उत्तरप्रदेश की सियासत में प्रियंका की एंट्री के बाद अब कांग्रेस की पॉवर पॉलीटिक्स की झलक देखने को मिल रही है। देश के इस सबसे बड़े सूबे में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए प्रियंका हर उस प्लान पर काम कर रही हैं जिससे कि सूबे में कांग्रेस दोबारा खड़ी हो सके। प्रियंका के इस प्लान के बाद सूबे में सियासी समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। पहले जहां कांग्रेस के सपा और बसपा के गठबंधन की अटकलें लगाई गई, वहीं अब प्रियंका के नए दांव से सामने वाले दल के नेता हैरान हैं।
नए साथियों पर नजर- बसपा के कांग्रेस के साथ देश के किसी भी राज्य के किसी भी दल से किसी भी प्रकार के समझौता नहीं करने के ऐलान के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने बुधवार को अपने सियासी तरकश से नया दांव चला। मायावती के ऐलान के 24 घंटे के अंदर प्रियंका मेरठ जिला अस्पताल में भर्ती भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद से मिलने पहुंच गईं।
प्रियंका के चंद्रशेखर से मिलने के पहुंचने के बाद मेरठ से लेकर लखनऊ तक सियासी गलियारों में हड़कंप मच गया। चंद्रशेखर आजाद भीम आर्मी के नेता हैं जिसका पश्चिमी उत्तरप्रदेश में विशेष प्रभाव है। पश्चिमी उत्तरप्रदेश में दलित समुदाय में चंद्रशेखर की अच्छी पकड़ है।
पश्चिमी उत्तरप्रदेश के जातीय समीकरण को अच्छी तरह से जानने वाले कहते हैं कि इस इलाके में एसटी समुदाय के लोगों के बीच चंद्रशेखर, मायावती से अधिक पैठ रखते हैं। इससे साफ हो जाता है कि प्रियंका का ये दांव बसपा सुप्रीमो मायावती के कोर वोटबैंक में सेंध लगाने के लिए है। ऐसा नहीं है कि मायावती को इस बात का आभास नहीं है।
प्रियंका-चंद्रशेखर की इस मुलाकात के थोड़ी देर बाद लखनऊ में मायावती और अखिलेश के बीच एक बैठक होती है जिसमें निश्चित तौर पर प्रियंका के इस सियासी दांव पर चर्चा हुई होगी। प्रियंका मेरठ में मीडिया के सामने जिस तरह चंद्रशेखर की तारीफ करती हैं, उससे एक बात साफ है कि पश्चिमी उत्तरप्रदेश में भीम आर्मी कांग्रेस को अपना समर्थन देने जा रही है।
प्रियंका की चंद्रशेखर से मुलाकात को वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी सियासी मुलाकात बताते हुए इसे कांग्रेस की चुनावी रणनीति का हिस्सा मानते हैं। वे कहते हैं कि प्रियंका लगातार ऐसे लोगों से मिल रही हैं, जो अपने समुदाय में विशेष प्रभाव रखते हैं। प्रियंका की कोशिश है कि चुनाव में इन नेताओं का समर्थन कांग्रेस को मिल सके और वे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर बीजेपी को घेर सकें। प्रियंका से मुलाकात के तुरंत बाद चंद्रशेखर ने अस्पताल से ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान भी कर दिया। चंद्रशेखर कहते हैं कि मोदी जहां से भी चुनाव लड़ेंगे, वे मोदी को चुनौती देंगे।
पार्टी के पुराने कोर वोटबैंक पर नजर- उत्तरप्रदेश में प्रियंका की नजर कांग्रेस के उस पुराने ब्राह्मण और दलित वोटबैंक पर है, जो किसी समय कांग्रेस की ताकत हुआ करता था। 90 के दशक में जैसे-जैसे कांग्रेस का ये वोट बैंक कांग्रेस से छिटकता गया, सूबे में कांग्रेस की हालत खराब होती गई। पत्रकार त्रिपाठी कहते हैं कि यूपी में कांग्रेस पार्टी का बेस दलित और ब्राह्मण वोटर था और प्रियंका की कोशिश है कि ये बेस वोट फिर एक बार पार्टी के साथ आ जाए।
वे कहते हैं कि उत्तरप्रदेश में कांग्रेस ने सपा और बसपा को जो 2 बार समर्थन दिया, उससे नुकसान कांग्रेस को ही हुआ। कांग्रेस का वोटबैंक धीरे-धीरे बसपा और सपा में शिफ्ट हो गया और सपा और मायावती कभी नहीं चाहेंगी कि प्रदेश में कांग्रेस कभी अपने पुराने वोटबैंक से जुड़ सके। इसलिए मायावती ने कांग्रेस से किसी भी प्रकार के समझौते से इंकार कर दिया। यूपी में बसपा ब्राह्मण और दलित वोटबैंक की इसी सोशल इंजीनियरिंग के सहारे सत्ता तक पहुंच चुकी है।
असंतुष्ट और बागियों पर कांग्रेस की नजर- लोकसभा चुनाव में प्रियंका उत्तरप्रदेश में कुछ उसी तरह का फॉर्मूला अपना रही हैं, जैसा फॉर्मूला पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपनाया था। प्रियंका की एंट्री के बाद कांग्रेस में दूसरे दल के असंतुष्ट और बागी नेताओं की अचानक से एंट्री तेज हो गई है।
मार्च की शुरुआत में ही पार्टी में बसपा, सपा और बीजेपी के 3 बड़े नेता शामिल हुए जिसमें बहराइच से बीजेपी के टिकट पर सांसद चुनी गईं सावित्रीबाई फुले, सीतापुर से बसपा की पूर्व सांसद कैसरजहां और फतेहपुर से सपा नेता राकेश सचान।
इन तीनों ही नेताओं को कांग्रेस ने अपनी दूसरी सूची में जगह देते हुए इनकी सीटों से पार्टी का प्रत्याशी भी घोषित कर दिया। कांग्रेस की इस रणनीति से साफ है कि पार्टी इस बार सूबे में जीत का कोई भी मौका हाथ से नहीं देना चाहती। इसके साथ ही इन नेताओं को टिकट देने से आने वाले समय में कांग्रेस में ऐसे बड़े नेताओं की और एंट्री होगी जिनको अपनी पार्टी से टिकट नहीं मिला है।
कांग्रेस की इस रणनीति पर वरिष्ठ पत्रकार मनोज सिंह कहते हैं कि इस बार सपा और बसपा के गठबंधन के बाद दोनों ही पार्टियों में ऐसे बहुत से टिकट दावेदार हैं जिनको 5 साल काम करने के बाद ठीक चुनाव के समय हुए इस गठबंधन से मायूसी हाथ लगी है इसलिए अब वे टिकट के लिए ऐसी पार्टियों में संभावना तलाशेंगे, जो उनको टिकट दे सके।
कांग्रेस का इस वक्त उत्तरप्रदेश में इतना मजबूत कैडर नहीं है कि वो हर सीट पर मजबूत उम्मीदवार दे सके इसलिए वो दूसरी पार्टियों के ऐसे नेताओं को अपने साथ ला रही है जिन्होंने 5 साल चुनाव की तैयारी की है और वो अपनी सीट पर कांग्रेस को चुनावी मुकाबले में लाकर उसकी जीत की संभावना भी तलाश सके जिससे कि पार्टी का कैडर भी मजबूत हो सके।
पार्टी के कैडर को मजबूत करना- प्रियंका पूरी चुनावी रणनीति का खाका इस तरह तैयार कर रही हैं जिससे कि इस बड़े प्रदेश में पार्टी का एक मजबूत कैडर तैयार हो सके। उत्तरप्रदेश कांग्रेस से जुड़े नेता बताते हैं कि प्रियंका गांधी का पूरा फोकस बूथ को मजबूत करने पर है। वे बताते हैं कि प्रियंका की एंट्री के बाद पूरे प्रदेश में कांग्रेस कार्यकर्ताओं में एक नया जोश है और पिछले 1 महीने में करीब 10 लाख नए बूथ कार्यकर्ता पार्टी से जुड़े हैं।
कांग्रेस और प्रियंका की इस चुनावी रणनीति पर पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं प्रियंका की नजर लोकसभा चुनाव के साथ साथ 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों पर भी है। प्रियंका चाहती हैं कि बूथ पर कांग्रेस का वो पुराना कार्यकर्ता फिर से सक्रिय हो, जो सालों पहले पार्टी से निराश होकर घर बैठ गया था। इसके लिए प्रियंका हर जिले के नेताओं से पूरा फीडबैक लेकर संगठन को फिर से खड़ा कर रही हैं।
जमीनी मुद्दों पर फोकस- मोदी को चुनौती देने के लिए प्रियंका जमीनी मुद्दों पर फोकस कर रही प्रियंका जानती हैं कि बीजेपी और नरेन्द्र मोदी को उसके 5 साल के कामकाज के आधार पर ही घेर सकते हैं इसलिए प्रियंका ने अहमदाबाद में पार्टी वर्किंग कमेटी में जो अपना भाषण दिया, वो युवाओं की बेरोजगारी सहित उन मुद्दों पर था जिस पर बात करने से बीजेपी बचती नजर आती है।
पत्रकार त्रिपाठी प्रियंका की इस रणनीति को सही बताते हुए कहते हैं कि कांग्रेस को राष्ट्रवाद और एयर स्ट्राइक जैसे मुद्दों से बचकर कोर इश्यू पर चुनाव लड़ना चाहिए जिससे कि वो बीजेपी को घेर सके।