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ट्रैफिक जाम

जीवन के रंगमंच से...

हमें फॉलो करें ट्रैफिक जाम

शैफाली शर्मा

KaptanND
आपने कभी वह दृश्य देखा है जब किसी छोटी-सी लापरवाही के कारण रास्ते पर बड़ा-सा जाम लग जाता है? ऐसे में जो पतली-सी साइकिल पर सवार होता है, वह तो आराम से रास्ता बना लेता है। कुछ नहीं तो उस साइकिल को सिर पर उठाकर भी निकल सकता है।

जो बाइक पर या स्कूटर पर होते हैं, वे भी टेढ़ी-मेढ़ी गलियों से गुजरकर बच निकलते हैं, लेकिन जो कार में बैठा होता है, वह बेचारा तब तक वहीं अटका रह जाता है, जब तक कि रास्ता पूरी तरह से साफ नहीं हो जाता। और जो बड़ी-सी बस में बैठे होते हैं, उनका हाल तो और भी बुरा होता है। एक तो इतनी बड़ी बस, ऊपर से इतनी सारी सवारियाँ।

आपको नहीं लगता जीवन में जब सारी परेशानियाँ एक साथ आ जाती हैं, तब भी ऐसा ही एक जाम हमारे दिमाग में लग जाता है। हर परेशानी अपनी-अपनी ‘सवार’ पर आती है और उस ‘जा’ में अटक जाती है। यहाँ सवारी और कुछ नहीं हमारा इगो होता है। इगो जितना छोटा होगा, परेशानी को निकलने में उतनी ही आसानी होगी।
  आपने कभी वह दृश्य देखा है जब किसी छोटी-सी लापरवाही के कारण रास्ते पर बड़ा-सा जाम लग जाता है? ऐसे में जो पतली-सी साइकिल पर सवार होता है, वह तो आराम से रास्ता बना लेता है। कुछ नहीं तो उस साइकिल को सिर पर उठाकर भी निकल सकता है।      


अब सोचिए जिसका इगो कार में बैठे व्यक्ति जैसा होगा, तो वह तब तक वहीं अटका रहेगा जब तक सारी परेशानियाँ खत्म न हो जाएँ। और जिस परेशानी में बहुत सारे लोग शामिल हों तब व्यक्ति उस बस के ड्राइवर के समान हो जाता है, जिसे उस परेशानी में शामिल सब लोगों को सुरक्षित निकालना होता है

दोस्ती या प्यार का इगो साइकिल पर सवार होता है, बहुत जल्दी अपना रास्ता बना लेता है। यही नहीं कई बार तो साइकिल को वहीं छोड़ मस्त हाथ में हाथ डाले अपनी राह पर निकल पड़ते हैं। आपने भी देखा होगा किसी कार्ड पर दोस्ती या प्यार का सिम्बॉल दर्शाना होता है, तो एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए दो लोगों को किसी पगडंडी पर चलते हुए बताते हैं, किसी कार या बस में बैठे हुए नहीं।

पारिवारिक इगो स्कूटर या बाइक पर सवार होते हैं। साथ में बैठे बच्चों का वास्ता देकर अपना रास्ता कहीं न कहीं से निकाल ही लेते हैं। ऑफिस का इगो कार में सवार होता है। जब तक जाम नहीं हटेगा महाशय वहीं अटके रहते हैं।

क्या आप बता सकते हैं, कौन-सा इगो बस पर सवार रहता है? जी हाँ, समाज और देश को लेकर जब मुश्किलें आती हैं, तो हमारा इगो इतना बड़ा हो जाता है कि हम उस बस के ड्राइवर के समान हो जाते हैं। ऐसे में क्या हम सच में उसमें सवार यात्रियों को सुरक्षित निकाल लाते हैं? या जरा-सी अफवाह के कारण उस बस को ही जला डालते हैं? बिना यह सोचे कि एक जलती हुई बस का धुआँ केवल समाज या देश पर ही नहीं, इनसानियत पर भी कालिख लगा जाता है।

जहाँ बहुत सारे लोग और बहुत सारे लोगों की बहुत सारी परेशानियाँ होती हैं, वहाँ आए दिन ट्रैफिक जाम लगा ही रहता है। हम भी तो भीड़वाली जगह अपनी कार के बजाय टू व्हीलर पर जाना पसंद करते हैं। तो जहाँ रास्ते छोटे और भीड़ ज्यादा हो वहाँ क्यों न हम अपनी साइकिल पर जाएँ। हाँ, स्टेटस वाली बात जरूर मन में आएगी, लेकिन ट्रैफिक जाम में से सबसे पहले निकलने वाले व्यक्ति भी तो आप ही होंगे।

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