कपास के ये नन्हें पौधे क्यारीदारजैसे असंख्य लोग बैठ गए होंछतरियाँ खोलकरपौधों को नहीं पताउनके किसान ने कर ली है आत्महत्याकोई नहीं आएगा उन्हें अगोरनेकोई नहीं ले जाएगा खलिहान तकसोच रहे हैं पौधेउनसे निकलेगी धूप-सी रुईधुनी जाएगीबनेगी बच्चों का झबला
नौगजिया धोती
पौधे नहीं जानते
कि बुनकर ने भी कर ली है
खुदकुशी अबके बरस
क्वांर-कार्तिक की बदरियाई धूप में
बढ़े जा रहे हैं कपास के ये पौधे
जैसे बेटी बिन माँ-बाप की।