वैसे तो गांवों की दीवारें सूनी ही रहती हैं किंतु दो वक्त इनमें ऐसा रंग चढ़ता है कि देखते ही बनता है। एक जब चुनावी मौसम आता है तो इनमें रंग छलक पड़ते हैं। कहीं नीले रंग में बना हाथी नज़र आएगा तो कहीं तिरंगे में पंजा रंगा दिख जाएगा। कहीं साइकिल अपना रंग जमाती है तो कहीं कमल खुशबू नहीं रंग बिखेरेगा।
FILE
चुनावी माहौल में दीवारें कैनवास सी प्रतीत होती हैं। चुनावी बहारें दीवारों को 5 साल बाद मयस्सर होती हैं लेकिन एक मौका ऐसा भी है जो इन्हें हर वर्ष प्राप्त होता है,जब इन पर बहारें छाती हैं तो इनकी खूबसूरती में चार चांद लग जाते हैं। वह है जून के अंतिम एवं जुलाई के प्रथम सप्ताह के मध्य की अवधि। जब दीवारों की कायाकल्प हो जाती है। जी हां,यह वह वक्त होता है जब शिक्षा क्षेत्र में रंगों का मौसम आता है।
जिस प्रकार वर्षा ऋतु में जगह-जगह कुकुरमुत्ते अपने दीदार देने लगते हैं। ठीक उसी तरह इस कालावधि में गली-मोहल्लोँ में नर्सरियों का प्रकटीकरण होता है। शिक्षित बेरोजगारों की इतनी बहुतायत है कि एक दो हजार में बी.एड.,एम.एड, अथवा मास्टर डिग्रीधारी अध्यापक-अध्यापिकाएं आसानी से मिल जाते हैं।
FILE
लड़कियों को इसमें भी छूट है उनके पास अगर ब्यूटी है तो इंटर पास से भी काम चल जाता है,क्योंकि मॉर्डन बच्चों का सौंदर्यबोध पालने में जग जाता है और प्रबंधकों को इसमें महारत हासिल होती है। यह बात केवल निचले स्तर तक ही सीमित नहीं है बल्कि कॉलेज और डिग्री कॉलेजों पर सौ फीसदी फिट बैठती है।
प्राइवेट कॉलेज एवं डिग्री कॉलेज सही मायने में शिक्षालय न होकर धनार्जनालय बन गए हैं। एक दिन मेरे एक मित्र बोले-'भाई साहब!अगर आपके पास पैसा हो तो बताइए मेरे पास उसे दस गुना करने का फार्मूला है।' हमने आंखें चौड़ी करके कहा-'अरे भाई! क्या आंख के अंधे गांठ के पूरे समझ रहे हो हमें? क्या कोई जादुई छड़ी झटक ली है जो शेखी बघार रहे हो? इस प्रकार का दावा तो कोई बीमा कंपनी या बैंक भी नहीं करेगी।'
FILE
वह बोले-'भाई जान! आप कलम घिसाई तो कर रहे हैं लेकिन लगता है दिमाग मोटा हो गया है। एक सीधा-साधा फार्मूला यह है कि एक स्कूल या प्रायवेट कॉलेज खोल दीजिए बस,लक्ष्मी मइया खुद-ब-खुद मेहरबान हो जाएगीं। ज्यादा हाथ-पैर पटकने की भी आवश्यकता नहीं है। विज्ञापन का जमाना है जमकर प्रचार करवा दीजिए बस,आपका कॉलेज चलने ही नहीं कुलांचे भरने लगेगा।
बड़े-बड़े फ्लैश चौराहे-चौराहे टंगवा दीजिए,पोस्टरो से पाक-साफ दीवारों के दामन को दागदार करवा दीजिए। लाउडस्पीकर लगी जीप को धूल भरी गलियों के चक्कर दौड़ा दीजिए। दो चार बार अपने अल्प वेतनभोगी अध्यापक-अध्यापिकाओं को भेज दीजिए हर उस घर में जिसमें पढ़ने योग्य बच्चे हों,इसी बहाने चाय-पानी भी हो जाएगा और अभिभावकों के मन में यह बात घर कर जाएगी कि अमुक कॉलेज के लोग हमारे यहां आए हैं इसलिए हम अपने बेटे या बेटी का एडमिशन वहीं कराएगें। गांव के हर घर की दीवार पर पोस्टर दिख जाएंगे। भिन्न-भिन्न नाम भिन्न-भिन्न पोस्टर लेकिन इन सबमें कुछ बातें समान मिलेंगी। जैसे-उत्तम परिवेश,योग्य शिक्षक-शिक्षिकाओं द्वारा शिक्षण,वाहन की सुविधा,खेलकूद की व्यवस्था,शानदार शैक्षिक भवन,कम्प्यूटर प्रशिक्षण की व्यवस्था आदि-आदि। इन सुविधाओं के समान होने के बावजूद कुछ गहरा राज भी होता है जो उजागर नहीं किया जाता है। वह होता है शुल्क का निर्धारण।
एडमिशन के समय कई प्रकार के शुल्क गिनाए जाते हैं जिनमें एडमिशन शुल्क,पुस्तकालय शुल्क,फर्नीचर शुल्क,जल शुल्क,संडास शुल्क,परीक्षा शुल्क वगैरह-वगैरह। इनके अतिरिक्त भी एक शुल्क है जो सबसे महत्वपूर्ण है,जिसके बिना सब शुल्क धूरि समान। पूरे वर्ष की मेहनत एक तरफ और यह शुल्क तरफ।
FILE
आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कौन सा शुल्क है जो हमें नहीं पता केवल तुम्हें ही मालूम है। अरे जनाब नींव का पत्थर किसी को दिखाई थोड़े ही देता है,उसे देखने के लिए मकान की जड़ें खोदनी पड़ेगी और यह काम आपके बस का नहीं है क्योंकि आपके अंदर प्रेम एवं भय है।
कबीर जैसे अब घर फुंक्कड तो हैं नहीं आप। आपको बेचैन देखकर लगता है बताना ही पड़ेगा। जी हाँ,वह है सुविधा शुल्क। सभी शुल्कोँ का आधार,अब आप कहेंगे कि इसका उल्लेख तो शुल्कसूची में नहीं है। आप किस मुंह से कह रहे हैं? हां भाई साहब,बिल्कुल दुरुस्त फ़रमाया आपने,इसके बखान के लिए एक मुख की नहीं हजारों की जरूरत है। रही बात शुल्कतालिका में उल्लेख न होने का तो यह शुल्क हीरा है और हीरा कोयले की काली खान में दबा रहता है। आवश्यकता होती है निकालकर तराशने की। आइए इस शुल्क के बारे में कुछ बहुमूल्य मालूमात हासिल की जाए। जैसा कि नाम से स्पष्ट हो रहा है कि यह शुल्क सुविधा के बदले में ली जाती है। कॉलेज के द्वारा यह शुल्क परीक्षा के दौरान लिया जाता है। आपके बच्चे को जैसी सुविधा चाहिए वैसा शुल्क देना पड़ता है।
FILE
गेस पेपर,गाइड,मौखिक सुविधा सबकुछ हासिल हो जाएगी। और अधिक शुल्क देंगे तो कॉपी-पेपर घर तक पहुंच जाएंगे।कई अन्य सुविधाएं भी हैं मसलन आपका बेटा परदेश कमा रहा है और यहां परीक्षा शुरू हो गईं तो घबराने की कोई बात नहीं ऐसी भी सुविधा है कि आपके बेटे की प्रतिमूर्ति पेपर दे देगा बस आपको शुल्क देना होगा। कमाल है न सुविधा शुल्क का जो असंभव को भी संभव कर देता है।
लेखक : पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू' संपर्क- ग्राम-टीसी,पोस्ट-हसवा,जिला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)-212645 मो.-08604112963 ई.मेल[email protected]