एक जमाना था कि इंदिरा जी गरीबी हटाने को कृतसंकल्प थीं। उन्होंने हर जनसभा में तकरीर की तलवार भांजी। बेशर्म और हठी गरीबी टस से मस न हुई। उसी प्रकार, देश की हर सरकार भी भ्रष्टाचार की विषबेल को जड़ से उखाड़ने पर आमादा है पर भ्रष्टाचार भी गरीबी की तरह, वैसा का वैसा ही टिका है। उलटे, बजारत, सियासत, तिजारत पुलिस-फौज एक दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है। हमें तो कभी-कभी शक होता है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि धमनियों में दौड़ते लहू की तरह भ्रष्टाचार राष्ट्र की रगों में रच-बस गया है। अब तो जब तक साँस है, भ्रष्टाचार का मुल्क में वास है।
हमें अपने नेताओं की हर मुश्किल में हल निकालने की अभूतपूर्ण प्रतिभा पर दृढ़ और अटूट विश्वास है। हजारों साल के सामाजिक भेदभाव और नाइंसाफियों को उन्होंने मंडल लाकर चुटकियों में हल कर दिखाया। नहीं तो इतने समाज-सुधार के आंदोलन हुए। उनका क्या हश्र हुआ? वही सिफर का सिफर! मंडल ने दलित, उत्पीड़ित पिछड़े और वंचितों में एक नए आत्मविश्वास का संचार किया है। नौकरियाँ कम हैं तो क्या हुआ? एक नेक शुरुआत तो हुई। अब भारत की सरकारी सेवाओं में पूरे देश का प्रतिनिधित्व है गाँव से लेकर शहरों तक और इंजीनियरों से लेकर डॉक्टरों तक।
अपने पल्ले तो एक बात पड़ी है। जहाँ सरकार को लगता है कि विचार-विमर्श, चर्चा-भाषण से बात नहीं बनती है तो वहाँ वह झट से आरक्षण लागू कर देती है। देखने में आया है कि यह एक सर्वमान्य निदान है, हर समस्या का। सरकार को बताया गया कि मेडिकल और तकनीकी क्षेत्रों की उच्च शिक्षा में पिछड़ों को अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही है, उसने आनन-फानन वहाँ कोटे का प्रावधान कर डाला। कोटा कोई ऐसा-वैसा मामूली हथियार नहीं, जादू की छड़ी है। सियासी आका ने शून्य में छड़ी हिलाई, मन में उच्च शिक्षा, प्रवेश, कोटा बुदबुदाया और भर्ती में पिछड़ों की दिक्कतों का मसला उड़न छू।
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अपनी राय में करप्शन कम करने को आरक्षण-मैजिक कैसा रहेगा? उन्मूलन तो खैर नामुमकिन है। फिलहाल आलम यह है कि सरकार एक रुपया खर्चे तो बामुश्किल चवन्नी बराबर रकम लक्ष्य तक पहुँचती है। इसका एक ही इलाज है। सरकार कोटा कर दे, दस प्रतिशत मंत्री का और दूसरा दस बाबू, अफसर, संतरी वगैरह-वगैरह का। हर दफ्तर में जन सूचना के लिए सार्वजनिक नोटिस लगाए जाएँ। काम करवाने का भ्रष्ट शुल्क कुल जमा बीस प्रतिशत है। इससे ज्यादा किसी हाल में न दें और रसीद जरूर लें।
हमें यकीन है। ऐसी पहल से भ्रष्टाचार की दरों में एकरूपता आएगी, पूरे देश में। करप्शन के पर कतरे जाएँगे, मनमानी पर रोक लगेगी और पारदर्शिता झलकेगी सरकारी प्रक्रिया में। जनता को, कमोबेश इतना तो पता रहेगा कि कितना हिस्सा किसका है। आपको क्या लगता है?