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हौसलों के पंख पर

जीवन के रंगमंच से...

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शैफाली शर्मा

ND
हौसलों के पंख होते हैं, पैर नहीं। वो जब ठन जाता है, तो कोई आसमान उसकी पकड़ से बच नहीं सकता। एक ऐसे ही हौसले को मैंने आसमान की बुलंदी को छूते हुए देखा है। एक पैर की मोरनी को मैंने सावन में झूमते हुए देखा है। कोई फर्क नहीं पड़ता वह 12 साल पहले प्रदर्शित फिल्म “नाचे मयूर” की मयूरी है या टीवी सीरियल में अपने नाम से बढ़कर जिसे अपने रोल रमोला सिकंद के नाम से जाना जाता हो। उसने “झलक दिखला ज” में अपनी प्रतिभा की एक ही झलक से लोगों को मोहित किया है

जी हाँ, आपने ठीक पहचाना वो एक पैर की मयूरी सुधा चंद्रन है। जो जितनी अपनी नृत्य प्रतिभा के बारे में जानी जाती है, उतनी ही मुश्किलों के आगे जीवन में लक्ष्य को खोज निकालने के लिए

सुधा चंद्रन ने उम्र के पाँचवे साल में नृत्य सीखना शुरू किया था और सातवे साल से स्टेज प्रोग्राम। उम्र के सोलहवे साल तक नृत्य में डूबी रहने वाली इस नृत्यांगना का जीवन एक प्रश्नचिह्न बन गया, जब उन्होंने एक दुर्घटना में अपना एक पैर खो दिया।
  कोई फर्क नहीं पड़ता वह 12 साल पहले प्रदर्शित फिल्म “नाचे मयूरी” की मयूरी है या टीवी सीरियल में अपने नाम से बढ़कर जिसे अपने रोल रमोला सिकंद के नाम से जाना जाता हो। उसने “झलक दिखला जा” में अपनी प्रतिभा की एक ही झलक से लोगों को मोहित किया है।      


कोई और होता तो शायद जीवन के इस प्रश्न का जवाब दिए बिना हार मान लेता, लेकिन सुधा चंद्रन ने किस्मत के आगे घुटने नहीं टेके और 'जयपुर फुट' के जनक, हड्डी रोग विशेषज्ञ और मैगसायसाय व पद्मश्री अवॉर्ड से सम्मानित डॉ. प्रमोद करण सेठी, से कृत्रिम पैर लगवाकर अपनी नृत्य प्रतिभा को न सिर्फ बरकरार रखा, बल्कि अपने जीवन पर आधारित “नाचे मयूर” नामक फिल्म करने के बाद फिल्म और टीवी की दुनिया में अपनी प्रतिभा का जादू बिखेर रही हैं।

मातृभाषा तमिल होते हुए उन्होंने अपनी हिन्दी इतनी पुख्ता कर ली है कि कई कार्यक्रमों की एंकरिंग के समय हिन्दी भाषा पर उनकी पकड़ और शेर-ओ-शायरी से लोग प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके।

क्या आप जानते हैं कि सुधा चंद्रन एक स्टाइल आइकॉन भी हैं। टीवी सीरियल “कहीं किसी रो” में रमोला सिकंद के रूप में उनकी बिंदी की डिजाइन और ज्वैलरी सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हुई। लेकिन शायद ये उस उपलब्धि के आगे कुछ नहीं, जो उन्होंने उस समय प्राप्त की होगी, जब उनके जीवन की कहानी स्कूल की किताब में छापी गई और वे बच्चों के लिए प्रेरणास्त्रोत बनीं।

इतना नाम शायद वो एक नृत्यांगना के रूप में कभी प्राप्त नहीं कर पातीं, जितना उन्होंने अपना एक पैर खोने के बाद जीवन की जंग जीतकर कमाया है। सुधा के आत्मविश्वास के आगे उनकी बदकिस्मती को अपना रुख मोड़ना पड़ा और आज वो अपने नृत्य और अभिनय के बलबूते पर सबके दिलों पर राज कर रही हैं।

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