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‘दिल्ली का चुनावी दंगल ‘फिल्मी’ स्टाइल में’

हमें फॉलो करें ‘दिल्ली का चुनावी दंगल ‘फिल्मी’ स्टाइल में’
रोहित श्रीवास्तव 
 
भारत की राजनीति में जो गर्मजोशी और दिलचस्पी अब दिखाई पड़ती है वो संभवतः आज से 10 वर्ष पूर्व शायद बिलकुल नी’रस’ थी। कालांतर प्रति 5 साल बाद चुनाव तो होते थे पर ‘चुनावी-एहसास’ का आभास तनिक भी नहीं होता था। मीडिया का बढ़ता दायरा कहो या फिर केजरी जी का ‘रायता’ भारत में तुलनात्मक दृष्टि में पहले से जरूर चुनावी महत्ता एवं लोकप्रियता बढ़ी है। अब अगर खुद एक ‘आम-आदमी’ ‘चुनावी-अखाड़े’ में उतर जाए तो बाकियों का दिलचस्पी लेना तो स्वाभाविक है न? 

 

 
साफ और सरल शब्दों में अगर बात रखी जाए तो भारतीय राजनीति अपने दौर के उस नाटकीय मोड़ पर खड़ी दिखाई देती है जहां एक छोटी सी घटना/परिघटना या तो ‘गोलमाल फिल्म’ के सिक्वेल की तरह प्रतीत होती है या ऐसा लगता है भारतीय राजनेताओं के शरीर में ‘हास्य-कलाकारों’ की आत्मा प्रवेश कर गई हो। 
 
इस कॉमेडी दौर के सबसे चर्चित हास्य-कलाकारों-नमूनों की बात करें तो सबसे पहला नाम ‘आम कलाकारों के मसीहा’, ‘बीमारियों की बीमारी’ धरनाधारी वाले महान ड्रामेबाज़ ‘केजरीबवाल’ जी का उभर कर आता है। वैसे केजरी बाबू किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। इस ड्रामेबाज़ ने लोगो के दिलो में इतने कम समय में जगह बनाई है जो वाकई में  ‘झूठी-तारीफ’ है। एक उभरते हुए ड्रामेबाज़ के लिए इससे बढ़िया क्या हो सकता था कि जूते खाने के साथ इन्होनें दर्शकों से चेहरे पर कालिख पोतवाई। यह एक आम ऑटो-रिक्शा वाले का अपने ‘बेकार’ के लिए प्यार ही था कि उसने हर्षोल्लास में ‘केजरी बाबू’ के गाल पर एक ज़ोर का तमाचा इनाम में दे दिया जिसने उनके चेहरे को भूमंडल को ‘सूजा’ दिया था जिसे वह अपने जीवन की अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धियों मे से एक मानते हैं। अब इतनी ज़ोर की थप्पड़ खाने के बाद भी किसी के आंसू न निकले तो उसे उपलब्धि ही माना जाएगा न। 
 
आपको बता दूं केजरीवार ने अपने ‘ड्रामा-करियर’ की शुरुआत ‘मन-दोष-पाल’ नामक फ्लॉप फिल्म के साथ की थी जिसमें  इनके गुरु मन्ना-मजारे ने मुख्य भूमिका निभाई थी खुद केजरी ने इसमे अहम किरदार निभाया था। दर्शकों ने फिल्म को पूरी तरह से नकार दिया था। फिल्म बेशक प्रसारित होने के शुरुआती दिनों में दर्शकों को सिनेमाघरों तक खींचने में  कामयाब रही थी पर उम्मीद के मुताबिक वह  कमाल नहीं दिखा पाई जिसकी इससे आशा थी। निराशा में केजरीबवाल जी ने एक बावली-बवाली “ ए-जी... ओ जी....लो जी....सुनो जी” प्रोडक्शन हाउस की स्थापना की। इसके नाम के पीछे का 
कारण लोग यह बताते है की केजरी जी को ‘जी” शब्द से बहुत लगाव है जैसे सब टीवी के ‘ऑफिस-ऑफिस मुसद्दीलाल के पांडे को भी “पांडे जी” पसंद था। कहते हैं की केजरी को बचपन मे ‘पारले-जी’ बिस्कुट बहुत पसंद था। उनके हाउस ने ‘सीएम’ नाम की फिल्म का सफलतापूर्वक निर्माण किया और उनकी पहली ही फिल्म को लोगो ने अच्छी प्रतिक्रिया दी। पर शायद केजरीबवाल जैसा महा-बेवकूफ आदमी ही था जिसने अच्छी-ख़ासी चल रही फिल्म को स्वयं ही 49 दिन में  बॉक्स-ऑफिस से उतार दिया। वास्तव में वह बड़े-बजट की ‘पीएम’ नामक फिल्म बनाना चाहते थे जोकि आगे चलकर बॉक्स-ऑफिस पर बुरी तरह से पिट गई।

इसलिए कहते है जितना है उतने में खुश रहना सीखो। आज यह ड्रामेबाज़ कलाकार गुमनामी के दोराहे पर खड़ा है जहां कुदरत ने इसे फिर से रायता फैलाने और ड्रामे के रंग से लोगो को फंसाने का एक और मौका दिल्ली में  दिया है। देखने वाली बात होगी दर्शक इस बार स्वीकारते हैं या फिर पीएम फिल्म की तरह इनका फिर से बॉक्स ऑफिस पर डब्बा गोल होगा। 
 
केजरीबवाल जी आत्मविश्वास से लबरेज नज़र आते हैं उनका मानना है उनकी इस बार की सीएम फिल्म पहले की तुलना में और अच्छा प्रदर्शन करेगी। विश्वसनीय सूत्रों की माने तो उनके इस अति-आत्मविश्वास के पीछे उनकी लगातार हो रही तीन हफ्ते से ज्यादा वाली बासी ख़ांसी, जकड़ा हुआ गला और सर्दी के मौसम में प्रयोग होने वाला उनका वो ‘गंधेला मफ़लर’ है जिसकी दुर्गंध से लोग उनकी सीएम फिल्म पर जान लूटा देंगे। 
 
देश के सबसे पुराने और अनुभवी प्रॉडक्शन हाउस ‘कोन-ग्रेस’ का हाल बहुत बुरा है। मानो उसका शनि-राहु  के साथ मंगल-बुध-बृहस्पति सब भारी है। इस हाउस ने फिल्मी जगत में सबसे ज्यादा राज किया है। पर जब से बॉक्स ऑफिस पर ‘नमो’ फिल्म लगी है तब से यह प्रॉडक्शन हाउस बर्बादी की और बढ़ता नजर आ रहा है। एक समय में इस प्रॉडक्शन हाउस में काफी अनुभवी और मंझे हुए अभिनेता थे पर आज के अभिनेताओं का ‘युवा जोश’ शायद उतना प्रभावी नहीं। 
 
प्रॉडक्शन हाउस की मालकिन मोनिया गांधी ने अपने सबसे असफल रहे बेटे अभिनेता पर बार-बार अपना विश्वास जताया है। पर हर बार ‘नमो’ फिल्म के सामने ‘रागा’ फिल्म पिटती नज़र आती है। शायद प्रॉडक्शन हाउस के सदस्यों के विरोध के बाद अब ‘रागा फिल्म’  कुछ दिनों तक न देखने को मिले। इससे बी. जे. पी. के प्रॉडक्शन हाउस में शोक की लहर है जिसे ‘रागा-फिल्म’ से काफी उम्मीदें थी जोकि अक्सर ‘नमो’ फिल्म की कमाई में इजाफा करने मे मददगार रही है। 
 
अगर बात की जाए खुद को ‘प्रॉडक्शन हाउस विथ ए डिफ़्रेंस’ का तमगा देने वाले हाउस बी जे पी की जिसने हाल में ‘नमो’ नामक सफल फिल्म का निर्माण किया था। जोकि दर्शकों के मन को बड़ा भाई भी थी। फिल्म में मुख्य भूमिका में स्वयं ‘नमो’ थे जिनके इर्द-गिर्द ही पूरी फिल्म घूमती है। फिल्म में  ‘भाइयों और बहनों’ और “अबकी बार मेरी फिल्म देख मेरे यार” जैसे कुछ उम्दा डॉयलॉग लोगो के मन को छूते हैं। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अप्रत्याशित प्रदर्शन भी किया है। 
 
‘नमो’ ने फिल्म से पहले वादा किया था अगर उनकी फिल्म अच्छे से चली तो वह देश के सभी सिनेमाघरों और पीवीआरस के दाम घटवा देंगे। 100 दिन के भीतर ही ‘काला-धन’ नमक फिल्म के निर्माण की भी बात कही गयी थी (जिसमे बाबा नामदेव को सह-किरदार निभाना था) जो अभी तक बन नहीं सकी। उसके बनने से लोगों को ऐसा लाभ मिलता कि उन्हे जिंदगीभर के लिए सिनेमाघरों मे फिल्म देखने के लिए शुल्क नहीं चुकाना पड़ता। 
 
नौबत ऐसी आ गई है कि लोग अब गुस्से में है। कुछ लोग ‘पीएम फिल्म’ के टिकट पर पैसे खर्च करके पछता रहे है। दर्शक नमो द्वारा अपनी ‘मंत्रिमंडल फिल्म’ मे इमरती दुर्रानी को अहम रोल देने से भी नाराज़ है। उनका तर्क है कि वह एक अनुभवहीन कलाकार (जिनके पास किसी नाटक अकादमी की डिग्री भी नहीं) है उनको फिल्म में इतना अहम रोल कैसे दिया जा सकता है। 

 
देखने वाली बात होगी नमो अपनी प्रॉडक्शन टीम के साथ क्या आम दर्शकों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने में कामयाब होंगे। वैसे यह बताना आवश्यक होगा कि इस प्रॉडक्शन हाउस की हालिया दो क्षेत्रीय फिल्मों ‘हर-नाना’ और ‘महा-राठा’ ने बॉक्स ऑफिस पर बड़ी कामयाबी पायी है। परंतु कुछ फिल्म समीक्षकों का कहना है कि यह फिल्म पी एम का जादू ही है कि क्षेत्रीय फिल्मों ने भी इतनी जबर्दस्त कामयाबी अर्जित की है। देखते हैं जल्द ही रिलीज होने वाली ‘दिल्ली सीएम’ की बाजी कौन सा प्रॉडक्शन हाउस मारता है? 
 

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