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ईरान का चहारशांबे सूरी भी है लोहड़ी की तरह एक पर्व है, लेकिन इसे कब और क्यों मनाते हैं?

हमें फॉलो करें ईरान का चहारशांबे सूरी भी है लोहड़ी की तरह एक पर्व है, लेकिन इसे कब और क्यों मनाते हैं?

WD Feature Desk

, शनिवार, 4 जनवरी 2025 (17:41 IST)
चहारशंबे सूरी (Chaharshanbe Suri) ईरान और मध्य एशिया में मनाया जाने वाला एक प्राचीन पारसी (Zoroastrian) त्योहार है। यह नवरोज (Nowruz) यानी ईरानी नववर्ष से पहले की रात, मंगलवार और बुधवार के बीच मनाया जाता है। इस्लाम से पहले ईरान में पारसी धर्म था जो उनके धार्मिक त्योहार के साथ ही प्राचीन काल से चले आ रहे पारंपरिक त्योहार भी मनाते थे। उनमें से कुछ त्योहार आज भी ईरान में प्रचलन में हैं क्यों‍कि यह त्योहार ईरान की संस्कृति और परंपरा के साथ ही राष्ट्रीयता का हिस्सा है। उन्हीं में से कुछ पर्व है- नौरोज़, चाहरशांबे सूरी, काशान रोज़वाटर फेस्टिवल, सिज़देह बेदार, केसर की फसल और यल्दा। इसमें नौरोज और चहारशांबे सूरी त्योहार ज्यादा प्रचलित है। यह त्योहार भारत के लोहड़ी पर्व से एकदम मिलता जुलता पर्व माना जाता है। ALSO READ: लोहड़ी उत्सव के 10 रोचक तथ्य, जानिए
 
त्योहार का अर्थ और महत्व
'चहारशंबे' का अर्थ है बुधवार, और 'सूरी' का अर्थ है लाल रंग या आग। यह त्योहार अंधकार, बुरी शक्तियों और दुर्भाग्य को दूर कर नई शुरुआत का स्वागत करने के लिए मनाया जाता है। यह नवरोज (ईरानी नववर्ष) की तैयारियों का एक हिस्सा है। इस दिन लोग एक-दूसरे के घर जाते हैं और उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं। यह त्योहार बुरी नजर और नकारात्मक शक्तियों को दूर करने का प्रतीक है। लोग घरों को साफ करते हैं और शुभता लाने के लिए विशेष अनुष्ठान करते हैं। यह रिश्तों को मजबूत करने और नई शुरुआत का जश्न मनाने का अवसर होता है।
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चहार-शंबे सूरी : ईरान में भी नववर्ष का त्योहार मकर संक्रांति और लोहड़ी की तरह मनाते हैं। यह त्योहार भी लोहड़ी से ही प्रेरित है जिसमें आग जलाकर मेवे अर्पित किए जाते हैं। मसलन, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में मनाई जाने वाली लोहड़ी और ईरान का चहार-शंबे सूरी बिल्कुल एक जैसे त्योहार हैं। इसे ईरानी पारसियों या प्राचीन ईरान का उत्सव मानते हैं। यह त्योहार नौरोज या नवरोज के एक दिन पहले मनाया जाता है। इसमें एडिशनल यह है कि कुछ जगहों पर आग पर चलने का करतब भी दिखाया जाता है।ALSO READ: पारसी देश ईरान कैसे बना मुस्लिम राष्ट्र?
 
आतिशबाज़ी, आग, रोशनी, गीत और नृत्य: कहते हैं कि नवरोज़ से पहले आखिरी बुधवार की पूर्व संध्या पर लाल बुधवार के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन रात में आकाश आतिशबाजी से जगमगा उठता है, और अलाव सड़कों पर धधकते हैं। लोग बड़ी संख्या में इकट्ठा होते हैं और 'तुम्हारा लाल रंग मेरे लिए, मेरा पीला रंग तुम्हारे लिए' गाते हुए आनंद लेते हैं। ये छंद इस ओर संकेत करते हैं कि आप आग को अपना पीला रंग देते हैं और उसकी गर्म ऊर्जा लेते हैं। इसमें शामिल होने के बाद, आप इसे अपनाने का फैसला कर सकते हैं। घरों और सड़कों को रोशनी से सजाया जाता है। यह उत्सव खुशियों और उल्लास का प्रतीक है। लोग आग के आसपास एकत्र होकर गीत गाते और नृत्य करते हैं। यह त्योहार समुदाय को एकजुट करता है और सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा देता है।
 
विशेष भोजन और पकवान: इस दिन यानी चहारशंबे सूरी के मौके पर खास ईरानी पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं। जैसे अजील (Ajil)  मेवों और सूखे फलों का मिश्रण खाया जाता है और दूसरे खास व्यंजन एक सूप है। अश-ए-रेश्तेह (Ash-e Reshteh) एक विशेष ईरानी सूप, जो त्योहार पर लोकप्रिय है।ALSO READ: मकर संक्रांति, लोहड़ी, पोंगल और उत्तरायण का त्योहार कब रहेगा?

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