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शब्दों का शोर

जीवन के रंगमंच से...

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शैफाली शर्मा

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आपने कहानियों और कविताओं की कक्षा में शब्दों को अकसर शोर मचाते हुए देखा होगा, लेकिन क्या आपने किसी शिक्षक की अनुपस्थिति में उन्हें अनुशासित देखा है?

अगर अनुशासित देखा भी हो, तो वो लेखन में बहुत अच्छे हों, ये जरूरी नहीं। कई बार दिया हुआ काम समझ में नहीं आ रहा हो तब भी कक्षा में चारों ओर शांति दिखाई देती है। कई बार तो शब्दों को बहुत कुछ आता है, लेकिन पास वाला क्या लिख रहा है ये जानने की उत्सुकता में खुद कुछ नहीं लिख पाता। बस कक्षा में इधर-उधर घूमता नजर आता है। फिर क्या, जैसे ही किसी शिक्षक की नजर पड़ी कि शब्द को सजा मिल जाती है, अपनी ही जगह पर मुँह पर उँगली बाँधे बैठे रहना पड़ता है।

शायद कुछ लोगों को इस विद्यालय के बारे में पता न हो, जहाँ कहानियों और कविताओं की कक्षा में शब्द पढ़ना-लिखना सीखते हैं। हाँ, उन लोगों को जरूर पता होगा, जो इन कक्षाओं को पास कर आगे पढ़ने के लिए किसी अखबार या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पास गए और फिर मीडिया की बढ़ती प्रतियोगिता के बीच..........छोड़िए चुगली क्या करना....
  हम अकसर विचारों की नदिया में आए तूफन के शांत होने से पहले ही कागज की नाव को कलम के चप्पू से जितनी जल्दी हो सके नदी पार करवाने की कोशिश करने लगते हैं। फिर क्या, नदी पार होने से पहले ही नाव डूब जाती है।      


हाँ, तो हम बात कर रहे हैं उन शब्दों की जो अनुशासित होते हैं, तो किसी साहित्यिक या सामयिक पन्नों पर अपनी छाप छोड़ जाते हैं और जो कितने भी डंडे खा लें फिर भी अनुशासित नहीं हो पाते, वो किसी पर्सनल डायरी के पन्नों पर कोई अतृप्त कविता या कहानी के रूप में दम तोड़ देते हैं।

दिल की भड़ास निकालने का एक ही जरिया होता है, वो है शब्दों को खुला छोड़ देना। जैसे चाहे, जहाँ चाहे घूमते रहें और शोर मचाते रहें। क्या ऐसा कभी हुआ है कि किसी व्यवस्था से असंतुष्ट होकर या मन की बेहाली से खीजकर हम हमारे अंदर से उठ रहे तूफान को पहले शांत करते हैं, फिर किसी कागज की नाव में बैठाकर विचारों की नदिया पार करवाते हैं?

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हम अकसर विचारों की नदिया में आए तूफान के शांत होने से पहले ही कागज की नाव को कलम के चप्पू से जितनी जल्दी हो सके नदी पार करवाने की कोशिश करने लगते हैं। फिर क्या, नदी पार होने से पहले ही नाव डूब जाती है।

यदि विचारों की नदी को पूरी तरह से पार करना है, तो तूफान के शांत होने का इंतजार कीजिए, शब्दों को धीमे-धीमे बात करने दीजिए, उन्हें थोड़ा-सा अनुशासित कीजिए फिर देखिए कैसे वो लेखन की दुनिया में आपका नाम रोशन करते हैं।


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