रोहित श्रीवास्तव
सोशल मीडिया और इंटरनेट की जाने-अनजाने चेहरों वाली रंगबिरंगी दुनिया में जब हम अपने हाल में ही जुड़े किसी ‘ऑनलाइन-फ्रेंड’ से उनके परिचय के बारे में पूछते हैं तो वह एकदम से ‘झल्लाता’ है। गुस्से और बोखलाहट में आपको अपने बारे मे कुछ ऐसे ‘बोल-बचन’ देता है कि आपके होश तो उड़ ही जाते हैं साथ मे आपके जोशीले तेवर ‘कुल्फी’ की तरह पिघल कर ठंडे हो जाते हैं।
वह बेचारा...गम का मारा...फेसबुक ही हो जिसका सहारा... अपनी भावनाओं को कुछ इस तरह से अंदाज़-ए-बयां करता है-
•मैं वह हूं जो आज फेसबूक जैसी सोशल साइट पर ‘मनमाफिक-स्टेटस’ डालने से डरता है उसे लगता है अगर वह मोदी/राहुल/केजरीवाल के विरोध या समर्थन में लिखता है तो कोई उसे ‘मोदी का अंध-भक्त’ बोलता है तो कोई कांग्रेसी या फिर आपिया-‘आप-टार्ड’।
•मैं वह हूं जो वोट डालने के लिए जाता है तो बीवी को लगता है ‘डेट’ पर जा रहा है। बार-बार फोन पर पूछती है ‘लाइन’ मे लगे हो या नहीं, कितनी भीड़ है, वोट डाला या नहीं। दरअसल वह जानना चाहती है कि मैं वाकई में वोट डालने गया हूं या नहीं।
•मैं वह हूं जो आए दिन किसी दूसरे आदमी की फोटो की ‘टेग’ में बेवजह फंसता है। मैं वह भी हूं जो आजकल ‘प्रोफ़ाइल पिक्चर’ और ‘कवर पिक’ चेंज करने से घबराता है, डरता है कि न जाने कौन ‘ऐसा-वैसा’ कमेंट कर दे। मैं वह हूं जो हर दूसरे प्रोफ़ाइल-आईडी को फेक होने की ‘शक-शंका’ करता है। मैं वह हूं जो फोटो डाल कर सोचता है कि इसके केप्शन में क्या लिखूं? कहीं ‘शरारती-दोस्त-लोग’ मजे न लेने लग जाए।
•मैं वह हूँ जो फेसबुक-प्रोफ़ाइल का नाम क्या रखूं, कई बार सोचता-समझता हूं, मुझे लगता है कहीं मेरा ‘अनुपयुक्त-नाम’ देख कर लोग ‘ब्लॉक’ न कर दे। रायता किसी का भी हो बेवजह ‘फंसता’ मैं ही हूं।
•फेसबुक के करोड़ो यूजर तो देखे होंगे साहब आपने। उसमे से ही कोई भी ‘प्रोफ़ाइल’ खोल कोई एक चेहरा देख लीजिए वह मैं ही हूं। 'आई एम जस्ट ए स्टुपिड कॉमन फेसबूक यूजर। हू वांट्स टू क्लीन हीज फ्रेंड-लिस्ट एंड वॉल'
•जो बता रहा हूं यह सब अचानक नहीं हुआ जनाब। बेशक व्यस्तता में ‘व्यस्त’ था। लाइक और कमेंट के चक्कर में बेशक भूल गया था। पर आज बाकी बचा एक और ‘एब्यूजीव-यूजर’ जरूर ब्लॉक होगा। पिछली बार इसने मेरे ग्रुप के पोस्ट पर अभ्रद्र लिखा था। कल मेरे फोटो पर लिखेगा,इनबॉक्स में जाकर लिखेगा। तब तक लिखते रहेंगे साहब जब तक हम ऐसे लोगों को अपनी फ्रेंड लिस्ट से नहीं हटाएंगे।
• मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं..... लोगों में गुस्सा बहुत है उन्हें आज़माना बंद कीजिए साहब। आपको बेबस करने के लिए केवल मेरा एक ही ‘स्टेटस’ काफी है।
•जो लोग फेसबूक पर ‘अभद्र’ टिप्पणी करते हैं वह क्या हमसे ज्यादा बुद्धिमान और गुणी होते हैं? अरे गूगल में जा कर देखिए साहब हजारों साइट मिलेंगी ऐसी अभद्र टिप्पणियों के खज़ानों की।
•‘गाली कैसे दी जाती है’ कब दी जाती है सब गूगल पर मिलता है।
•एक आदमी ‘अभद्र’ है...संवेदनहीन है...कुतर्की है....या नहीं। यह जानने के लिए आपको उसके 10 अभद्र/अनावश्यक/अश्लील कमेंट की आवश्यकता पड़ती है। सिर्फ शह दिए जा रहे हैं, दिए जा रहे हैं। क्यों नहीं आप उन्हें ब्लॉक करते? फ्रेंड-लिस्ट से हटाते? आप जैसे लोग ही इन 'फेस्बुकी-कीड़ों' का सफाया नहीं करेंगे तो हमे ‘ब्लॉक’ करना होगा साहब।
•हाल में की गई ऐसे लोगो की तरफ से लगातार अभद्र टिप्पणियों पर एक बहुत बड़ा सवाल था कि भाई ‘हम’ तो ऐसे ही कमेंट करेंगे तुम क्या कर लोगे?
'ऑन अ फ्राइडे, रिपीटडली ऑन ट्यूस्डे। आई एम जस्ट ब्लोक्किंग देम ऑन वेडनेसडे’
•मेरा अपना कोई था जिस पर अभद्र टिप्पणियां हुई थी। हर रोज फेसबुक पर न जाने कितने जाने-अंजाने चेहरों को हम ‘हाय-हैलो’ करते हैं। चेट भी करते हैं। ‘उससे भी चेट हुआ करती थी मेरी। 24-25 साल का था वह। हर रोज ऑनलाइन-मिलता था फेसबुक पर। मेरे स्टेटस को भी लाइक और कमेंट किया करता था। हादसे से एक दिन पहले उसने अपनी प्रोफ़ाइल पिक्चर दिखाई थी मुझे।
शायद उसकी ‘मंगनी’ की फोटो थी। मैंने लाइक भी की थी। वह बहुत खुश था। एक दिन में लॉगिन नहीं कर पाया और उसने उसके फोटो पर ‘अभद्र टिप्पणी’ की वजह से फेसबुक से अपना अकाउंट ही डिलीट कर दिया। फिर जब मैं फेसबुक पर गया सब नए चेहरे थे। अपनों को फेसबुक छोड़ते देखा है मैंने पर यह मंजूर नहीं है साहब। कोई अभद्र टिप्पणी करके यह निश्चित नहीं करेगा कि मुझे फेसबुक कब ‘छोड़ना’ है?
•उन्हें फ़ख्र है अपनी अभद्र-टिप्पणियों’ पर। हमें फ़क्र है खुद पर, उन्हें ‘ब्लॉक’ करने पर।
•मैं चाहता हूं मेरा दोस्त/भाई/बहन/रिश्तेदार अगर फेसबुक पर आए तो बेखौफ स्टेटस और फोटो डाले।
•वह लोग मेरे जैसे लोगों की पोस्ट पर 100 ‘अभद्र-अनावश्यक-कमेंट’ करे तो ठीक और हम उन जैसे 4 लोगों को ब्लॉक कर दे तो यह अजीब है। वाह साहब।
•आप की गलती नहीं है आम फेसबुक-यूजर से उम्मीद भी यही रहती है। आम यूजर की तरह लोगों के स्टेटस लाइक करो....कमेंट करो। आम आदमी की तरह लोगों की फालतू की टिप्पणियां सहो। आम फेसबुक यूजर की तरह ‘अकाउंट-डी एक्टिवेट’ मार दो।
समझे की नहीं समझे? मैं सिर्फ एक ‘बेवकूफ-आम-फेसबुक-यूजर’ हूं।
इतना कहते ही पूछने वाला कहता है बस भाई बस आपकी व्यथा सुन कर आंखों में ‘कीचड़’ भर आया। अब कुछ मत बोलना ‘भाई’। मैं समझ गया ‘यू आर द स्टुपिड कॉमन फेसबुक यूजर’!
(यह काल्पनिक-हास्य-पटकथा वेडनसडे फिल्म के एक सीन से प्रेरित होकर लिखी गई है। लेखक ने केवल एक आम फेसबुक-यूजर के मनोभाव-मनोदशा को समझने की कोशिश की है)