रोहित श्रीवास्तव
देश के सबसे ईमानदार, कर्मठ एवं युगपुरुष 'धरने' वाले बाबा भारत के प्रधानमंत्री होते तो शायद देश के हालात कुछ इस तरह होते।
* देश में पहली बार 'धरने' वाली सरकार होती।
* देश के प्रधानमंत्री का स्वतन्त्रता दिवस पर लाल किले से भाषण कुछ ऐसा होता- "हम अपने दुश्मनों से कड़े शब्दों में कह देना चाहते हैं अगर हमे आंख दिखाएंगे तो हम सीमा पर धरना देंगे। 'शान्तिप्रिय' दूतों के साथ हम 'धरने' के साथ काम लेंगे"।
* देश मे 'धरना' देने का प्रशिक्षण मुफ्त दिया जाता।
* भारत रत्न की जगह 'धरना-रत्न' सम्मान की शुरुआत होती। सर्वप्रथम यह सम्मान 'मन्ना मजारे' को दिया जाता।
* देश की सड़कों पर 'यू-टर्न' के साइन की जगह 'केजरी-टर्न' के नए साइन लगाए जाते।
* प्रधानमंत्री महोदय पीएमओ की जगह सदैव जंतर-मंतर पर धरने पर रहते।
* देश के शिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रमों में 'धरना' विषय अनिवार्य हो गया होता।
* पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के नेता और 'केजरी-शिष्य' इरफान 'कान' और 'फसादरी' धरने के भाईचारे की नई मिसाल बनाते।
* देश में आपातकाल जैसे हालात खड़े हो जाते प्रधानमंत्री से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री, बड़े-बड़े नेता, कर्मचारी, व्यापारी, भिखार,नारी,स्कूल और कॉलेज के छोटे-बड़े बच्चे सब अनिश्चितकालीन धरने पर चले जाते।
* देश के नेताओं का नया नारा होता 'तुम मुझे वोट दो.....मैं तुम्हें 'धरना' दूंगा"
* केंद्र सरकार अपना अलग 'धरना-मंत्रालय' खोलती। 'एघा-नाटकर' इसकी मुखिया होती।
* 'धरना-दिवस' घोषित किया जाता और प्रतिवर्ष धूमधाम से मनाया जाता।
* प्रधानमंत्री राहत कोष की जगह 'धरना-राहत-कोष' की स्थापना होती जिससे देश-विदेश मे हो रहे जगह-जगह धरनों को आर्थिक रूप से मदद पहुंचाई जाती।
*देश की दादी और मां अपने पोता-पोती/बेटा-बेटी को 'केजरी-बवाल' के धरनों के किस्से बताती।
* दूर किसी गांव में जब बच्चा रोता तो मां कहती सो जा बेटा...... सो जा...नहीं तो 'केजरी' 'बवाल' करने आ जाएगा।
(यह लेख लेखक की कोरी-कल्पना से प्रेरित है। उल्लेखित पात्र किसी भी मृत/जीवित व्यक्ति से संबंध नहीं रखते हैं अगर ऐसा होता है तो यह मात्र एक संजोग समझा जाना चाहिए)