कई बार ऐसा होता है कि आप खाना खाते हैं तो सब्जी, दाल या रसदार आइटम का एक टपका आपकी कमीज पर गिर जाता है। झट से थोड़ा-सा पानी लेकर रूमाल से आप उसे साफ कर डालते हैं मगर फिर भी दाग तो रह ही जाता है। इन दिनों अगर टपका दाल का हो तो लोग उसे साफ नहीं करते। शर्ट पर लगाए-लगाए घूमते रहते हैं क्योंकि दाल खाना आजकल रईसी की नई निशानी जो ठहरी। दाल का दाग न हुआ, अमीरी का तमगा हो गया। आपके धनवान होने की जाहिर सूचना-सा पीला-पीला, उभरा-उभरा, भव्य निशान।
इसी हफ्ते हमारे दफ्तर में जोशी की कमीज पर नजर आया दाल का दाग। बस फिर क्या था! छोटी-मोटी पार्टी देनी पड़ी उसे। सभी उसे बधाई दे रहे थे। वह भी गदगद था। दिनभर दफ्तर में अरहर की दाल और जोशी की रईसी की चर्चा होती रही। गुप्ता बोला, 'यार, अब तो तुम एक लंबी-सी गाड़ी खरीद ही लो। फोर्ड आइकॉन, होंडा सिटी जैसी कोई लक्जरी। अब ये क्या कि खाने में इतनी स्टैंडर्ड की दाल और गाड़ी मेंटेन करते हो मारुति एट हंड्रेड।'
'खरीद लेगा। मेरा यार होंडा सिटी भी खरीद लेगा। जिगर होना चाहिए। जोशी के पास है। दाल खाना हो या गाड़ी खरीदनी हो, जिगर वाले ही कर सकते हैं। ये साला तिवारी तो इन दिनों ' मेथी-पालक-कद्दू से आगे बढ़ता ही नहीं।'
'कम मत समझो तिवारी को। छुपारुस्तम है। सालों से माल विभाग में जमा है। ये जोशी तो खाता कम है दिखाता ज्यादा है। पता नहीं दाल खाई भी है या बस शर्ट पर गिरा कर आ गया है।'
'सही बात है, वह तो नई मैडम पर इंप्रेशन मारने के लिए दाल गिरा कर आया है, वरना किसी में दम नहीं है यहाँ जो दाल खाना अफोर्ड कर सके । क्यों ठाकुर साब?'
'पता नहीं, अपन तो ब्याह-शादी वाले हैं। घर में इतना महँगा शौक नहीं पालते। दाल तो बस-रिसेप्शन-टु-रिसेप्शन।'
'सच कहा ठाकुर ने। मैंने भतीजी की शादी तय की तो लड़के वालों ने कहा, 'हमें दहेज में कुछ नहीं चाहिए। बस आप बारातियों के भोजन में दाल अवश्य रखवाएँ।'
'और हमारे यहाँ तो हद हो गई कल। मिसेस पड़ोस में एक कटोरी दाल उधार माँगने गई तो बोले, 'भाभीजी, रसीदी टिकट लगा प्रॉमिसरी नोट साइन करना पड़ेगा - मैं धारक को वचन देता हूँ कि माँगे जाने पर दो कटोरी दाल मय ब्याज के ...' कहकर जोर का ठहाका लगाया गुप्ता ने। सभी एक साथ हँस पड़े । ठहाके में दाल का निवाला छिन जाने का दर्द काफूर हो गया।
उसी रात सपने में मेरी अरहर की दाल से मुलाकात भी हो गई । मैंने कहा, 'खुश तो बहुत होगी तू रईसों की थाली में सजकर।'
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दाल ने इठला कर कहा, 'बहुत-बहुत। लक्जरी कार व प्लाज्मा टी.वी. जैसी वस्तुओं के साथ जुड़ने लगा है मेरा नाम। यूँ ही नहीं बनता कोई वी.आई.पी.। फर्श से अर्श तक का सफर मैंने व्यापारियों, उद्योगपतियों, नौकरशाहों, जमाखोरों, सट्टेबाजों और राजनेताओं की मिलीभगत से पूरा किया है। अब मैं तुम जैसे टुटपूँजियों के यहाँ गलने वाली नहीं। सफल की चीजों में मेरा भाव आज सबसे ऊपर है। देखना एक दिन सोना मुझसे मात खा जाएगा।'
मैंने पूछा, 'हम आम जन जिएँगे कैसे?'
'वो तुम्हारा सिरदर्द है।'
'और सरकार का नहीं है?'
'क्या एक वोट में ठेका ले रखा है उसने। सड़क, पुल, स्कूल, अस्पताल तो उपलब्ध कराए ही ऊपर से तुम्हारे गेहूँ, दाल, चावल की व्यवस्था भी करे? और क्या सरकार चलाने वालों के पेट नहीं लगे हैं? बच्चों, नाती-पोतों के नाम स्विस बैंक में जमा करें कि तुम्हारा पेट भरने भिड़ें? चंदा लिया है व्यापारियों से तो उनके प्रति भी सरकार की कोई जिम्मेदारी बनती है या नहीं ? फिर अंकल सैम की भी सुननी पड़ती है। तुम साले गरीब तो हमेशा रोते ही रहोगे,' वह सरकार के पक्ष में खम ठोंक कर खड़ी हो गई।
मैंने कहा, हम जिएँगे कैसे इस भाव पाकर तुम्हें?
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'बहुत बेभाव रखा है तुम लोगों ने मुझे। घर की मुर्गी अब सस्ती पड़ेगी तुम्हें। बेटा, अब याद आएँगे तुम्हें आटे-दाल के भाव। अब नहीं कह पाओगे कभी, 'दाल से खा दाल से।'
वह इतराती हुई बोलती रही, 'आज मैं रईसी की नई निशानी हूँ। उन्हीं को मयस्सर हूँ जो काली कमाई करते हैं। तुम जैसे बाबूओं, मजदूरों के हाथ आने वाली नहीं मैं,' कहकर बॉय करती हुई वह थाली से ही नहीं, सपने से भी चली गई। जाते-जाते शक्कर को भी अपना रास्ता दिखाती गई।
गरीब की थाली में अब बचे हैं नमक, प्याज, रोटी। मगर वे भी कब तक?