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- श्रीनि‍वास शावरीकर

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अपने भाई से मिलने के लिए मैने विदेश यात्रा का मूड बनाया और उसके पास जा पहुँचा। पहुँचने के कुछ ही दिनों बाद से मुझे भी भाई के साथ पार्टियों-समारोहों में निमंत्रित किया जाने लगा। वहाँ स्वदेशी यानी एनआरआई बंधु ज्यादा होते थे। एक दिन ऐसी ही एक पार्टी में जाना हुआ। वहाँ मेरा खास खयाल रखा गया। भाई के डॉक्टर होने के कारण समाज में उसका रुतबा था। मैंने पार्टी को अच्छी तरह से एन्ज्वॉय किया।

हम जब वापस घर लौटे तो भाई ने कहा-'सभी ने तेरी इतनी आवभगत की, लेकिन तूने किसी से ढंग से बातचीत ही नहीं की।' मैंने जवाब दिया-'लेकिन मैंने तो सबसे अच्छे से बातचीत की। यूँ भी मैं बोलने का आदी हूँ। भारत में तो मैं बातें बनाने का ही काम करता हूँ।' 'वह तो ठीक है... लेकिन इतना ही काफी नहीं है।' उसने तुरंत मुझे टोकते हुए कहा। मैंने कहा-'भई, मैं पहली बार विदेश आया हूँ। मुझे यहाँ के तौर-तरीके मालूम नहीं हैं और भारत में विदेश जाने वालों को ऐसी कोई ट्रेनिंग भी नहीं दी जाती।'

अब भाई मुझसे सहमत हुआ और बोला-'यहाँ का नागरिक जब विदेश में कहीं भी जाता है तब पहले पूरी तरह वहाँ की संस्कृति, परंपरा, रहन-सहन आदि की जानकारी लेता है।' मैंने कहा-' यह तो बड़ी अच्छी बात है। लेकिन ऐसा न होने से भी क्या फर्क पड़ता है?' भाई ने मुझे समझाते हुए कहा-'बहुत फर्क पड़ता है। यहाँ का नागरिक जब भारत जाता है तो उसे विशेष ट्रेनिंग दी जाती है। खासतौर पर भारतीय महिलाओं से किस तरह पेश आना है, यह उसे सिखाया जाता है क्योंकि यहाँ और वहाँ इस व्यवहार में जमीन-आसमान का फर्क है।'

अब बात को समझने में मेरी दिलचस्पी और बढ़ने लगी थी। उसने आगे कहा- 'भारतीय महिलाओं से मिलने पर हाथ मिलाने के बजाय नमस्ते करना चाहिए, यह यहाँ सिखाया जाता है क्योंकि यहाँ तो पहली बार मिलने पर महिला-पुरुष भी गले मिलते हैं या हाथ मिलाते हैं।' अब मैं बात को समझ गया था। मैंने उससे ही पूछा- 'तो फिर अब मैं आगे से कैसा व्यवहार करूँ?' अब भाई मेरा गुरु बन गया। मेरी ट्रेनिंग शुरू हुई। पाठ के कुछ नियम उसने बताए।

यहाँ महिलाओं को गले भले ही न लगाओ लेकिन उनसे हाथ जरूर मिलाना चाहिए।

कोई भी महिला सौंदर्य प्रसाधन या सुंदर पहनावे का प्रयोग क्यों करती है? इसलिए ताकि लोग उसकी तारीफ करें। आप भी जब किसी महिला से मिलें तो ऐसा ही करें। यह एक तरह का मैनर्स है।

उसके गहनों, कपड़ों से लेकर उसके बच्चों तथा पति की भी तारीफ कीजिए।

पुरुषों से भी लगभग इसी तरीके से पेश आएँ। उनके पहनावे, परिवार या बोलचाल की तारीफ करें।

यह ट्रेनिंग बड़ी रोचक बनती जा रही थी। मैंने जानना चाहा कि ये सब बातें कहने के लिए किन वाक्यों का प्रयोग करते हैं। तब ट्रेनिंग का अगला दौर शुरू हुआ।

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संभाषण में अँगरेजी का ही ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिए।

स्त्री को विशेषतौर पर कहना चाहिए- 'यू आर लुकिंग स्टनिंग एंड सेक्सी।'

अब मैं चमक गया। मैंने कहा कि यूँ ही किसी भी स्त्री को ऐसा कह देना तो मेरे तो बस की बात नहीं है। मेरी उम्र में यह शोभा भी नहीं देता। 'लेकिन यहाँ इसका मतलब पॉजीटिव एटीट्यूड और मैनर्स से जुड़ा है। यहाँ यही चलता है।' भाई ने तुरंत कहा। मैंने भी कहा- 'लेकिन हर स्त्री को ऐसा कहना भी तो सफेद झूठ है।' मेरे भाई ने हँसते हुए कहा- 'यह सफेद झूठ ही तो भद्र समाज की असली पहचान है।'

अगली पार्टी में भाई के मित्रों ने मेरी एक किताब की तारीफ की। मैं मन ही मन बहुत खुश हुआ। सोचा, शायद भाई ने सबको मेरी किताब पढ़ने को दी होगी। अपने इस विचार को जब मैंने घर लौटने पर भाई से बाँटा तो उसने हँसते हुए कहा- 'मैंने ही एक पार्टी में तेरी किताब में से 2-3 कहानियाँ लोगों को पढ़कर सुनाई थीं। वैसे भी ये सब अब देवनागरी स्क्रिप्ट को लगभग भूल चुके हैं तो वे तेरी किताब क्या खाक पढ़ेंगे?'

इस अनुभव ने मुझे और भी चीजें सिखा दीं। हाँ, लेकिन एक बात तो थी कि अपनी झूठी प्रशंसा सुनकर भी मैं प्रसन्न था। इसी दौरान एक दिन मुझे वहाँ एक बालक के उपनयन संस्कार में शामिल होने का मौका मिला। गुरुकुल के जमाने से चला आ रहा यह संस्कार अब भव्य इमारतों वाले अँगरेजी स्कूलों के आने के बाद भी जारी है। हाँ, अब यह दिखावे और परंपरा का रूप ज्यादा ले चुका है। खैर... समारोह में सभी ने बंटू (जिस बच्चे का उपनयन हुआ था) की खूब तारीफ की।

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किसी ने स्मार्ट कहा, किसी ने होनहार। मजा तो तब आया जब उसे भी लोगों ने 'सेक्सी' कहा। यही नहीं, लोगों ने मजाक-मजाक में अपनी लड़कियों को संभलकर रहने की सूचना भी दे दी। मैंने भाई से कहा- 'यहाँ तो लड़के को विद्या और ब्रह्मचर्य की शिक्षा दी जा रही है, फिर यह कैसा मजाक...' भाई ने हँसते हुए कहा- 'यह भारतीय संस्कृति को जताने का एनआरआई तरीका है।' अब मैं विदेश में बसे भारतीयों को ठीक से जानने लगा था। उनके तौर-तरीके अब मुझे समझ आने लगे।

जैसा देश-वैसा भेष, मैंने भी उनके जैसा जामा पहन लिया। मैं उनमें से एक बन गया। जब मेरे लौटने का समय आया तो सबने बड़े प्रेम (अपने तरीके) से मुझे बिदाई दी। मैं भारत लौटा तो परिचितों, मित्रों ने मेरा स्वागत किया। हम फिर से विभिन्न त्योहारों, शादियों तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों में मिलने लगे। मुझ पर अब भी विदेश में भाई से मिले सारे सबक का खासा असर था।

अतः ऐसे ही एक कार्यक्रम में मैंने अपने एक मित्र की पत्नी की साड़ी और सौंदर्य की तारीफ कर डाली। मित्र बेचारा मुँह बाए मेरी ओर देखता रह गया। बाद में मुझे अकेले पाकर पूछा- 'तूने मेरी बीवी को 'ब्यूटीफुल' कहा!' मैंने कहा- 'हाँ।' 'मैं पूरी जिंदगी यह कहने की कोशिश कर रहा था लेकिन कभी कह नहीं पाया', वह बोला। मैंने पूछा- 'क्यों?' मित्र ने कोई जवाब नहीं दिया फिर कुछ पल बाद बोला- 'मुझे तुम्हारी दिमागी हालत पर चिंता हो रही है। जो नहीं है वह भी तुम्‍हे दि‍खने लगा है।

उधर उस मि‍त्र की पत्नी ने मेरी पत्नी से पूछा 'भाई साहब को क्‍या हो गया है? जब से वि‍देश से लौटे हैं उनका बर्ताव बदल गया है।' पत्नी ने पूछा 'क्‍यों क्‍या हुआ।' 'अरे हर मि‍लने वाले की तारीफ के पुल बाँधे जा रहे हैं। मुझसे भी पता नहीं क्‍या-क्‍या कह गए। ये मन को तो अच्‍छा लगता है लेकि‍न शोभा नहीं देता।' वह बोली। पत्‍नी ने बड़ी बेफि‍क्री से कहा - 'अरे फॉरेन से लौटे हैं ना, ये फॉरेन का हैंग ओवर है। एक दो झटके लगने दो अपने आप उतर जाएगा।' और वाकई पत्नी को ज्‍यादा इंतजार नहीं करना पड़ा।

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