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सेहत का राज, आपके पास

जीवन के रंगमंच से

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जनकसिंह झाला

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आज हम सभी लोग विश्व स्वास्थ्य दिवस मना रहे हैं। कोई व्यक्ति अपने आपको अस्वस्थ नहीं मानत। अगर रास्ते पर चल रहे किसी भी शख्स से आप पूछेंगे कि आप कैसे हैं? वह बीमार होते हुए भी आपको कभी अस्वस्थ नहीं बताएगा। वह हमेशा अपने आपको स्वस्थ दिखाने का एक फर्जी प्रयास करेगा। वह कहेगा कि मैं एकदम फिट हूँ। मेरा स्वास्थ्य अच्छा ह। वह डरता है कि उसकी अस्वस्थता के बारे में अगर सामने वाले को मालूम हो गया तो वह उसकी नजर में कमजोर साबित हो जाएगा! वैसे इस झूठ बोलने का एक दूसरा कारण यह भी हो सकता है वह शख्स शायद 'स्वास्थ्य' और 'स्वस्थ काया' का सही अर्थ न जानता हो!

आज दुनिया के कई शख्स सही मायने में 'स्वास्थ्य' का अर्थ नहीं जानते। आप किसी डॉक्टर से जाकर पूछे कि स्वास्थ्य क्या है? तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि वह नहीं बता सकेगा।

'स्वास्थ्य' पर ही तो हमारा सारा मेडिकल साइंस खड़ा है सारा जीवन उसी पर निर्भर है और एक डॉक्टर नहीं बता सकता कि 'स्वास्थ्य' क्या है। डॉक्टर बीमारियों के बारे में बता सकते है कि बीमारी क्या है, उनके लक्षण क्या है, एक-एक बीमारी की अलग-अलग परिभाषा उन्हें पता है लेकिन स्वास्थ्य? उसका किसी को कुछ पता नहीं है।

जिस स्वास्थ्य बारे में हमारे महात्माओं ने ग्रंथों में लिखा है। सर्वोत्तम सुख व समृद्धि का कारक बताया है वही स्वास्थ्य आज बढ़ते शहरीकरण, प्रदूषण व बदलती जीवनशैली के कारण आमजन से कोसों दूर चला गया है। इसी स्वास्थ्य को ढूँढने के लिए आज का मनुष्य न जाने क्या-क्या कर रहा है। वह हर दिन अस्पताल के चक्कर काटता है, झोलाछाप डॉक्टरों से महँगी दवाएँ खरीदता है। सुबह जल्दी उठकर नामीगिरामी योग बाबाओं के प्रवचन सुनता है लेकिन अफसोस फिर भी उसे वह स्वास्थ्य नहीं मिल पा रहा। यह खोज निरंतर जारी है।

कहावत है ना कि 'घर में छोरा और नगर में ढिंढोरा' बिलकुल वैसे ही स्वास्थ्य हमारे भीतर ही है, उसे कहीं बाहर ढूँढने ी जरूरत नहीं। चूँकि वह हमारे भीतर से आता है इसलिए उसकी कोई निश्चित परिभाषा नहीं दी जा सकती। स्वास्थ्य का अर्थ हमारा सुयोग्य, सुंदर और नियमित जीवन है।

जो धूम्रपान करता है, संतुलित आहार से परहेज करता है, सॉफ्ट ड्रिंक्स व अल्कोहल का सेवन करता है उससे सेहत मित्रता नहीं करती।

सेहत ने अनियमित जीवन जीने वालों को कई बार चेताया कि संतुलित आहार, योग, कसरत व ध्यान को अपनाओं लेकिन फास्ट फूड कल्चर का शिकार युवा सेहत की बात उपेक्षित करता रहा। नतीजा,आज हर आदमी अपने साथ एक मोटी तोंद साथ उठाकर चलता है।

थक हारकर अब सब अपने परम मित्र 'स्वास्थ्य' की खोज में निकले है। आखिर कोई तो बताएँ इन्हें कि जो भीतर बसा है उसे बाहर कैसे खोजा जा सकता है?

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