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जीवन के रंगमंच से...

रिश्तों की जमीन पर

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शैफाली शर्मा

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रिश्तों की जमीन पर जब भी कोई नया फूल खिलता है, उसकी सुगंध चारों ओर से हमें घेरे रहती है। मन की पतंग न जाने किस डोर से बँध जाती है, जो उसे एक ही दिशा में उड़ाए रखती है। आँखों की चंचल नदिया की हर लहर मानो किनारे पर बैठे ख़्वाब को सौंधी माटी की तरह महका देती है। उस एक रिश्ते की खुशबू सारे रिश्तों को अपने आगोश में ले लेती है

क्या ऐसा ही कुछ नहीं होता आपके साथ, जब किसी से प्रेम हो जाता है या किसी नए दोस्त का जीवन में आगमन होता है या जब किसी नए मेहमान के आने की खुशखबरी मिलती है या कोई ऐसा रिश्ता बनता है, जिसका आपको ताउम्र इंतज़ार रहा हो। रिश्ता चाहे जो हो, यदि दिल की गहराई को छू गया हो तो ऐसा ही कुछ अनुभव होता है।

लेकिन आनंद के कुछ चुनिंदा पलों से सजाकर रखा हुआ कच्ची कली-सा रिश्ता कब तक जीवन को महका सकता है? एक दिन ऐसा आता है जब बाकी सारे रिश्तों की मजबूत डोर उस रिश्ते की डोर को उलझा देती है। नए पुराने रिश्तों की जद्दोजहद में या तो सारे रिश्ते उलझ जाते हैं या व्यक्ति खुद उलझकर रह जाता है। ऐसा कभी आपके जीवन में भी हुआ होगा। क्या आपको याद है उस समय आपने क्या किया?

ऐसे में क्या हिम्मत हारकर निराशा के बादलों को खुद पर बरस जाने देते हैं? या फिर हरेक रिश्ते को अपने यथा स्तर पर रखकर उन रिश्तों को प्राथमिकता देते हैं, जो सबसे नाजुक होते हैं? या उन रिश्तों को महत्व दिया जाता है, जो दूर तक साथ देने वाले होते हैं?
  रिश्तों की जमीन पर जब भी कोई नया फूल खिलता है, उसकी सुगंध चारों ओर से हमें घेरे रहती है। मन की पतंग न जाने किस डोर से बँध जाती है, जो उसे एक ही दिशा में उड़ाए रखती है।      


जीवन में जब भी ऐसे मोड़ आएँ अपने अनुभवों को जरूर याद रखें। वे आपके मार्गदर्शक होते हैं, फिर अपनी ही आँखों में उन रिश्तों की गहराई नापें। रिश्ता जितना गहरा होता है, आँखों में उतनी ही ज्यादा चमक और नमी छोड़ जाता है। जो लोग स्वविवेक का अर्थ जानते हैं, वे उन सारे रिश्तों को संभाल लेते हैं, लेकिन जो लोग भावनाओं के भँवर में उलझे हुए रहते हैं, वे किसी भी रिश्ते को तिनका बनाकर सतह पर आ जाते हैं। वे इस बात से अनजान रहते हैं कि कोई भी रिश्ता कितना भी बड़ा हो तब तक ही साथ देगा जब तक आप उसे साथ रखेंगे। जब आप उस पर सवार हो जाएंगे, तो एक समय बाद वह सहारा भी छूट जाएगा।

और वो रिश्ता ही क्या जिसमें जुदाई की कोई कहानी न जुड़ी हो, जिसे अपना दामन समाज के लांछनों से ही नहीं खुद की बेनीयती से भी बचाकर रखा हो, जिस रिश्ते ने किसी भी अग्नि परीक्षा को पार न किया हो, जो पवित्रता की आग में जलकर कुंदन न हुआ हो। और वो रिश्ता ही क्या जिसने अपनी मर्यादा को उतने ही पवित्र मन से अपने हृदय में न रखा हो, जैसे कोई अपनी श्रद्धा का दीया प्रभु के समक्ष रखता है।

रिश्तों की जमीन पर चाहे जितने फूल खिलें, यदि उसे यथा स्तर पर रखकर, समय-समय पर अपनेपन की गर्माहट के साथ, आजादी के ठंडे झोंकों का आनंद भी देते रहें, तो जीवन की बगिया में कभी पतझड़ का मौसम नहीं आएगा। आप उसे जब भी स्पर्श करेंगे उसकी ओस की बूँदें आपके हाथों में ही नहीं, आँखों में भी नमी छोड़ जाएँगी।

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