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एक पत्र, प्रधानमंत्री जी के नाम

पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू'

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परमादरणीय प्रधानमंत्री जी,
नमस्कार

मैं यहां परेशान हूं तथा आपकी कुशलता की खबरें पढ़ता-सुनता-देखता रहता हूं। आप मुझे नहीं पहचानते लेकिन मैं आपको जानता हूं अच्छी तरह से जानता हूं क्योंकि आपको तो बच्चा-बच्चा जानता है। आपको फुर्सत ही कहां? हम जैसे आम-जामुन लोगों को जानने की,अब आप अकबर तो हैं नहीं कि भेष बदलकर जनता के बारे में जान सकें।

खैर छोड़िए इन बातों से क्या लाभ। अगर मैं अपना परिचय थोड़े शब्दों में दूं तो मैं वही वोटर हूं जिसे कुछ समय पहले तक आप भगवान मानते थे और आज केवल भोली जनता, जो देख-सुन तो सकती है लेकिन बोलने का साहस नहीं है उसमें।

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इस वोटर को आपने सपनों का गुच्छा दिया था। आपकी याददाश्त मेरे नाना जी जैसी तो है नहीं जो कहकर भूल जाते हैं। आपके वादों में महंगाई को काबू करने पर जोर दिया गया था लेकिन यह क्या है? जब मैंने सुना तो क्रोध... नहीं नहीं, क्रोध नहीं कहूंगा क्योंकि आम लोगों के क्रोध से क्या फायदा? आप तो आकाश हैं और आकाश पर क्रोध दिखाना क्रोध का भी अपमान होगा। क्रोध की पराकाष्ठा है प्रहार और अगर आकाश पर पत्थर फेंके तो छेद होने से रहा यदि सीधा लौटा तो सिर में छेद जरूर हो जाएगा।

रेल किराया में वृद्धि सुनकर बहुत दुःख हुआ। हमारे मोहल्ले के अवधेश की आंखों के आंसू आप देख नहीं पा रहें लेकिन मैं तो देख रहा हूं। बेचारा सुबह रेल से शहर जाता,दिनभर रिक्शा चलाता और शाम को रेल से ही वापस आ जाता।अब वह सोच रहा है कि बच्चों की टॉफियां नहीं लाऊंगा जिससे रेल किराए की पूर्ति हो सकेगी।

बच्चों की हंसी छीनकर क्या मिलेगा आपको? अब उसकी थकान कैसे मिटेगी? शाम को जब टॉफियां पाकर बच्चे खिलखिलाते तो अपनी मेहनत का फल मिल जाता और उसके चेहरे पर भी मुस्कान दौड़ जाती। आपके मंत्री जी पुराने दिनों का हवाला दे रहे हैं,अरे जब उन्हीं नीतियों एवं दिनों के सहारे चलना था तो फायदा क्या हुआ? ढाक के तीन पात। किराया बढ़ाने में भी आपने चालाकी की है,यात्री किराए में 14.2% और माल भाड़े में 6.5%। क्या गजब है साहब?

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इतनी होशियारी से धनिकोँ को लाभ पहुंचाएंगे हमने कल्पना भी नहीं की थी। जनता हितैषणा का दम्भ भरने वाले आप अगर आम जनता का सच्चा हित चाहते तो रेल किराए को घटाकर हवाई यात्रा के किराए में वृद्धि कर सकते थे लेकिन आपने नहीं किया। आपके चाटुकार बुरा मानें या भक्त नाराज हों मैंने तो अपनी बात कह दी। मैंने अपनी भाषा को संयमित रखने का भरसक प्रयत्न किया लेकिन क्या करूं? चमड़े की है बेचारी फिसल गई हो तो बुरा मत मानिएगा।

वैसे मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप एक कुशल नेता हैं और नेताओं का भाषाई ज्ञान थोड़ा कमजोर होता है यह बात सोलह आना कटु सत्य है।

- भवदीय
आम मतदाता
ग्राम-आंसू,पोस्ट-दर्द,जिला-लाचारी,प्रदेश-चुप्पी (भारत)

लेखक : पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू'
स्नातकोत्तर (हिंदी साहित्य,स्वर्ण पदक)
ग्राम-टीसी,पोस्ट-हसवा,जिला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)-212645
मो.-08604112963
ई.मेल[email protected]

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