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आओ इल्जाम लगाएँ

व्यंग्य

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सत सोनी
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उस बाग के बेंच पर हम तीन थे - एक तरफ एक बुजुर्ग अखबार पढ़ रहे थे, दूसरी तरफ मैं और हम दोनों के बीच में एक अधेड़। तीनों अजनबी। अचानक बुजुर्ग अखबार पटक कर खड़े हो गए, 'सब साले चोर हैं।' अधेड़ ने एतराज किया,'आपको ऐसा नहीं कहना चाहिए।' बुजुर्ग ने पूछा, 'क्या तुम नेता हो?' अधेड़ बोला, 'नहीं, मैं चोर हूँ।' बुजुर्ग ने 'चोर' से हाथ मिलायाः 'आएम सॉरी, दरअसल मैंने नेताओं के बारे में कहा।'

उनके जाने के बाद मैंने कहा, 'कमाल है, चोर खुद ही को चोर कह रहा है। अधेड़ ने कहा, 'नहीं, मैं नेता हूँ। कुछ नेताओं की करतूतों की बदौलत अब अपने आप को नेता कहते हुए शर्म महसूस होती है। आपने अभी देखा कि चोर कहते ही बुजुर्ग मुझसे कितनी इज्जत से पेश आए। नेता कहता तो शायद घूँसा जड़ देते।'

मैंने कहा, 'नेताओं पर कई तरह के इल्जाम लग रहे हैं, ऐसे में कोई क्या करे।' नेताजी कहने लगे, 'दुनिया में दो काम सबसे आसान हैं - बिन माँगे सलाह देना और आरोप लगाना। सर्दी ज्यादा हो या गर्मी, बारिश-बाढ़ से प्याज-आलू की फसलें बरबाद हो जाएँ, आपको जुकाम या बुखार हो, बेटा पढ़ने-लिखने के बजाय आवारागर्दी करता हो, बेटी की शादी न हो रही हो, आपके बाल सफेद हो रहे हों, बीवी ने दाल में नमक ज्यादा डाल दिया हो-ऐसी किसी भी बात के लिए आप सरकार और उसके नेताओं को दोषी ठहरा सकते हैं।'

मैंने कहा,' लेकिन बात हो रही थी नेताओं की।' नेताजी बोले,' सरकार पर इल्जाम-दर-इल्जाम लगाने वाले कौन हैं? वे ही लोग जिनकी अपनी ही पार्टियों के नेताओं पर करोड़ों-अरबों रुपए के घपले-घोटालों, अपरहण, बलात्कार, हत्या आदि के आरोप हैं। वही लोग हैं जिन्होंने संसद में हंगामा कर अपने वेतन-भत्ते दोगुने-तिगुने करवा लिए। शीतकालीन सत्र को ठप्प करके करदाताओं के करोड़ों रुपए नाली में बहा दिए और काम न करने के बावजूद वेतन और भत्ते भी ले गए।'

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मैंने कहा, '2 जी स्पेक्ट्रम और विदेशी बैंकों में जमा काले धन के बारे में आप क्या कहते हैं?' नेताजी बोले, 'इन नेताओं से पूछकर देखिए कि यह 2 जी स्पेक्ट्रम है क्या? और विदेशों में कितना धन जमा है? सभी अंदाजा ही लगा रहे हैं। और तो और, एक साधु बाबा तो डंके की चोट पर कह रहे हैं कि भारतीयों के इतने अरब डॉलर स्विस बैंकों में हैं जैसे यह खुद ही जमा करा कर आए हों।

अफसोसनाक बात तो यह है कि अखबार और टीवी भी इतनी बातों को सच मान कर इन मुद्दों को उछाल रहे हैं, हाँ, याद आया, पिछले दिनों एक टीवी चैनल पर चार पार्टियों के नेताओं ने ब्लैक मनी को लेकर सरकार को भ्रष्ट, नाकारा, कमजोर और न जाने क्या-क्या कहा। ये चारों नामी-गिरामी वकील भी हैं।

चंद दिनों के बाद मैंने चारों से कहा-आप लोग धन दौलत वालों के मुकदमे ही लड़ते हैं और अदालत में एक बार जाने के एक से ढाई-तीन लाख रुपए लेते हैं। बताइए इसमें से कितनी रकम व्हाइट होती है और कितनी ब्लैक? चारों ने कहा-मुझे वकील कर लो, पता चल जाएगा। कुछ दिनों के बाद चारों की तरफ से अलग-अलग चार पत्र मुझे मिले। लिखा था - उस दिन एक सवाल का जवाब देने की फीस दस हजार रुपए भेज दो वरना ...'

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