रात तेरी याद का चाँद खिला
चाँदनी को आँगन में फैला आई हूँ
जैसे तन के जंगलों से गुजरकर
मन के घर रहने आई हूँ
ढूँढने निकली थी जंगलों में
दास्तां के दरख्त को
जब लबों से लगाया तो लगा
खामोशी के पेड़ से
कोई हर्फ तोड लाई हूँ
इंतजार के बादलों का रूख बदल दिया,
विरहा के सिंधु को खाली कर दिया
लेकिन तेरी सूखी आँखों में
मैं आँसू बनकर छलक आई हूँ
क्षितिज में डूबते सूरज को
किस्मत के बुझते दिये में उडेल दिया है
जैसे तू खाली सी जगह हो गया
जिसमें मैं भर आई हूँ।