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गरीबों के देवा की पूजा

व्यंग्य

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शंभूदयाल टेल
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क्या है कि मेरी बचपन से ही उल्टा चलने की आदत पड़ी हुई है। माँ कहती कि बेटा नहा ले तो उस दिन नहाता नहीं। पिताजी कहते कि बेटा कल परीक्षा है कुछ याद कर ले तो मैं याद नहीं करता उल्टा पिताजी को शेर-शायरी सुना डालता कि 'पिताजी किस-किस को याद करूँ किस किस को रोऊँ आराम बड़ी चीज है मुँह ढाँक के सोऊँ। जिस दिन मुझे स्कूल नहीं जाना होता उस दिन 'ईसकूल नहीं जाऊँगा' के वाक्य को 'गाउँजा हींन लकूसई' उल्टा करके बोलता था। उल्टी गिनती बहुत जल्दी सीखा था मैं। कहते हैं कि इमली भले ही बूढ़ी हो जाए उसकी खटाई नहीं जाती है या यूँ कहें कि बंदर भले ही बूढ़ा हो जाए गुलाटी मारना नहीं भूलता।

यही वजह है कि अब भी मेरी आदत कभी-कभार उल्टा-पुल्टा की है। लेखक टटपूँजीए ही होते हैं, बेचारों के पास होता ही क्या है कलम के सिवाय। यही सोचकर मैंने दिवाली पर धन की देवी के बजाए गरीबों के देवा की पूजा करने की सोच ली थी।

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अमावस के दिन जब मैं सुबह उठा तो बस एक मग्गा पानी से नहाया! घरवाली कहने लगी शरम करो आज तो लछमी पूजन है ठीक से नहा लो। मैंने कहा मैं आज सरकार के पानी बचाओ अभियान पर हूँ। एक बाल्टी नहाने का, दो बाल्टी कपड़े धोने का पानी बच रहा है व साबुन बच रहा सो अलग, यह क्या कम है?

शाम को जब चारों ओर लोग घी, तेल के दीये जला रहे थे तब मेरा दिल जल रहा था कि एक ओर तो देश में कई लोगों को साग बघारने के लिए 'दो टपका' तेल नहीं मिलता और लोग क्विंटलों से तेल दीये में जला देंगे। देश तो वैसे ही अंधकार में जा रहा है। बिजली विभाग ने घंटों बिजली बंद रखकर अपना कर्तव्य बखूबी निभाया।

मैंने जब बिजली विभाग में कटौती के बारे में जानने हेतु फोन लगाया तो पास खड़ा मेरा परम लंगोटिया यार श्रीवास्तव मुझे झिड़कते हुए बोला कि तू तो अपने आप को 'भोत बड़ा" जर्नलिस्ट और लेखक समझता है, तुझे 'इत्ता' भी नहीं पता कि आज लक्ष्मी पूजन है। लक्ष्मी हमेशा उल्लू पर बैठकर आती है, उल्लू को उजाले में नहीं अँधेरे में दिखता है, भला बिजली की चकाचौंध में लक्ष्मी का वाहन रास्ता भटक जाए तो? वास्तव में श्रीवास्तव की बातों में दम था। यदि लक्ष्मी उजाले में ही निकलती, उजाले में ही पूजा करवाती तो अमावस की काली रात के बजाए पूनम की दुधिया रोशनी में दिवाली पर्व ना मनवाती?

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खैर मुझे लक्ष्मी, बिजली, उल्लू से कोई लेना-देना नहीं क्योंकि मुझे तो गरीबों के देवा की पूजा करनी थी। आखिर वह घड़ी भी आ गई। लोग स्थिर लग्न में धन की देवी पूज रहे थे मैंने भी लग्न तो स्थिर ही चुना पर मैं लक्ष्मी के पाने के बजाए पटिए पर मेरा बीपीएल कूपन (बिलों पॉवर्टी लाइन) धर के बैठ गया। चार बजे ही मैंने उस पर लेमिनेशन यंत्र का रक्षा कवच चढ़वा दिया था। स्थिर लग्न में विधिविधान से पूजा-अर्चना कर ॐ बी.पी.एलाय नमः का इक्कीस बार जाप किया। फटे कुरते की झोली फैलाकर वर माँगा कि हे मेरे बीपीएल के कार्ड तू सदैव मेरे घर में स्थिर रहना। स्थिर लग्न में तेरी पूजा इसी कारण कर रहा हूँ। पूजन पश्चात कूपन की आरती उतारी, आरती के अंश इस प्रकार थे-

'ॐ जय बीपीएल देवा
स्वामी ॐ जय बीपीएल देवा
चावल, गेहूँ मिल जाए, क्या करूँ मेवा
ॐ जय बीपीएल देवा।
तुझसे केरोसिन मिले, और मिले शकर
जिसके भाग में तू नहीं, तेहसील के खाए वो चक्कर
सो तेरी करूँ सेवा ॐ जय बीपीएल देवा
कपिलधारा का कुआँ मिले, और मिले आवास
दीनदयाल का कार्ड मिले, जिसके है तू पास
वृद्धावस्था पेंशन भी तुझसे ही लेंवा।'
ॐ जय बीपीएल देवा।

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