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9वीं लोकसभा 1989 : सबसे बड़े दल के बावजूद कांग्रेस सत्ता से दूर रही

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, मंगलवार, 5 मार्च 2019 (19:12 IST)
9वीं लोकसभा के चुनाव भारतीय चुनावी राजनीति में कई मायनों में ऐतिहासिक घटना रही है। 1984-85 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद आयोजित पिछले आम चुनावों में कांग्रेस ने राजीव गांधी के नेतृत्व में भारी बहुमत के साथ लोकसभा में 400 से अधिक सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन इस बार के आम चुनाव में विश्‍वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने।
 
दरअसल, 1989 के आम चुनाव कई संकटों से जूझ रहे कांग्रेस के युवा नेता राजीव के नेतृत्व में लड़े गए और कांग्रेस सरकार अपनी विश्वसनीयता और लोकप्रियता खो रही थी। ये संकट आंतरिक और बाहरी दोनों थे।
 
बोफोर्स कांड, पंजाब में बढ़ता आतंकवाद, एलटीटीई और श्रीलंका सरकार के बीच गृह युद्ध उन समस्याओं में से कुछ थीं, जो राजीव गांधी की सरकार के सामने थीं। विश्वनाथ प्रताप सिंह, राजीव के सबसे बड़े आलोचक थे जिन्होंने सरकार में वित्त मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय का कामकाज संभाल रखा था। सिंह के रक्षामंत्री के रूप में कार्यकाल के दौरान यह अफवाह थी कि उनके पास बोफोर्स रक्षा सौदे से संबंधित ऐसी जानकारी थी, जो राजीव गांधी की प्रतिष्ठा को बर्बाद कर सकती थी।
 
इस बात को लेकर सिंह को शीघ्र ही मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया गया और फिर उन्होंने कांग्रेस और लोकसभा में अपनी सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अरुण नेहरू और आरिफ मोहम्मद खान के साथ जनमोर्चा का गठन किया और इलाहाबाद से फिर से लोकसभा में प्रवेश किया।
 
11 अक्टूबर, 1988 को जन मोर्चा, जनता पार्टी, लोकदल और कांग्रेस (एस) के विलय से जनता दल की स्थापना हुई ताकि सभी दल एकसाथ मिलकर राजीव गांधी सरकार का विरोध करें। जल्द ही द्रमुक, तेदेपा और अगप सहित कई क्षेत्रीय दल जनता दल से मिल गए और नेशनल फ्रंट की स्थापना की।
 
पांच पार्टियों वाला नेशनल फ्रंट, भारतीय जनता पार्टी और दो कम्युनिस्ट पार्टियों भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी (सीपीआई-एम) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के साथ मिलकर 1989 के चुनाव मैदान में उतरा।
 
लोकसभा में 525 सीटों के लिए यह चुनाव 22 नवंबर और 26 नवंबर, 1989 को 2 चरणों में आयोजित हुए। नेशनल फ्रंट के लिए लोकसभा में यह आसान बहुमत प्राप्त हुआ और उसने वाम मोर्चे और भारतीय जनता पार्टी के बाहरी समर्थन से सरकार बनाई। राष्ट्रीय मोर्चे की सबसे बड़े घटक जनता दल ने 143 सीटें जीतीं, इसके अलावा माकपा और भाकपा ने क्रमशः 33 और 12 सीटें हासिल कीं। निर्दलीय और अन्य छोटे दल 59 सीटें जीतने में कामयाब रहे।
 
हालांकि, कांग्रेस अभी भी 197 सांसदों के साथ लोकसभा में अकेली सबसे बड़ी पार्टी थी। भाजपा 1984 के चुनावों में 2 सीटों के मुकाबले इस बार के चुनावों में 85 सांसदों के साथ सबसे ज्यादा फायदे में रही। सिंह भारत के 10वें प्रधानमंत्री बने और देवीलाल उपप्रधानमंत्री बने। 
 
उन्होंने 2 दिसंबर, 1989 से 10 नवंबर 1990 तक कार्यभार संभाला। भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी द्वारा राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मुद्दे पर रथयात्रा शुरू किए जाने और मुख्यमंत्री लालू यादव द्वारा बिहार में आडवाणी को गिरफ्तार किए जाने के बाद पार्टी ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया। सिंह ने विश्वास मत हारने के बाद इस्तीफा दे दिया।
 
चंद्रशेखर 64 सांसदों के साथ जनता दल से अलग हो गए और उन्होंने समाजवादी जनता पार्टी बनाई। उन्हें बाहर से कांग्रेस का समर्थन मिला और वे भारत के 11वें प्रधानमंत्री बने। उन्होंने आखिरकार 6 मार्च, 1991 को इस्तीफा दे दिया, जब कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सरकार, राजीव गांधी की जासूसी करवा रही है।

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