन प्रवासे चरणं धुव्रम।

कालसर्प योगस्थ विष विषाक्त जीवणे, भयावह, पुनः पुनराधि शोकं योषने, रोगान्ताधिक पूर्व जन्म कृतं पापं ब्रह्म शापात सुतक्षयः किंचिंत धुव्रम।

प्रेतादि ब्रह्म वशं सुखं सौख्यं विनिष्याति भौरवाष्टक प्रयोगेन काल सर्पादि भयं विनिश्यति

उपरोक्त श्लोकों के अनुसार कुंडली में कालसर्प योग का सृजन होता है। कल्याण वर्मा ने अपनी बहुमूल्य रचना 'सारावली' में सर्पदोष की विशद व्याख्या की है। इसमें मुख्य रूप से 14 शापों का विवरण मिला है, उसमें से भी प्रमुख शाप- पितृ शाप, प्रेत शाप, ब्राह्मण शाप, मातुल शाप, पत्नी शाप, मातृ शाप, सहोदर शाप एवं सर्प शाप प्रमुख हैं। विभिन्न ग्रहों की विशेष स्थितियों से ये योग कुंडली में परिलक्षित होते हैं।

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राहु-केतु की विभिन्न स्थितियों से कालसर्प योग को केवल मान्य ही नहीं किया गया अपितु कालसर्प योग शांति के जातक के लिए जनन शांति बताया है। जैन ज्योतिष के कालसर्प योग को जैसे सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण के समय जो स्थिति पैदा होती है, वही स्थिति कालसर्प योग के कारण जातक जन्मांग में होती है। कालसर्प योग सर्वसाधारण रूप में किसी ने भी अच्छा नहीं माना है।

लक्षण : इस योग के कारण जातक को सपने में सर्प दिखना, मंदिर दिखना, पानी दिखना, अपने आपको उड़ते हुए देखना, अपने परिवार के सदस्यों के लिए बुरा देखना, पितृश्वर दिखना मुख्य है।

प्रभाव : कालसर्प योग जिसकी जन्मकुंडली में होता है, ऐसे व्यक्ति को अपने जीवन में काफी संघर्ष करना पड़ता है। इच्छित और प्राप्त होने वाली प्रगति में रुकावटें आती हैं। बहुत ही विलंब से यश प्राप्त होता है। मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक त्रिविध रूप से व्यक्ति परेशान रहता है। इसके प्रभाव मुख्य रूप से इस प्रकार होते हैं-

* घर-परिवार-बिरादरी में जातकों को अपनी मेहनत का पूरा फल नहीं मिलता। आर्थिक उन्नति में बाधा, बरकत न होना।
* घर-परिवार-बिरादरी में सभी सदस्यों में आपसी विचारों में तालमेल की कमी।
* घर-परिवार-बिरादरी में सामान्य से अधिक दवाइयों पर खर्च अर्थात अधिक शारीरिक तकलीफें।

कालसर्प योग की कुंडली धारण करने वाले जातक का भाग्य प्रवाह राहु-केतु अवरुद्ध करते हैं। इस कारण जातक की उन्नति नहीं होती। उसे कामकाज नहीं मिलता। कामकाज मिल भी जाए तो उसमें अनंत अड़चनें आती हैं। परिणामस्वरूप उसे अपनी जीवनचर्या चलाना भी मुश्किल हो जाता है। उसका विवाह हो भी जाए तो संतान सुख में बाधा आती है। वैवाहिक जीवन में कटुता और अलगाव की स्थिति बनी रहती है। कर्ज का बोझ उसके सिर पर रहता है और उसे अनेक प्रकार के दुःख भोगने पड़ते हैं।

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