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बिहार के बाहुबली पप्पू यादव क्या पूर्णिया से बन पाएंगे सांसद?

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विकास सिंह

, गुरुवार, 21 मार्च 2024 (15:01 IST)
बिहार के बाहुबली नेता और पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव अब कांग्रेस में शामिल हो गए है। बुधवार को पप्पू यादव ने अपनी जन अधिकार पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया। पप्पू यादव के बिहार के पूर्णिया लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतर सकते है। 2019 के लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव को मधेपुरा लोकसभा सीट से हार का सामना करना पड़ा था। 1991 में पहला लोकसभा चुनाव जीतने वाले पप्पू यादव चार बार लोकसभा पहुंच चुके  है।

लगभग साढ़े तीन दशक पहले 1990 में बिहारा के मधेपुरा के सिंहेश्वर विधानसभा सीट से चुनाव जीत कर अपनी सियासी पारी का आगाज करने वाले पप्पू यादव की गिनती बिहार के उस बाहुबली नेता के तौर पर होती है जिसके नाम का खौफ एक जमाने में बिहार से लेकर दिल्ली तक नेता खाते थे।। साल 1990 का बिहार एक ओर लालू यादव के मुख्मंत्री पद पर ताजपोशी का गवाह बन रहा था तो दूसरी और जरायम यानि अपराध की दुनिया के कई नामों के सियासी उदय होने का साक्षी भी बन रहा था। लालू यादव के साथ ही बिहार की राजनीति में बाहुबली पप्पू यादव का भी सियासी उदय होता है।  

बिहार में अस्सी के दशक में जिस जातीय टकराव की शुरुआत होती वह नब्बे के दशक आते- आते अपने चरम पर पहुंच जाती है। जाति के राजनीति के लिए पहचाना जाने वाला बिहार अब जातीय संघर्ष की आग में जलने लगा था। भूमिहारों और यादवों की जंग की धमक बिहार ही नहीं पूरे देश में सुनाई देने लगी थी। बिहार की पावन धरती एक के बाद नरसंहार से लाल होती जा रही थी। जातीय संघर्ष की इस जंग में भूमिहारों का नेतृत्व रणवीर सेना कर रह थी तो उसको चुनौती देने का काम पिछड़ों के नेता पप्पू यादव कर रहे थे जिन्होंने यादवों की अपनी अलग सेना का ही निर्माण कर डाला था। 

कोसी का बेल्ट जहां हर बारिश में कोसी नदी अपने रौद्र रूप में तबाही मचाती थी वह इलाका अब पप्पू यादव और रणवीर सेना के टकराव में गोलियों से अक्सर गूंजता था। कहा जाता है कि भूमिहारों और यादवों की जंग बिहार में गृहयुद्ध का रूप ले चुकी थी और उसको काबू में करने के लिए उस समय के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को बीएसएफ बुलानी पड़ी थी। 

जातीय संघर्ष के सहारे अपनी सियासी रोटियां सेंकने वाले पप्पू यादव लगातार राजनीति की सीढियां चढ़ने लगे। विधायक बनने के एक साल बाद ही 1991 मे पूर्णिया लोकसभा सीट से बतौर निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरे और चुनाव जीतकर संसद भी पहुंच गए। इसके बाद 1996 के लोकसभा चुनाव में भी पप्पू यादव पूर्णिया से फिर रिकॉर्ड तीन लाख से अधिक वोटों से जीत दर्ज कर संसद पहुंचे।   

सांसद बनने के साथ ही पप्पू यादव खुलेआम कानून का माखौल उड़ाने लगा। खाकी के पहरेदार उससे खौफ खाने लगे। यह वह दौर था जब पप्पू यादव ने एक डीएसपी को चलती कार के सामने धकेल दिया। पप्पू यादव पर ताबड़तोड़ हत्या और अपहरण के मामले दर्ज होने लगे। सत्ता से नजदीकी होने के चलते पुलिस भी भी पप्पू यादव पर हाथ डालने से डरती थी। आखिरकार मुख्यमंत्री लालू यादव के आदेश पर पप्पू यादव गिरफ्तार किया गया।   

पप्पू यादव का जेल जाना भी उसकी जिंदगी में एक अहम पड़ाव साबित हुआ। बांकीपुर जेल में बंद पप्पू यादव की मुलाकात विक्की से होती है और विक्की की बहन रंजीत को एक एलबम में टेनिस खेलते हुए तस्वीर देख पप्पू यादव उसे दिल दे बैठता है। जिस पप्पू यादव के नाम से पूरा बिहार थर्राता था वह रंजीत के प्यार में ऐसा दीवाना हुआ कि नींद की गोलियां खाकर खुदकुशी की कोशिश भी की। आखिरकार कांग्रेस नेता एसएस अहलूवालिया के दखल के बाद पप्पू यादव और रंजीत 1990 में शादी के बंधन में बंध गए। पप्पू यादव ने खुद इस वाकये का जिक्र अपनी आत्मकथा 'द्रोहकाल का पथिक' में भी किया है। 

यह वह दौर था जब पप्पू यादव के नाम से लोग खौफ खाते थे लेकिन वक्त बदलता है और 1998 के लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव पहली बार पूर्णिया से चुनाव हार जाते है। बाहुबली पप्पू यादव अपनी हार के लिए माकपा नेता अजीत सरकार को जिम्मेदार मानते है। अजीत सरकार पूर्णिया में काफी लोकप्रिय थे और चार बार विधायक का चुनाव जीत चुके थे।

इसी बीच जून 1998 को दिनदहाड़े माकपा नेता अजीत सरकार उनके ड्राइवर और एक साथी को पूर्णिया में गोलियों से छलनी कर दिया जाता है। अजीत सरकार की पोस्टमार्टम में उनके शरीर से 107 गोलियां निकलती है। कहा जाता है कि अजीत सरकार और उनके सथियों पर एके-47 से गोलियां बरसाईं गई थी। 

अजीत सरकार की हत्या का आरोप पप्पू यादव पर लगता है और पप्पू यादव को गिरफ्तार कर लिया जाता है। पप्पू यादव जेल जाने से बचने के लिए हर बार की तरह अपने पुराने हथकंडे अपनाता है लेकिन वह सलाखों के पीछे पहुंच जाता है। 

इस बीच 1999 में दिल्ली में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्त वाली सरकार गिर जाती है और पिर लोकसभा चुनाव होते है और पप्पू यादव एक बार फिर जेल में रहते हुए पूर्णिया लोकसभा सीट से चुनाव जीत कर संसद पहुंच जाता है। 

2004 का लोकसभा चुनाव पूर्णिया से हराने वाला पप्पू यादव जो उस वक्त लालू प्रसाद यादव का सबसे करीबी नेताओं में से एक माना जाता था उसकी किस्मत फिर बदलती है। 2004 के लोकसभा चुनाव में लालू यादव छपरा और मधेपुरा दो सीटों से लोकसभा चुनाव लड़ते है और दोनों से  ही जीत दर्ज करते है। लालू बाद में मधेपुरा सीट छोड़ देते है और उपचुनाव में पप्पू यादव मधेपुरा से चुनाव जीतकर फिर संसद पहुंच जाते है।

अजीत सरकार हत्याकांड में जमानत पर बाहर चल रहे पप्पू यादव की जमानत सुप्रीम कोर्ट से खारिज हो जाती है और पप्पू यादव बेऊर जेल भेज दिए जाते है लेकिन जेल में उसके ऐशोआराम में कोई कमी नहीं आती है। पप्पू यादव की बैरक पर छापा मारा जाता है और उसके जूते से मोबाइल फोन बरामद होता है जिसकी डिटेल में कई नेताओं के साथ तत्कालीन बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव के निजी सचिव के नंबर पर भी बात होने की डिटेल सामने आती है। जिसके बाद सुप्रीमकोर्ट के आदेश पर पप्पू यादव को दिल्ली की तिहाड़ जेल में शिफ्ट किया जाता है और जेल में पप्पू यादव पर अंकुश लगाने के लिए तिहाड़  जेल में पहली बार मोबाइल जैमर लगाया जाता है।   

अजीत सरकार हत्याकांड में 14 फरवरी 2008 में पप्पू यादव को पटना की सीबीआई कोर्ट में उम्रकैद की सजा सुनती है लेकिन इस मामले 2013 में हाईकोर्ट से पप्पू यादव को बरी कर दिया जाता है। हाईकोर्ट से बरी होने के बाद पप्पू यादव 2014 का लोकसभा चुनाव फिर मधेपुरा से आरजेडी के टिकट पर लड़ता है और राजनीति के दिग्गज शरद यादव को चुनाव हराकर फिर संसद पहुंच जाता है।

2015 में लालू यादव से विवाद के बाद पप्पू यादव आरजेडी से निकाल दिए जाते है और विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पप्पू यादव अपनी खुद की पार्टी जन अधिकार पार्टी बना लेते है,लेकिन चुनाव में उनकी पार्टी बुरी तरह हार जाती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव मधेपुरा से चुनाव हार जाते है।

बिहार में बाहुबली नेता के तौर पर पहचाने जाने वाले पप्पू यादव फिछले कई सालों से अपनी छवि बदलने की पुरजोर कोशिश में लगे है। पिछले साल जब बिहार की राजधानी पटना बाढ़ में डूब रही थी तब पप्पू यादव अपने टैक्टर पर सवार होकर लोगों का रेस्क्यू और उनको खाने पीने का इंतजाम कर रहे थे। इसके बाद इस साल जब कोरोना काल में बिहार में लोगों बड़ी संख्या में बेरोजगार हुए और रिकॉर्ड संख्या में प्रवासी मजदूर वापस आए तो उन्होंने लोगों की मदद करने का बीड़ा उठाकर रॉबिनहुड के तौर पर नजर आए। 
 


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