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हस्तरेखा विज्ञान बहुत प्राचीन है

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- पं. दयानन्द शास्त्री

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हस्तरेखा विज्ञान बहुत प्राचीन विज्ञान है। किसी भी व्यक्ति के हाथ के गहन अध्ययन द्वारा उस व्यक्ति के भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालों के बारे में आसानी से बताया जा सकता है। हस्तरेखा में अँगुलियों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है। अँगुलियों के द्वारा व्यक्ति का पूरी तरह एक्स-रे किया जा सकता है।

अँगुलियाँ छोटी-बड़ी, मोटी-पतली, टेढ़ी-मेढ़ी, गाँठ वाली तथा बिना गाँठ वाली कई प्रकार की होती हैं। प्रत्येक अँगुली तीन भागों में बँटी होती है, जिन्हें पोर कहते हैं। पहली अँगुली को तर्जनी, दूसरी अँगुली को मध्यमा, तीसरी अँगुली को अनामिका तथा चौथी अँगुली को कनिष्ठा कहा जाता है। ये अँगुलियाँ क्रमशः बृहस्पति, शनि, सूर्य तथा बुध के पर्वतों पर आधारित होती हैं।

प्रत्येक अँगुली की अलग-अलग परीक्षा की जाती है। लम्बाई के हिसाब से अधिक लम्बी अँगुलियों वाला व्यक्ति दूसरे के काम में हस्तक्षेप अधिक करता है। लम्बी और पतली अँगुलियों वाला व्यक्ति चतुर तथा नीतिज्ञ होता है। छोटी अँगुलियों वाला व्यक्ति अधिक समझदार होता है। बहुत छोटी अँगुलियों वाला व्यक्ति सुस्त, स्वार्थी तथा क्रूर प्रवृति का होता है। जिस व्यक्ति की पहली अँगुली यानी अँगूठे के पास वाली अँगुली बहुत बड़ी होती है वह व्यक्ति तानाशाही अर्थात् लोगों पर अपनी बातें थोपने वाला होता है।

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यदि अँगुलियों मिलाने पर तर्जनी और मध्यमा के बीच छेद हो तो व्यक्ति को 35 वर्ष की उम्र तक धन की कमी रहती है। यदि मध्यमा और अनामिका के बीच छिद्र हो तो व्यक्ति को जीवन के मध्य भाग में धन की कमी रहती है। अनामिका और कनिष्का के बीच छिद्र बुढ़ापे में निर्धनता का सूचक है। जिस व्यक्ति की कनिष्ठा अँगुली छोटी तथा टेड़ी-मेड़ी हो तो वह व्यक्ति जल्दबाज तथा बेईमान होता है।

यदि अँगुलियों के अग्र भाग नुकीले हों और अंगुलियों में गाँठ दिखाई न दे तो व्यक्ति कला और साहित्य का प्रेमी तथा धार्मिक विचारों वाला होता है। काम करने की क्षमता इनमें कम होती है। सांसारिक दृष्टि से ये निकम्मे होते हैं।

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