...तो विपरीत राजयोग होगा
मकर लग्न : गुरु-सूर्य में राशि परिवर्तन
मकर लग्न में गुरु तृतीयेश भाई, पराक्रम, साझेदारी, संचार, शत्रु व द्वादश होने से व्यय भाव का स्वामी होगा। सूर्य अष्टम भाव का स्वामी होगा, अष्टम भाव आयु, गुप्त विद्या, गुप्त रोगादि का कारक होगा। इस लग्न में गुरु का लग्नस्थ होना स्वयं के लिए ठीक नहीं रहता। उसकी सारी मेहनत बेकार जाती है। बाहर से भी नुकसान में रहता है।
यही स्थिति यदि दशम में हो तो उसे व्यापार में घाटा, नौकरी में परेशानी, पिता से अनबन जैसी घटनाओं से गुजरना पड़ता है। गुरु द्वितीय भाव में हो व सूर्य अष्टम में स्वराशि का होने से आयु उत्तम होगी लेकिन गुरु का फल ठीक नहीं मिलेगा।
गुरु तृतीय भाव में हो व सूर्य नवम में हो तो ऐसा जातक अपने पराक्रम से लाभ पाने वाला होता है। यहाँ पर सूर्य को अष्टम दोष नहीं लगता। तृतीय भाव में गुरु-सूर्य साथ होने पर शत्रुओं पर प्रभाव रहता है व साझेदारी में भी प्रभाव बना रहता है। भाइयों से सहयोग भी उत्तम रहता है।
गुरु-सूर्य चतुर्थ भाव में साथ-साथ हो तो ऐसा जातक काफी परेशानियों के बाद पारिवारिक सुख पाता है। गुरु सप्तम भाव में हो तो उस जातक का जीवनसाथी सद्गुणी रहता है, धर्म-कर्म को मानने वाला भी होता है।
गुरु-सूर्य एक साथ एकादश भाव में हो तो आय के क्षेत्र में बाधा आती रहती है, लेकिन काम नहीं रुकता। गुरु अष्टम में हो व सूर्य द्वादश में हो तो विपरीत व राशि परिवर्तन राजयोग होने से ऐसा जातक अच्छी सफलता पाता है।
वो अपने जीवन में हर प्रकार का सुख भोगता है। गुरु की उत्तम स्थिति मीन, कर्क, वृश्चिक में ठीक रहती है। सूर्य इस लग्न में कहीं भी ठीक नहीं रहता।