वायनाड। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के चुनाव लड़ने से भले ही केरल का वायनाड राजनीति नक्शे पर चमकने लगा हो लेकिन वहां के आदिवासियों के लिए अभी भी रोटी, मकान और हमलावर हाथियों से निपटना पहली प्राथमिकता है।
वायनाड जिले की करीब 18 प्रतिशत आबादी अदिवासियों की है। लोकसभा सीट के तहत दो विधानसभा क्षेत्र आते हैं, सुल्तान बतेरी और मनानतवाडी।
वायनाड के जंगलों में रहने वाले आदिवासियों में से एक का कहना है, 'हमारे पास मकान या छप्पर नहीं है। कोई सड़क नहीं है, पीने का पानी नहीं है। हमें उनसे (नेताओं) ज्यादा उम्मीद नहीं है।'
आदिवासी महिला का कहना है कि हाथियों से निपटना और उनके हमलों से बचना सबसे बड़ा मुद्दा है। उनका कहना है कि जंगलों के भीतर हमारे घरों में हाथियों के हमलों का डर रहता है। इस बार हम वोट नहीं देंगे। इन चुनावों में हिस्सा लेने का कोई फायदा नहीं है। इस क्षेत्र में सदियों से आदिवासियों का बसेरा रहा है। वायनाड के जंगल पनिया, कुर्म, अदियार, कुरिचि और कत्तुनाईकन आदिवासियों के घर हैं।
वायनाड में पिछले चार दशक से आदिवासियों के लिए काम कर रहे डॉक्टर जितेन्द्रनाथ ने बताया कि परंपरागत रूप से वायनाड आदिवासियों का घर रहा है। उन्हें कभी जमीन मालिक बनने की फिक्र नहीं रही, लेकिन अब वह अपने ही घर में बेघर हो गए हैं।
वायनाड सीट से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ एलडीएफ (वाम मोर्चा) ने भाकपा के पी. पी. सुनीर और राजग ने बीडीजेएस के तुषार वेल्लापल्ली को मैदान में उतारा है। (वार्ता)