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आधुनिक युग का श्रवण : कैलाश

जीवन के रंगमंच से...

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जनकसिंह झाला

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गुजरात ी एक अद्वितीय लोक-रचना है कि 'भूलो भले बीजु बधु पण माँ बाप ने भूल सो नहीं.. अगनित छे उपकार ऎना ए कदी बिशरसो नहीं' अर्थात इस दुनिया में अगर आप गलती से सब कुछ भूल जाए फिर भी अपने माता-पिता को न भूलें। जिन दुखों को उन्होंने आपके लिए झेला है, जो कष्ट उन्होंने आपके लिए उठाए हैं, खुद भूखे रहकर जिन्होंने आपका पेट भरा है उनके प्रति हमेशा समर्पित रहें।

लेकिन अफसोस आजकल की संतान माता-पिता के प्रति अपने कर्तव्य को भूलकर उन्हें वृद्धाश्रम भेजने की‍ फिराक में ज्यादा रहती है।

रामायण में एक पौराणिक पात्र उल्लेख किया है जिसका नाम श्रवणकुमार था। कहा जाता है कि श्रवण ने अपना पुत्रधर्म अच्छे से निभाया। अपने माता-पिता के प्रति खुद के कर्तव्य का अच्छे से पालन किया। अपने अंधे माता-पिता को एक छोटे से कावड़ में लेकर उनको चार-धाम की यात्रा करवाई थी।

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आज के इस कलयुग में ऎसे श्रवण कुमारों की तो महज हम कल्पना ही कर सकते हैं। कभी-कभी लगता है कि क्या इस कलयुग में अभी तक कोई ऎसा श्रवण कुमार पैदा नहीं हुआ जो अपने माता-पिता के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर दे। लेकिन नहीं एक शख्स ऎसा है जिसे आप 'आधुनिक युग का श्रवण' कह सकते हैं।

जबलपुर के इस नौजवान शख्स ने रामायण के श्रवणकुमार के पात्र को इस आधुनिक युग में जीवंत कर दिखाया है। अपनी दृष्टिहीन माता को एक छोटे से कावड़ में बैठाकर उन्हें बद्रीनाथ के दर्शन हेतु ले गया। कई महीनों की कठिन यात्रा के बाद जब ‍विगत बुधवार को बद्रीनाथ के कपाट खुले तब वहाँ मौजूद हजारों भक्तजनों की भीड़ में कैलाशकुमार भी शामिल था।

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गढ़वाल प्रदेश में 10,274 फुट की ऊँचाई पर स्थित तीर्थस्थल तक पहुँचने के लिए कैलाश कुमार अपने घर से अपनी माता को कावड़ में बैठाकर नंगे पैर चलकर भगवान के द्वार तक पहुँचा था। बद्रीनाथ पहुँचते-पहुँचते उसे चार महीनों का समय लगा। कैलाश के पैरों में छाले पड़ गए और खून भी निकल आया लेकिन उसने अपनी यात्रा को मंजिल तक जारी रखा।

कैलाश की इस मातृ-भक्ति को केदारनाथ कमेटी के चेयरमैन अनुसूया प्रसाद ने भी खूब सराहा। उनका कहना था कि बद्रीनाथ दर्शन के लिए यहाँ पर हर साल हजारों की तादाद में यात्री आते हैं लेकिन कैलाशकुमार एक ऐसा यात्री है जो अपनी नेत्रहीन माता को कावड़ में उठाकर यहाँ तक पहुँचा है। ऎसा यात्री आज से पहले कभी भी यहाँ पर नहीं आया।'

कैलाश के साहस और समर्पण को नमन!

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