आपने कभी सोचा है यदि व्यक्ति का नाम ही नहीं होता, तो उसे पहचानना कितना मुश्किल हो जाता। हमारे मन में तो उसकी छवि रहती, लेकिन हमें किसी और को उसके बारे में बताना हो, तो कितनी मुश्किल आती?लेकिन सिर्फ नाम ले लेना ही काफी नहीं होता, सही जगह सही नाम से पुकारना भी महत्वपूर्ण होता है। मेरा एक दोस्त है, उसका नाम है प्रकाश। ऑफिस में उसे प्रकाश सर कहते हैं, और घर में उसे पकिया। सोचो अब यदि उसे ऑफिस में लोग पकिया और घर में प्रकाश सर कहने लगे, तो उसका तो पूरा रोल ही बदल जाएगा।हम कुछ प्रसिद्ध लोगों के नाम से इतने प्रभावित हो जाते हैं कि यदि वे अपना नाम बदल दें तो उस व्यक्ति को स्वीकार करना मुश्किल हो जाता है। मान लो यदि ऐश्वर्या शादी के बाद अपना नाम बदलकर संगीता रख लेती तब भी क्या आप उसे उतना ही पसंद करते? क्या अमिताभ और शाहरुख के नाम उनके व्यक्तित्व को और वृहद्द नहीं करते?
उसी तरह टीवी पर कुछ टॉक शो नाम से चलते हैं ‘कॉफी विद करण’ या ‘रेंडेज़ू विद सिमी ग्रेवाल’, ‘ऑपेरा विंफ्रे शो’ जो सिर्फ उस कार्यक्रम को ही नहीं उसके संचालक को भी एक पहचान देता है।
नाम के पीछे की गई इतनी लंबी-चौड़ी बहस के पीछे सिर्फ एक ही संदेश है कि यदि आपको अपने संवाद को प्रभावशाली बनाना है, तो जिससे आप बात कर रहे हैं उसे उसकी उम्र, ओहदा, आपके साथ उसके संबंध, परिस्थिति के अनुसार सम्बोधित कीजिए। बातचीत के दौरान व्यक्ति का नाम लेने से आप सामने वाले को आपकी बात ध्यान से सुनने के लिए बाध्य करते हैं।
सिर्फ बातचीत के दौरान ही नहीं यदि आप अपनी कोई किताब, कहानी, कविता या किसी लेख को नाम देते हैं, तो उसे ऐसा नाम दीजिए जो लोगों को उसे पढ़ने पर मजबूर करें।
हमारे पड़ोस में एक नया घर बन रहा है, वहाँ जो परिवार रहने आया है, उसमें चार भाई हैं। उन्होंने उस घर को नाम दिया है “रामायण”। मुझे उस नाम ने बहुत प्रभावित किया।
यदि आप भी किसी व्यक्ति या अन्य वस्तु के नाम से बहुत प्रभावित हुए हों, तो हमें बताएँ....