बारिश हैया घना जंगल बाँस काउस पार एक स्त्री बहुत धुँधलीमैदान के दूसरे सिरे पर झोपड़ीजैसे समंदर के बीच कोई टापूवह दिख रही है योंजैसे परदे पर चलता कोई दृश्यजैसे नजर के चश्मे के बगैर देखा जाए कोई एलबमजैसे बादलों में बनता है कोई आकारजैसे पिघल रही हो बर्फ की प्रतिमाघालमेल हो रहा है उसके रंगों मेंऊपर मटमैला
नीचे लाल
बीच में मटमैला-सा लाल
स्त्री निबटा रही है जल्दी-जल्दी काम
बेखबर
कि देख रहा है कोई
चली गई है झोपड़ी के पीछे
बारिश हो रही है तेजतरजैसे आत्मा पर बढ़ता बोझनशे में डोलता है जैसे संसारपुराने टीवी पर लहराता है जैसे दूरदर्शन का लोगोदृश्य में हिल रही है वह स्त्रीमाँज रही है बर्तन उलीचने लगती है बीच-बीच मेंघुटने-घुटने भर आया पानीतन्मयता ऐसी किकब हो गई सराबोर सर से पाँव तकजान ही नहीं पाईअंदाजा लगाना है फिजूलकि होगी उसकी कितनी उम्रलगता है कि बनी है पानी ही कीकभी दिखने लगती है बच्चीकभी युवतीकभी बूढ़ीशायद कुछ बुदबुदा रही है वहया विलाप कर रही है रह-रह करमैदान में बारिश से ज्यादा भरे हैं उसके आँसूथोड़ी ही देर में शामिल हो गई उसकी बेटीफिर निकला पति नंगे बदनहाथ में लिए टूटा-फूटा तसलावे चुनौती देने लगे सैलाब कोजो घुसा चला आता था ढीठ उनके संसार में
बारिश होती गई तेजतर
तीनों डूबने-उतराने लगे दृश्य में
जैसे नाविक लयबद्ध चप्पू चलाएँ
और महज आकृतियाँ बनते जाएँ
मैं ढीठ नजारा कर रहा था परदे की ओट से
तभी अचानक जागा गँदले पानी की चोट से
इस अश्लीलता की सजा
आखिरकार मिल ही गई मुझे।