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रैगिंग की मजेदार रिपोर्ट

व्यंग्य

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विनय मोघे
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ससुरालगंज थाना क्षेत्र में आए दिन कोई न कोई घटना होती रहती है। यह बात और है कि इनमें से कई घटनाओं की रिपोर्ट लिखवाई ही नहीं जाती तथा कई घटनाओं की रिपोर्ट लिखी नहीं जाती। पिछले दिनों ससुरालगंज थाने में एक अनोखी तथा दिलचस्प रिपोर्ट लिखी गई। अनोखी इसलिए कि यह लिखवाई भी गई और लिखी भी गई।

यह रिपोर्ट ससुरालगंज में ब्याह कर आई एक नई-नवेली बहू ने लिखवाई थी। उसने अपनी रिपोर्ट में यह लिखवाया था कि ससुराल पक्ष के सीनियर मेम्बर उसकी रैगिंग ले रहे हैं। पहले तो थानेदार ने आदतन ऐसी रिपोर्ट लिखने से मना कर दिया। पर जब बहू नहीं मानी तो रिपोर्ट न लिखने के पच्चीस कारण गिना दिए।

जैसे रैगिंग तो शहर के कॉलेजों में होती है तो 'रैगिंग' की जगह 'प्रताड़ना' शब्द लिखवाना होगा आदि। इस पर बहू ने कह दिया कि वह भी कॉलेज से पढ़कर सीधे बहू ही बनी है। रैगिंग का 'हैंग ओवर' अब तक है, वह तो इसे रैगिंग ही कहेगी। दूसरी बात, 'प्रताड़ना' शब्द अबला नारी के बारे में लिखा जा सकता है, मैं तो सबला हूँ। अब ऐसी बला को टालने के लिए थानेदार ने 'रैगिंग' के साथ ही रिपोर्ट लिखी। यह बात और कि रैगिंग लिखे या प्रताड़ना, थानेदार का लिखा कौन पढ़ पाता है और लिखी गई रिपोर्ट पर क्या कार्रवाई होती है, यह तो हम सभी जानते हैं।

खैर, आखिरकार रिपोर्ट लिखी गई। इसमें लिखवाया गया कि जब से वह ब्याह कर घर में आई है, घर के सभी सीनियर मेम्बर्स यथा- जेठ्स, जेठानीज, देवर्स, देवरानीज, ननद्ज, ससुर, सास सभी अपने-अपने तरीके से उसकी रैगिंग ले रहे हैं। इसमें पति शामिल नहीं है। पर वह मूक दर्शक है और अन्याय का साथ देने वाला भी अन्यायी होता है, अतः वह भी इसमें शामिल माना जाए। जब से उसने ससुराल में कदम रखा है, उसका चैन कहीं खो गया है।

उसकी हर गतिविधि पर कई निगाहें लगी रहती हैं। एक साथ 'बहू-बहू' या 'भाभी-भाभी' की कई आवाजें उसका पीछा करती हैं। कोई मसाले वाली चाय माँगता है, वह भी दिन में कई-कई बार, तो कोई गाना गँवाना चाहता है, वह भी डाँसिंग स्टेप्स के साथ। कोई कढ़ाई-बुनाई की नई-नई डिजाइन बनवाना चाहता है, तो कोई उसके ही हाथ के पराठे खाना चाहता है।

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कोई चाहता है कि वह कॉलेज के नोट्स बनाए, तो कोई चाहता है वह उसे किसी पत्रिका में छपे लेख को पढ़कर सुनाए या उसके साथ मंदिर तक हो आए ताकि वे दिखा सकें कि यही है हमारी नई बहू। कोई चाहता है कि वह उनके बेटे का होमवर्क देख ले ताकि वे दफ्तर से लौटे उनके पतिदेव से बतिया लें। तो कोई कहता है घर में ही घुसकर मत रहा करो, कभी-कभार अड़ोस-पड़ोस में भी हो आओ। संबंध बनाने से ही बनते हैं। सब चाहते हैं कि उनकी आवाज सबसे पहले सुनी जाए। इस रैगिंग से बहू रानी परेशान हो चुकी है।

वैसे थानेदारजी कम ही हँसते थे पर इस बार रिपोर्ट लिखने के बाद वे जोर से हँसे। थानेदार की भाव भंगिमा से अनुमान लगाया जा सकता था कि जब बड़ी भारी रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं होती, तो यह तो एक बहुत ही आम रिपोर्ट है। हर दूसरे घर में यही तो सब होता है। हर घर में ही नई-नवेली बहू की रैगिंग ली जाती है, ताकि घर के सीनियर्स से उसका इंट्रोडक्शन प्रॉपरली हो जाए।

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