Rajgarh Lok Sabha Seat: मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) की उम्मीदवारी से राजगढ़ लोकसभा सीट देश की सबसे हॉट सीटों में शामिल हो गई है। 1952 से 2019 तक कांग्रेस ने इस सीट पर 9 बार जीत हासिल की, जबकि भारतीय जनसंघ (2), जनता पार्टी (2) और भाजपा (4) ने इस सीट पर 8 बार जीत दर्ज की है। राजगढ़ में भाजपा जहां मोदी की गारंटी के सहारे मैदान में है तो वहीं मप्र में अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह 77 साल की उम्र में लोकसभा क्षेत्र के गांव-गांव, गली-कूचे चुपचाप जनसंपर्क में लगे हैं।
पिछली बार 4 लाख से भी अधिक वोटों से जीते वर्तमान सांसद और भाजपा प्रत्याशी रोडमल नागर (Rodmal Nagar) मोदी के चेहरे पर इस चुनाव में भी पकड़ बनाए रखने की कोशिश में हैं। वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल के लिए वोट मांग रहे हैं। हालत यह है कि अब तक मुख्यमंत्री मोहन यादव और पूर्व सीएम शिवराज चौहान सहित देश के गृहमंत्री अमित शाह यहां कई सभाएं ले चुके हैं।
क्यों मुश्किल में हैं रोडमल नागर : इसकी बहुत बड़ी वजह है रोडमल नागर के खिलाफ दिखाई दे रही एंटी इनकम्बेंसी। जातिगत समीकरण भी निर्णायक हैं, खिलचीपुर से भाजपा के विधायक हजारीलाल दांगी की वजह से दांगी समाज का भाजपा की तरफ झुकाव दिखाई दे सकता है। नागर सभाओं में महिला मतदाताओं को ध्यान में रखते हुए राज्य में चलाई जा रही योजनाओं जैसे लाडली बहना योजना हो या फिर सामूहिक विवाह वाली योजना का जिक्र करना नहीं भूलते। लेकिन कांग्रेस लगातार उनके क्षेत्र से कटे रहने के मुद्दे पर हमलावर है। स्थानीय लोगों का भी मानना है कि वो चुनाव जीतने के बाद लोगों से कटे ही रहे।
दूसरी ओर कांग्रेस के प्रत्याशी दिग्विजय सिंह ने बूथ लेवल पर जोर देते हुए क्षेत्र में सघन जनसंपर्क के जरिए लगभग हर दिन 10 गांवों में पहुंचने का लक्ष्य रखा है। यही नहीं क्षेत्र में जातीय समीकरणों को देखते हुए राजगढ़ में सचिन पायलट और अशोक गेहलोत ने भी सभा कर कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
राजगढ़ के जातीय समीकरण : दूसरी ओर, सौंधिया समाज इस चुनाव में अहम भूमिका निभा सकता है। माना जा रहा है कि इस समुदाय के वोटरों का झुकाव कांग्रेस की तरफ हो सकता है क्योंकि सौंधिया समाज के नारायण सिंह अमलावे कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। दिग्विजय सिंह को मीणा समाज का समर्थन भी मिल सकता है, क्योंकि भाजपा से नाराज पूर्व विधायक ममता मीणा ने दिग्विजय को समर्थन देने की घोषणा की है। राजपूत समुदाय के वोटरों का झुकाव दिग्विजय सिंह की तरफ हो सकता है, जबकि किरार वोटर रोडमल का समर्थन कर सकते हैं।
दिग्विजय की पत्नी अमृता भी मैदान में : राजगढ़ की महिला वोटरों को लुभाने के लिए दिग्विजय सिंह की पत्नी अमृता सिंह भी गांव-गांव जाकर महिलाओं की बैठकें ले रही हैं। दिग्विजय के पुत्र और विधायक जयवर्धन तो पूरी ताकत से पिता का चुनाव प्रचार कर रहे हैं साथ ही छोटे भाई लक्ष्मण सिंह भी इस बार उनके साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। उल्लेखनीय है कि लक्ष्मण सिंह इस सीट पर भाजपा सांसद रह चुके हैं।
क्या चलेगा इमोशनल दिग्विजय का दांव : भाजपा द्वारा लगातार दिग्विजय पर सनातन विरोधी होने के आरोप और 32 साल बाद इस सीट पर लौटना दिग्विजय के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है। स्थानीय लोग बताते हैं कि राजगढ़ भले ही उनकी राजनीतिक कर्मभूमि रही हो लेकिन युवा मतदाताओं को जोड़ना उनके लिए बड़ी चुनौती होगी। हाल ही में दिग्विजय सिंह ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स फेसबुक और X के माध्यम से एक भावनात्मक पोस्ट साझा की है। उन्होंने इस चुनाव को अपने जीवन का आखिरी चुनाव बताया है।
हालांकि भाजपा के पक्ष में एक बात यह भी है कि 8 विधानसभा सीटों वाली इस संसदीय सीट पर 6 पर भाजपा का कब्जा है, जबकि राघौगढ़ और सुसनेर सीट पर कांग्रेस का कब्जा है।
राजगढ़ सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या 15 लाख 78 हजार 757 है। इनमें पुरुषों की संख्या 8 लाख 27 हजार 21 है, जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 7 लाख 51 हजार 717 है। राजगढ़ सीट पर इस बार चुनाव के नतीजे क्या होंगे, हार-जीत के अंतर और अन्य बातों पर नुक्कड़-चौराहों पर चर्चा गरम है, लेकिन कोई निश्चित रूप से कुछ नहीं कह पा रहा है। हां, एक बात सामने आई है कि 2014 और 2019 में भाजपा के रोडमल नागर भले ही विजेता रहे हों, लेकिन इस बार राजगढ़ में भाजपा की राह आसान नहीं है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala