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जॉनी का वेलेंटाइन-डे

डॉ. निखिल जोशी

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प्रिय मित्र बॉनी,
हैप्पी वेलेंटाइन डे।
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आशा है सकुशल होंगे। तुमने 'टीन एज' में रहते हुए वेलेंटाइन-डे मनाने की इच्छा प्रकट की है और इसके लिए मुझसे आवश्यक मार्गदर्शन माँगा है। यह मार्गदर्शन मैं तुम्हें ई-मेल द्वारा दे रहा हूँ, ताकि पत्र समय रहते तुम तक पहुँच सके और तुम उससे यथाशक्ति, यथा भक्ति लाभ उठा सको। चूँकि मैं उम्र में तुमसे कुछ दिन बड़ा हूँ, अतः जो भाव इस वर्ष तुम्हारे मन में अंकुरित हुआ है वह मेरे मन में पिछले वर्ष ही फूट पड़ा था।

हुआ यूँ कि मकर संक्रांति के दिन मेरी पतंग का पेंच एक दूसरी पतंग से लड़ गया। बहुत कोशिशों के बाद भी मैं उस पतंग को काट न सका, सो पतंग उड़ाने वाले को देखा। वह पतंग उड़ाने वाली निकली। हमारी पतंग के साथ-साथ हमारी आँखें भी लड़ गईं। उस दिन से मेरा तो मन ही पतंग हो गया। वह प्रेम के आकाश में ऊँची...और ऊँची उड़ान भरने लगा। अब हर दृश्य सौम्य व प्रिय लगने लगा। कोयल की कूक अब और मीठी लगने लगी।

वसंत ऋतु ने अपना जादू कर दिया था। दूरियाँ नजदीकियों में बदलीं। मुलाकातें हुईं और देखते ही देखते वेलेंटाइन-डे आ गया। यह मुझे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन लगने लगा। चूँकि यह दिन आधा माह बीतने पर आता है, अतः मेरी पॉकेट मनी भी आधी हो चुकी थी। फिर भी मैंने इसे यथाशक्ति मनाने की तैयारी की। अपनी प्रेमिका के लिए फ्रेंडशिप बेंड, वेलेंटाइन कार्ड, चॉकलेट्स और एक लाल गुलाब का फूल लिया। वेलेंटाइन-डे पर गुलाब के फूल की माँग बहुत अधिक रहती है। फूल अधिक सुर्ख था या उसकी कीमत, कहना मुश्किल था।

तय हुआ कि हम वेलेंटाइन-डे मेटिनी शो देखकर मनाएँगे। मैं टिकट का इंतजाम करने टॉकीज गया। वहाँ मेरे जैसे और भी युवा पहुँच गए थे। शहर के ठाटिया टॉकीज में टिकट खिड़की पर मक्खियाँ मारने वाले व्यक्ति के पास आज फुरसत नहीं थी।

मैं लाइन में लग गया। धक्का-मुक्की के बीच संघर्ष करता हुआ मैं टिकट खिड़की तक पहुँचा, लेकिन यह क्या? मेरे पहुँचते ही टिकट देने वाले व्यक्ति ने खिड़की पर 'हाउस फुल' का पटिया लगा दिया। सारे टिकट बिक चुके थे। मेरे तो हाथों से तोते उड़ गए। अब क्या होगा? क्या मेरा पहला-पहला वेलेंटाइन-डे भी नहीं मन पाएगा?

मेरी पतंग नीचे झोल खाते हुए गिरने लगी। तभी मैंने देखा, मेरी ही उम्र का एक लड़का मोबाइल फोन पर उसकी प्रेमिका को किसी बात पर अपनी सफाई दे रहा था, लेकिन उसकी सफाई स्वीकार नहीं हो रही थी। अंततः चार दिन पूर्व जन्म-जन्मातर के लिए साथ रहने की कसमें खाने वाले प्रेमी जोड़े में मोबाइल फोन पर ही झगड़ा हो गया। उनका फिल्म देखने का कार्यक्रम कैंसल हो गया। लड़का भुनभुनाता हुआ जाने लगा।

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मैंने उससे निवेदन किया तो वह अपने दो टिकट मुझे ब्लैक में बेचकर चला गया। मेरी पतंग हवा में फिर से उड़ने लगी। हल्की जेब के साथ बाइक पर सवार होकर मैं तयशुदा स्थान पर अपनी प्रेमिका को लेने रवाना हुआ। कोई मुझे न पहचाने, इसलिए मैंने फुल हेलमेट पहन लिया। आज मुझे कई युवा बाइक सवार हेलमेट पहने दिखे, जबकि हेलमेट को लेकर शहर में पुलिस की अभी कोई मुहिम नहीं चल रही थी। लड़कियों ने भी धूप से बचने के लिए अपने चेहरों को स्कॉर्फ से ढाँक रखा था। अब लड़के और लड़कियाँ दोनों ही पहचाने जाने के डर से सुरक्षित थे।

यह देखकर आज की हमारी युवा पीढ़ी की जागरूकता और तीक्ष्ण बुद्धि पर मुझे गर्व हुआ। बाइक के रुकते ही वह मेरे पास आई और पिछली सीट पर बैठ गई। मैं पहले ही लेट हो चुका था, इसलिए मेरी बाइक हवा से बातें करने लगी। हम सीधे टॉकीज पहुँचे। फिल्म शुरू हो चुकी थी। अँधेरे हॉल में मैंने मेरा हेलमेट और उसने उसका स्कॉर्फ निकाल दिया। कोई डिस्टर्ब न करे, इसलिए हमने अपने मोबाइल फोन साइलेंट मोड पर कर दिए। फिल्म अपनी रफ्तार से चलने लगी।

मुझे वेलेंटाइन-डे मनाना सार्थक लगने लगा। कुछ समय बाद इंटरवल हुआ। उसने कोल्ड्रिंक पीने की इच्छा जाहिर की। मैं उसके लिए कोल्ड्रिंक व मेरे लिए पॉपकार्न लेने बाहर निकला। पीछे-पीछे वह भी आई। उजाले में मुझे देखते ही वह चीख पड़ी। मैंने उसे देखा। वह मेरी प्रेमिका नहीं थी। मेरी स्थिति 'काटो तो खून नहीं' की बन गई। उसके स्कॉर्फ और मेरे हेलमेट पहनने के कारण यह स्थिति बनी थी। लोग इकट्ठा हो गए। सिनेमा हॉल के अंदर चल रही फिल्म से ज्यादा रोचक व असली दृश्य बाहर था।

लोगों ने हमसे पूछा-'तुम लोग वेलेंटाइन-डे मनाने आए हो?' हमने कहा- 'हाँ।' उन्होंने पूछा- 'फिर क्या दिक्कत है?' हमने कहा- 'हम एक-दूसरे के साथी नहीं हैं।' वेलेंटाइन-डे पर साथ फिल्म देखने आए हैं, लेकिन साथी नहीं हैं, यह बात लोगों को समझ नहीं आई। फिल्म पुनः शुरू हो गई थी, अतः लोग आश्चर्य प्रकट करते हुए हमें छोड़कर फिर से सिनेमा हॉल में चले गए। बाहर केवल हम दोनों बचे थे और तीसरा रिफ्रेशमेंट कॉर्नर वाला व्यक्ति, जो हमें घूरे जा रहा था।

हम दोनों आधी फिल्म छोड़कर टॉकीज से बाहर निकले। उसने फिर से स्कॉर्फ से चेहरा ढँका, ऑटो किया और रवाना हो गई। मैंने भी हेलमेट पहनकर बाइक का रुख घर की ओर किया। घर पहुँचकर देखा मेरे मोबाइल फोन में तीन मिस्ड कॉल्स थे, जो मेरी प्रेमिका के थे। वह कुछ देर मेरा इंतजार कर वापस अपने घर चली गई थी। मैं तो उसे सचाई बता ही न सका। बहुत दिनों तक उसने मुझसे बात नहीं की। मैंने उससे माफी माँगी। अब हालात ठीक हैं। आज सोचता हूँ कि हम दोनों ही कैसे इडियट्स थे! तुम भी तीसरे इडियट न बनो, इसलिए यह पत्र लिखा। वेलेंटाइन-डे की बधाई और शुभकामनाएँ।

तुम्हारा लव गुरु
जॉनी

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