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अमित शाह चाहते हैं आडवाणी और जोशी की तरह अब आराम करें सुमित्रा जी

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अरविन्द तिवारी

इंदौर से उम्मीदवारी खोने के कगार पर खड़ीं लोकसभाध्यक्ष सुमित्रा महाजन की आस अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संघ के शीर्ष नेतृत्व पर टिकी हुई है। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह श्रीमती महाजन को फिर मौका देने के पक्ष में नहीं हैं। लोकसभाध्यक्ष ने पार्टी नेतृत्व के सामने दमदारी से अपनी बात रखी है। उनकी पैरवी कर रहे नेताओं ने नेतृत्व को स्पष्ट किया है कि जिस तरह का सलूक लालकृष्ण आडवाणी और डॉ. मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गज नेताओं के साथ हुआ है, वैसे ही दायरे में अगर उन्हें लाया गया तो भाजपा को इंदौर जैसी अपनी परम्परागत सीट पर नुकसान उठाना पड़ सकता है।

अपनी उम्मीदवारी के मुद्दे पर पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व के रुख से खफा ताई ने सार्वजनिक तौर पर तो चुप्पी साध रखी है, लेकिन पर्दे के पीछे जबरदस्त तरीके से सक्रिय हैं। वे मप्र के मामले में अहम भूमिका निभा रहे नेताओं के सामने अपनी बात दमदारी से रख चुकी हैं। उनका कहना है कि यदि नेतृत्व उन्हें इंदौर से फिर मौका देने का पक्षधर नहीं था तो उन्हें भरोसे में क्यों नहीं लिया गया।

नेतृत्व से संकेत मिलने के बाद ही ताई ने इंदौर में अपनी सक्रियता बढ़ाई थी और चुनाव तैयारियों में जुट गई थीं। ताई की नाराजगी पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय की अगुवाई में उनके खिलाफ सुनियोजित तरीके से अभियान चलाने और संगठन में जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों द्वारा इस पर चुप्पी साधे रहने पर भी थी।

पार्टी और संघ की एक बड़ी लॉबी ताई के साथ है। दोनों धड़ों का मानना है कि इंदौर जैसी सुरक्षित सीट पर जानबूझकर माहौल बिगाड़ा जा रहा है। सुनियोजित तरीके से यहां ताई को कमजोर बताया जा रहा है और ऐसा कहा जा रहा है कि इस बार पार्टी उन्हें टिकट देने के पक्ष में नहीं है। इसका असर यह होना है कि ताई के बजाय यदि कोई दूसरा नेता यहां से चुनाव लड़ता है तो उसे भारी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। यहां जो अस्थिरता की स्थिति बनेगी, उसका खामियाजा आसपास के लोकसभा क्षेत्रों में भी उठाना पड़ेगा। बरास्ता नागपुर दिल्ली तक यह संदेश पहुंच चुका है कि जिस तरह का व्यवहार पार्टी में ताई के साथ हो रहा है, उससे आम लोग भी खुश नहीं हैं।

इसी उठापटक के बाद केंद्रीय नेतृत्व ने इंदौर का फैसला अभी टाल दिया है। ताई को भरोसा है कि उनके मामले में प्रधानमंत्री की दखलांदाजी उन्हें फिर मौका दिलवा देगी। इधर विरोधी दावा कर रहे हैं कि इंदौर का फैसला पार्टी अध्यक्ष की टेबल पर ही होगा और वे प्रधानमंत्री को इस बात के लिए सहमत कर चुके हैं कि अब ताई को आराम का मौका दिया जाना चाहिए।

संघ की जो वजनदार लॉबी ताई की पैरवी में लगी है, वह किस हद तक पार्टी अध्यक्ष को प्रभावित कर पाएगी, यह कोई कहने की स्थिति में नहीं है। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय इस मामले में चुप्पी साधे बैठे हैं। उन पर यह आरोप पहले ही लग चुका है कि महाजन के विरोध का तानाबाना उन्हीं की शह पर बुना गया है। (इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है)

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