AIADMK political history: भारत रत्न सम्मान प्राप्त अभिनेता और राजनेता एमजी रामचंद्रन ने द्रमुक से अलग होकर 17 अक्टूबर 1972 को ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (एआईएडीएमके) की स्थापना की। इस पार्टी का जनाधार मुख्य रूप से तमिलनाडु और केन्द्रशासित प्रदेश पुडुचेरी में है। 1989 में इस दल की मुखिया जयललिता बनीं और अंतिम समय तक वे इस पद पर बनी रहीं। इसका चुनाव चिन्ह दो पत्तियां हैं। जयललिता पांच बार राज्य की मुख्यमंत्री बनीं।
एआईएडीएमके 1977 में डीएमके को हराने के बाद सत्ता में आई और 30 जुन 1977 को एमजी रामचंद्रन राज्य के 7वें मुख्यमंत्री बने। रामचंद्रन के नेतृत्व में अन्नाद्रमुक ने साल 1980 और 1984 में भी सत्ता हासिल की और वे मृत्युपर्यंत 1987 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे। 'नमादु अम्मा' के नाम से पार्टी अखबार भी निकालती है।
16वीं लोकसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी : अन्नाद्रमुक ऐसी पहली द्रविड़ियन और क्षेत्रीय पार्टी थी जो 1979 में प्रधानमंत्री चरण सिंह के मंत्रिमंडल में शामिल हुई। 16वीं लोकसभा में अन्नाद्रमुक तीसरी सबसे बड़ी पार्टी थी, जबकि राज्यसभा में इसके 11 सदस्य थे। पार्टी ने आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और केरल में भी हाथ आजमाने की कोशिश की, लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिली। 1980 में पार्टी को जब बड़ा झटका लगा, तब द्रमुक ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और 39 में से 37 सीटें जीतीं। अन्नाद्रमुक उस समय 2 सीटें ही जीत पाई थी।
एमजीआर के निधन के बाद उनकी पत्नी जानकी रामचंद्रन ने 98 एमएलए के साथ 24 दिन की सरकार चलाई। वे राज्य की पहली महिला मुख्यंमत्री बनीं। बाद में जानकी और जयललिता में राजनीतिक खींचतान भी चली क्योंकि दोनों ही खुद को एमजीआर का उत्तराधिकारी मानती थीं।
अटल बिहारी सरकार गिराई : जयललिता द्वारा समर्थन वापस लिए जाने के कारण ही केन्द्र में सत्तारूढ़ एनडीए की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार एक वोट से गिर गई। 2014 में जयललिता को भ्रष्टाचार के आरोप के चलते सुप्रीम कोर्ट द्वारा जमानत नहीं मिलने के कारण उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था और उनके स्थान पर पन्नीरसेल्वम को मुख्यमंत्री बनाया गया।
2016 में 134 सीटें जीतकर पार्टी फिर सत्ता में लौटी। जयललिता एक बार फिर राज्य की मुख्यमंत्री बनी। वे अंतिम समय तक मुख्यमंत्री पद पर रहीं। जयललिता के निधन के बाद पार्टी के नेता ओ पन्नीरसेल्वम राज्य के मुख्यमंत्री बने। 2021 के चुनाव में पार्टी सत्ता से बाहर हो गई। वर्तमान में इसके मुखिया ईके पलानीस्वामी हैं।