Biodata Maker

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

राज, मंत्रीजी के पिछले जन्म का

व्यंग्य

Advertiesment
हमें फॉलो करें व्यंग्य रचना
राजेन्द्र देवधरे 'दर्पण'
ND
एंकर छोटे पर्दे पर दिखाई दे रहा है। वह समय को पीछे की ओर ले जाने को बेताब है। पार्श्व में टँगी घड़ी की सुइयाँ उल्टी दिशा में घूम रही हैं। एंकर उत्साहित होकर बोल रहा है कि आज आप जानेंगे देश के जाने-माने मंत्री भूखानंदजी के पिछले जन्म के राज को। तो आइए मंत्रीजी, हम आपका इस मंच से स्वागत करते हैं।

एंकर पूछता है, 'तो मंत्रीजी बताइए कि किस समस्या के निदान के लिए आप यहाँ आए हैं?' भूखानंदजी अपनी महँगाई की तरह फलती-फूलती तोंद पर हाथ घुमाते हुए बोलते हैं, 'मुझे हर समय खाने की इच्छा होती है और मुझे सपने में कोई मारता है जिससे मेरी नींद खुल जाती है'।

उत्साहित होकर एंकर दर्शकों को बताता है, 'मंत्रीजी अपने साथ लाए हैं अपनी पत्नी श्रीमती तड़पतीबाई को एवं अपने पत्रकार मित्र पीत पाचकजी को। दोनों इनकी पिछले जन्म की यात्रा के साक्षी बनेंगे। मंत्रीजी के पिछले जन्म के राज को खोलेंगी मशहूर साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर (श्रीमती) संतुष्टीदेवी। तो सारथी तैयार है, रथ तैयार है, मंत्रीजी तैयार हैं और भ्रष्टाचार से त्रस्त मेरा हिन्दुस्तान तैयार है।'

मंत्रीजी समय रथ पर लेटे हैं। डॉक्टर उनसे कहती है, 'आँखें बंद करो। अब आपकी आत्मा इस शरीर को छोड़कर अपने पिछले जन्म में प्रवेश करेगी। 10, 9, 8, ... 3, 2,1 ठीक।' मंत्रीजी पसीने-पसीने हो जाते हैं। वे कहते हैं, 'सॉरी, बहुत कोशिश करने पर भी आत्मा नहीं मिल रही है। अरे! याद आया उसे तो कब की मंत्री पद के एवज में बेच चुका हूँ।' डॉक्टर चौंकती है, 'क्या!!! चलो कोई बात नहीं। तुम ही जाओ मन से, अपने शरीर को यहीं छोड़कर। 3, 2, 1 ठीक है।'

मंत्रीजी अड़ जाते हैं, 'नहीं, मैं कैसे इस शरीर को छोड़ दूँ? बिन शरीर तो मैं बिन पार्टी के प्रत्याशी जैसा हो जाऊँगा।' डॉक्टर समझाती है, 'बागियों की तरह जिद मत करो। शरीर छोड़ो और उस लोक में प्रवेश करो।' मंत्रीजी का शरीर काँपने लगता है, जैसे उन्हें इस्तीफे का आदेश दे दिया गया हो।

मंत्रीजी स्वीकारते हैं, 'हाँ, मैं पहुँच गया।' डॉक्टर पूछती हैं, 'ध्यान से देखो तुम कौन हो, तुम्हारा क्या नाम है?' मंत्रीजी कँपकँपी आवाज में बोलते हैं, 'मेरा नाम राजा है, जो मेरे पेट पर लिखा है।' डॉक्टर चौंकती है, 'पेट पर! मगर आमतौर पर नाम तो हाथ पर लिखा होता है।' मंत्रीजी स्पष्ट करते हैं, 'हाथ होते तो जरूर हाथ पर ही लिखा होता।' डॉक्टर पुनः चौंकती है, 'क्या! तुम्हारे हाथ नहीं हैं।'

मंत्रीजी रुआँसे होकर, 'एक भी हाथ नहीं है, बस पैर हैं।' डॉक्टर अफसोस प्रकट करती है, 'ओह सॉरी, मगर तुम अपने पैरों की तरफ देखो। कैसे हैं वे?' मंत्रीजी रोते हुए, 'पैरों में खुर है।' डॉक्टर चौंककर उछल पड़ती हैं, 'खुर!' मंत्रीजी रो पड़ते हैं। 'हाँ, चारों पैर खुर वाले हैं।' डॉक्टर पूछती है, "तो ऊपर की ओर बढ़ो। कैसे दिखते हो तुम।'' मैं गधे जैसा दिखता हूँ बल्कि गधा ही हूँ।' डॉक्टर पक्का करने की गरज से कहती है, 'ओह, तो तुम राजा नाम के गधे हो।' मंत्रीजी, 'हाँ, मालिक की पत्नी ने ही रखा था मेरा यह नाम।'

डॉक्टर पूछती है, 'देखो, कौन-सा सन्‌ है?" एक नौ तीन चार, 1934 । यह गुलामी का समय है। अपने परायों के गुलाम हैं और मैं अपनों का।' अगला निर्देश, 'अपने घर की ओर चलो।' 'छोटा-सा कच्चा घर है। मुझे बाहर ही पेड़ से बाँध रखा है। मैं ईंट ढोने का काम करता हूँ। बदले में मालिक की गाली और डंडे मिलते हैं। मालिक की पत्नी दयालु है। वह बचा हुआ रूखा-सूखा मुझे खिलाती है। मगर आज तो उसने भी मुझे कुछ नहीं दिया।' कहते हुए मंत्रीजी रो पड़ते हैं। मंच खामोश, मंत्रीजी की पत्नी मित्र हक्के-बक्के और पूरा देश टीवी देखकर स्तब्ध।

डॉक्टर पुनः पूछती हैं, 'देखकर बताओ, तुम्हारे मालिक की आँखें किसकी याद दिलाती हैं?' मंत्रीजी का जवाब, 'उसकी आँखें देख मुझे अपने हारे हुए प्रतिद्वंद्वी शैतानमल की याद आती है।' और मालिक की पत्नी की आँखें देख कौन याद आता है?' "उनकी आँखें देख मुझे माँ की याद आती है जिसने मुझे पढ़ाने की बहुत कोशिश की लेकिन मैं मंत्री तो बन गया, मगर रह गया गधा का गधा ही।"

अगला प्रश्न, 'अभी तुम क्या कर रहे हो?' 'सुबह के 5 बज रहे हैं। मंदिर की घंटी बजने की आवाज आ रही है। मालिक ने मुझे जोरदार डंडा मारकर जगाया। यह उसका रोज का नियम है, जबकि मैं डंडे के डर से सो ही नहीं पाता हूँ। वह वापस चला जाता है। शायद कुछ गरमागरम पीने। अब वह मुझे ईंट के भट्टे पर ले जा रहा है। सुबह-सुबह गालियाँ बकते और डंडे बरसाते हुए। शायद वह अपनी गरीबी का गुस्सा मुझ पर उतारता है। आज जैसे ही वह मेरी पीठ पर ईंटों का बोझा रखता है, मैं चक्कर खाकर गिर जाता हूँ। मालिक ने गालियों और डंडों की झड़ी लगा दी। किसी ने उसे रोककर मुझ पर पानी डाला किंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मेरे प्राण निकल चुके थे।' कहते हुए मंत्रीजी की आँखों से अश्रुधारा बहने लगती है।

डॉक्टर कहती है, 'अच्छा, वापस आ जाओ अपने शरीर में 1,2,3,1 कैसा लग रहा है मंत्रीजी?' ' जी मुझे बहुत ठंड लग रही थी। शरीर में जकड़न-सी हो रही थी, किंतु अब मेरे मन से डर निकल गया है।' एंकर स्क्रीन पर आकर कहता है, 'तो देखा आपने मंत्रीजी के पिछले जन्म का राज? आजादी मिलने पर कैसे एक गधा मंत्री बन जाता है। अपने पिछले जन्म से भूखे मरने के कारण आज वे देश को यहाँ- वहाँ हर जगह से खा रहे हैं और डंडे का डर तो अब मन में रहा ही नहीं है।'

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi