Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

फासला...

जीवन के रंगमंच से...

हमें फॉलो करें फासला...

शैफाली शर्मा

ND
आपने कभी सुबह-सुबह किसी सुंदर से फूल पर आई ओस की बूँदों को देखा है? आपने कभी किसी बच्चे को खिलखिलाते हुए हँसते देखा है? आपने कभी किसी माँ को अपने बच्चे को दूध पिलाते हुए देखा है? आपने कभी मंदिर में जलते हुए दीये को ध्यान से देखा है? आपने कभी खुद को आईने में देखा है?

अरे! ये क्या? बाकी सवाल तो ठीक लेकिन शायद आपको आखिरी सवाल समझ नहीं आया? इन सवालों को सुंदरता से दार्शनिकता की ओर न ले जाते हुए सिर्फ इतना ही पूछना चाहूँगी कि जो आनंद फूल की सुंदरता देखने में या बच्चे को खिलखिलाते हुए हँसता देखने में आता है, क्या वही आनंद आपने खुद को आईने में देखकर कभी अनुभव किया है?

मैंने अकसर बच्चों को आईने के सामने खड़े होकर खुद से बतियाते हुए, झगड़ते हुए और हँसते हुए देखा है। हम भी उन छोटे बच्चों से कम नहीं। अपनी ही निर्मित बातों से हम खुश भी हो जाते हैं, परेशान भी। अंतर्द्वंद्व में फँसे विचारों के मामूली-से धागे का मंथन कर उसे बड़ी-सी गाँठ बना लेते हैं। खुद परेशान होते हैं, औरों को भी उसमें शामिल कर लेते हैं, फिर अपनी ही बनाई हुई दु:ख की गठरी को पीठ पर लादे जीवन एक बोझ का नारा लगाते हैं।
  आपने कभी सुबह-सुबह किसी सुंदर से फूल पर आई ओस की बूँदों को देखा है? आपने कभी किसी बच्चे को खिलखिलाते हुए हँसते देखा है? आपने कभी किसी माँ को अपने बच्चे को दूध पिलाते हुए देखा है? आपने कभी मंदिर में जलते हुए दीये को ध्यान से देखा है?      


हाँ, जानती हूँ, बड़े-बड़े साधु-महात्मा, दार्शनिक लोग यही कह गए हैं, सुख के पीछे मत भागो, वह तो आपके भीतर ही छुपा है। यह मृगतृष्णा तुम पर ही आकर खत्म होगी। मैं कौन-सा कुछ नया कहने वाली हूँ? और सच भी है कि मैं कुछ नया नहीं कहने वाली क्योंकि सुख और दु:ख से परे जीवन ने कोई नया शब्द खोजा ही नहीं। परंतु सुख के अनुभव और दु:ख के अनुभव के बीच जो फासला है, क्या आपने कभी उस पर चलकर देखा है?

ऐसा क्यों होता है कि जब हम खुश होते हैं, तो खुद को ब्रह्मांड के शीर्ष पर खड़ा पाते हैं, परंतु जब दु:खी होते हैं, तो बिलकुल पाताल के नीचे धँस जाते है। है ना एक-लम्बा सा फासला, सुख के अनुभव और दु:ख के अनुभव के बीच? तभी तो सुख के शीर्ष से दु:ख के पाताल में जाने के लिए सिर्फ एक छलाँग लगाने की जरूरत पड़ती है, लेकिन जब दु:ख के पाताल से सुख के शीर्ष पर जाना हो, तो एक कठिन चढ़ाई चढ़ने की ज़रूरत पड़ती है।

कहने को कुछ नया नहीं है, बस जरूरत है तो नए तरीके को खोजने की कि कैसे सुख और दु:ख के बीच के इस लम्बे-से फासले को कम किया जाए?

और वह आखिरी सवाल इस फासले को कम करनका एक तरीका भी तो हो सकता है क्योंकि मैं जानती हूँ कि एक साधारण से साधारण व्यक्ति भी जब आईने के सामने खड़ा होता है, तो वह उसके लिए सबसे बड़ा आनंद का पल होता है। वह सबसे पहले अपने बाल बनाता है, चेहरे को ध्यान से देखता है कि मैं व्यवस्थित हूँ या नहीं? मैं किस एंगल से सबसे अच्छा दिखता हूँ? मेरे चेहरे पर अभी भी उतनी ही ऊर्जा है या नहीं, जितनी पहले हुआ करती थी? और यदि आसपास कोई नहीं है, तो खुद को ही एक प्यारी-सी मुस्कान देता है। और जहाँ तक मेरा विचार है किसी भी व्यक्ति के लिए सबसे अधिक आनंद का पल यही होता है, जब वह दुनिया से नजर चुराकर खुद से मिलता है।

तरीका जो भी हो, जिसने जीवन की इन दो सचाइयों के बीच का फासला कम कर लिया, वह मानो तराजू के उस काँटे के समान हो गया, जो जरा-सा भी इधर या उधर हुआ तो सुख और दु:ख के पलड़े डगमगाने लगेंगे। यानी चाहे दु:ख आए या सुख आए, यदि मन स्थिर है, तो सारे फासले कम हो जाते हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi