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एक कप चाय और सौ जज्बात

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सुशील कुमार शर्मा

, गुरुवार, 22 मई 2025 (15:09 IST)
चाय पर व्यंग्य : 21 मई को हमने विश्व चाय दिवस मनाया है। चाय, यानी वो द्रव्य जो भारतीय आत्मा में यूं रच-बस गया है जैसे राजनीति में वादे, या फिल्मों में आइटम सॉन्ग। यह वह अमृत है जो हर दफ़्तर के झगड़े को कुछ मिनटों के लिए विराम देता है, हर बेरोज़गार को ‘फिलहाल व्यस्त’ बना देता है, और हर गॉसिप को एक जायज़ मंच देता है।
 
सुबह की शुरुआत अगर चाय से न हो, तो लगता है सूरज भी किसी कॉर्पोरेट में काम करता है और देर से उठ रहा है। घर में बर्तन भले चमकें न, गैस भले खत्म हो जाए लेकिन 'कप भर चाय' का इंतज़ाम हर भारतीय रसोई में ब्रह्मांड के नियमों से भी ज्यादा पक्का होता है।
 
अब देखिए, चाय सिर्फ एक पेय नहीं, एक सामाजिक आन्दोलन है। मोहल्ले की चाय दुकान ही असली ‘लोकसभा’ है, जहां देश के सारे मसलों का समाधान ढाई इंच के स्टील के गिलास में डूबा पड़ा होता है। वहां बैठा हर आदमी न केवल अर्थशास्त्री होता है बल्कि विदेश नीति का विशेषज्ञ और बॉलीवुड समीक्षक भी।
 
'एक कट देना' बोलने वाला इंसान चाहे कितना भी टूटा हो, उसकी आत्मा में अभी थोड़ा कैफ़ीन बाक़ी होता है।
 
और यह तो मानिए कि चाय, केवल पेय नहीं, रिश्तों की नींव है। कई प्रेम कहानियां कट चाय से शुरू होकर परिवार की कटिंग में बदल जाती हैं।
 
दफ्तरों में ‘चाय ब्रेक’ असल में काम से ब्रेक नहीं, सांस लेने का एक मौका होता है, जहां बॉस भी ‘सर’ से ‘शर्माजी’ बन जाता है। और वो प्याली पकड़ते हुए जब बॉस कहे 'आज बड़ी थकावट है', तो समझ जाइए कंपनी में लोन एप्लाई करने का सबसे उपयुक्त समय आ गया है।
 
अब सरकारें तो चाय पर चर्चाएं करती हैं और नेता गर्व से कहते हैं 'मैं तो चाय वाला हूं।' पर सच बताऊं ठेले पर दिनभर तपते सूरज में खौलती केतली को प्रेम से देखते हैं, जैसे केतली नहीं कोई संस्कार हो और उसमें से प्रधानमंत्री बनने का रास्ता जाता हो।
 
लेकिन अब चाय भी वर्ग में बंट गई है, ग्रीन टी, ब्लैक टी, हर्बल टी, और पता नहीं कौन-कौन सी ‘टी’ जो चाय कम, लेबोरेटरी का प्रोजेक्ट ज्यादा लगती है। अरे भई, चाय वो जो कुल्हड़ में खनके, जिसमें अदरक की झन्नाट हो और जो गले से उतरते ही मां की फटकार और दादी के हल्के थप्पड़ की याद दिलाए।
 
तो इस विश्व चाय दिवस पर, मैं उन तमाम चाय वालों को सलाम करता हूं, जिन्होंने इस देश को नशे में नहीं, नशेड़ी बना रखा है वो भी सिर्फ चाय के।
 
तो आइए एक कप चाय हो जाए?
(शकर कम, व्यंग्य थोड़ा ज़्यादा)

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