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मुझे दुनिया के उजास में आने दो...!

- स्मृति आदित्य

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(पिछले दिनों यह खबर सुर्खियों में रही कि गर्भ परीक्षण के दौरान यदि कन्या का भ्रूण हो तो ‘जय माता दी’ कहकर संकेत दिया जाता है और बालक भ्रूण का संकेत 'जयश्री कृष्ण' कहकर दिया जाता है। यह कोडवर्ड बेशर्म समाज में ईश्वर के नाम पर रखे गए हैं। इसी पर मुखातिब है आपसे एक 'कन्या भ्रूण' अपने मार्मिक और ज्वलंत सवालों को लेकर।)

* मैं एक भ्रूण हूँ। अभी मेरा कोई अस्तित्व नहीं। मैं प्राकृतिक रूप से सृष्टि को आगे बढ़ाने का दायित्व लेकर अपनी माँ की कोख में आई हूँ। अब आप पहचान गए होंगे कि मैं सिर्फ भ्रूण नहीं बल्कि कन्या भ्रूण हूँ। बालक भ्रूण होती तो गर्भ परीक्षण के बाद मुझे पहचाने जाने का स्वागत होता 'जय श्री कृष्ण' के पवित्र सांकेतिक शब्द के साथ।

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मगर मैं तो कन्या भ्रूण हूँ ना, मेरे लिए भी कितना पावन सांकेतिक शब्द है 'जय माता दी'। पर नहीं मेरे लिए यह शब्द खुशियों की घंटियाँ नहीं बजाता, जयकारे का उल्लास नहीं देता। क्योंकि इस 'शब्द' के पीछे 'लाल' खून की स्याही से लिखा एक 'काला' सच है जिससे लिखी जाती है मेरी मौत।

कैसी घोर विडंबना है ना जिस देवी को स्मरण कर मुझे पहचाना जाता है, उसे तो घर-घर सादर साग्रह बुलाया जाता है। और मैं उसी का स्वरूप, उसी का प्रतिरूप, मुझे इस खूबसूरत दुनिया में अपनी कच्ची कोमल आँखे खोलने से पहले ही कितनी कठोरता से कुचला जाता है। क्यों ????

आप लोग सक्षम हैं, समर्थ हैं निर्णय ले सकते हैं। मेरी क्या बिसात कि मैं अपना भविष्य तय कर सकूँ। अभी तो मेरे अंग भी गुलाबी और कमजोर है। बस एक नन्हा, मासूम, छुटकू सा दिल धड़कता है मेरा, यह देखने के लिए कि कौन है मेरा सृजक? किसके प्रयासों से मैंने आकार लिया? किसकी मातृत्व की अमृत बूँदें मेरे पोषण के लिए बेताब है?

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ओह, यह सिर्फ और सिर्फ मेरी ही कोरी भावुकता है। कन्या भ्रूण हूँ ना, भावुक होने का गुण नैसर्गिक रूप से मुझे ही तो मिला है। जिन सृजकों से मिलने के लिए मैं हुलस रही हूँ वे नहीं चाहते कि मैं अब और अधिक पनपूँ, पल्लवित होऊँ। नहीं चाहते कि नौ महीने बाद गर्भ की अंधेरी दुनिया से बाहर आकर उनकी दुनिया की रंगीन चमक देखूँ, परिवार के सपनों में खुशी और ख्याति के सुनहरे रंग भरूँ।

बालक भ्रूण की तरह उन्हीं का अंश हूं, उतना ही प्यारा हूँ फिर भी बेगाना हूँ। क्योंकि मैं कन्या भ्रूण हूँ। खुद के अस्तित्व के मिटने से कहीं ज्यादा दुख, बल्कि 'आश्चर्यमिश्रित दुख' इस बात का है कि मेरी हत्या के लिए 'जय माता दी' जैसा ‍दिव्य उच्चारण करते हुए भी नहीं काँपती है जुबान? एक बार भी याद नहीं आती है 'माँ' के सच्चे दरबार की जहाँ पूरी धार्मिकता और आस्था के सैलाब के साथ दिल से निकलता है ‘जय माता दी’?

वही जयकारा कैसे एक संकेत बन गया मेरी देह को नष्ट करने के अपवित्र संकल्प का। जिसने भी पहली बार मेरे आकार को तोड़ने और मेरी ही माँ की कोख से मुझे बेघर करने के लिए यह प्रयोग किया होगा कितना क्रूर होगा ना वह? मेरे जैसी कितनी मेरी बहनें दुनिया में आने से पहले कच्ची ही एक अनजान दुनिया में लौटा दी जाती है। उस दुनिया में जहाँ जाने से खुद इंसान भी डरता है। फिर मैं तो भ्रूण हूँ, सलोना और सुकोमल। नाजुक और नर्म।

आपको पता है, केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2001-05 के बीच करीब 6,82,000 कन्या भ्रूण की हत्या हुई है। इन चार सालों में रोजाना 1800 से 1900 कन्या भ्रूण की हत्या हुई है। आपको तो पता होगा, आप ही ने तो की है और करवाई है।

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मैं चीखती रहती हूँ, तड़पती रहती हूँ लेकिन कोई नहीं सुनता मेरी चित्कार। मुझे मांस का एक टुकड़ा समझ कर निर्ममता से निकाल दिया जाता है मेरी ही माँ के गर्भ से। माँ से क्या शिकायत करूँ वह तो खुद बेबस सी पड़ी रहती है जब उसकी देह से मुझको उठाया जाता है। यही तो शिकायत है मेरी माँ से। जब मुझे इस दुनिया में लाने का साहस ही नहीं तुममें तो क्यों बनती हो सृजन की भागीदार।

तुम्हें भी तो किसी ने जन्मा होगा ना? तभी तो आज तुम मुझे कोख में ला सकी हो। सोचों माँ, अगर उन्होंने भी ना आने दिया होता तब? नौ दिन तक छोटी-छोटी कन्याओं को पूजने वाली माँ अपनी ही संतान को नौ माह नहीं रखती क्यों, क्योंकि वह कन्या भ्रूण है?

आईपीसी की धारा 313 में स्त्री की सम्मति के बिना गर्भपात करवाने वाले के बारे में कहा गया है कि इस प्रकार से गर्भपात करवाने वाले को आजीवन कारावास या जुर्माने से भी दंडित किया जा सकता है। इन कानूनों के नाम पर मैं किसे डरा रही हूँ? उन्हें, जो ईश्वर से भी नहीं डरते और 'जय माता दी' कहकर 'देवी' का नाम मेरी मौत से जोड़कर कलंकित करते हैं?

अगली बार जब किसी नन्ही आत्मा को पहचाने जाने के लिए तुम बोलो ‘जय माता दी’ तो मेरी कामना है कि तुम्हारी जुबान लड़खड़ा जाए, तुम यह पवित्र शब्द बोल ही ना पाओ, देवी माँ करे, नवरात्रि में तुम्हारी हर पूजा व्यर्थ चली जाए... और आँकड़े यूँ ही बढ़ते रहे तो तुम्हारे हर ‘पाप’ पर मेरे सौ-सौ ‘शाप’ लगे। मेरी अनसुनी मत करो, मुझे दुनिया के उजास में आने दो...! हाँ, मैं कन्या भ्रूण हूँ, मुझे भी खुले आकाश तले गुनगुनाने दो..!

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