लोकसभा चुनाव 2024: अब की बारी राहुल, अखिलेश, केजरीवाल पर एक अकेला कितना भारी
लोकसभा चुनाव में 370 सीटें जीतने के लक्ष्य से दूर रहेगी भाजपा
Lok Sabha elections 2024 News: लोकसभा चुनाव 2024 के लिए सभी दलों ने अपनी-अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी अलग-अलग राज्यों में सौगात देना शुरू कर दिया है। दूसरी ओर, विपक्षी दलों ने भी मोदी को घेरने के लिए अपनी रणनीति पर काम शुरू कर दिया है।
एक वक्त जो इंडिया गठबंधन पूरी तरह बिखरता दिख रहा था, अब उसके तार फिर से जुड़ना शुरू हो गए हैं। उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस का गठबंधन हो चुका है, वहीं दिल्ली, हरियाणा, गोवा और गुजरात में भी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच सीटों को लेकर सहमति बन गई है। हालांकि पंजाब में दोनों ही पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ने जा रही हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी या भाजपा के विजय रथ आगामी लोकसभा चुनाव में विपक्ष के लिए लगभग असंभव है। लेकिन, पिछले लोकसभा चुनाव में 303 सीटें जीतने वाली भाजपा ने इस बार 370 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है, जबकि गठबंधन को मिलाकर 400 से ज्यादा सीटें जीतने का टारगेट है।
जिस तरह से इंडिया गठबंधन में सहमति बनते हुए दिख रही है, भाजपा के लिए यह लक्ष्य हासिल करना आसान नहीं होगा। लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें जीतने का रिकॉर्ड राजीव गांधी के नाम है, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस ने 404 लोकसभा सीटें जीती थीं।
यूपी में कम हो सकती हैं भाजपा की सीटें : देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में इस बार भाजपा की सीटें कम हो सकती हैं। अखिलेश यादव और राहुल गांधी के साथ आने से ये दोनों ही पार्टियां पिछली बार मुकाबले अच्छा प्रदर्शन कर सकती हैं। भाजपा ने 2019 के चुनाव में 80 में से 62 लोकसभा जीती थीं, जबकि गठबंधन को मिलाकर 64 सीटों पर कब्जा किया था। वहीं समाजवादी पार्टी 5 सीटें जीतकर तीसरे स्थान पर रही थी। कांग्रेस 1 सीट पर ही सिमट गई थी।
जब अमेठी से हार गए थे राहुल गांधी : कांग्रेस के दिग्गज नेता राहुल गांधी अमेठी जैसी परंपरागत सीट को भी नहीं बचा पाए थे। इस बार सबसे ज्यादा नुकसान मायावती की बसपा को होता दिखाई दे रहा है क्योंकि विधानसभा चुनाव में भी यह पार्टी कुछ खास नहीं कर पाई थी। हो सकता है कि बसपा अपना पिछला प्रदर्शन भी न दोहरा पाए। पिछली बार बसपा ने 10 लोकसभा सीटें जीती थीं। राम मंदिर जैसे मुद्दे के बावजूद भाजपा के लिए पिछला प्रदर्शन दोहराने की बड़ी चुनौती होगी। वैसे हिन्दी पट्टी में इस बार भी भाजपा का जोर रहेगा।
बंगाल में बढ़ सकती हैं भाजपा की सीटें : चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर की मानें तो भाजपा के 370 सीट तक पहुंचने की संभावना नहीं है। हालांकि वह पश्चिम बंगाल में इस बार भी बहुत अच्छा प्रदर्शन कर सकती है। लोगों को भी इस 370 के लक्ष्य को सच नहीं मानना चाहिए।
उनके मुताबिक, 2014 के बाद 8-9 चुनाव ऐसे हुए जहां भाजपा अपने तय लक्ष्य हासिल नहीं कर पाई। मैं कह सकता हूं कि भाजपा अकेले 370 सीट हासिल नहीं कर सकती। इसकी संभावना करीब-करीब जीरो ही मानता हूं। हालांकि उनका मानना है कि संदेशखाली मामले के बाद बंगाल में भाजपा की लोकसभा सीटें बढ़ सकती हैं।
दिल्ली में रोचक मुकाबला संभव : आम आदमी पार्टी ने भी कांग्रेस से हाथ मिला लिया है। दिल्ली, हरियाणा, गोवा और गुजरात में उनके बीच सीटों को लेकर सहमति बन गई है। दिल्ली में वर्तमान में सातों सीटों पर भाजपा का कब्जा है, लेकिन राहुल और केजरीवाल के साथ आने से मुकाबला रोचक होने की पूरी उम्मीद है।
विधानसभा चुनाव में आप ने दिल्ली की 70 में से 62 सीटें जीती थीं। ऐसे में उन्हें पूरी तरह कमजोर आंकना गलत होगा। गुजरात के अलावा राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश ऐसे राज्य हैं, जहां 2019 में भाजपा ने सभी लोकसभा सीटें जीती थीं।
हालांकि गुजरात में भले ही आप और कांग्रेस का गठबंधन हो चुका है, लेकिन गुजरात में दोनों ही पार्टियों के लिए करने के लिए बहुत ज्यादा कुछ नहीं है। भरूच सीट को लेकर कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे स्व. अहमद पटेल के परिजनों ने बागी तेवर अपना लिए हैं।
2019 में भी भाजपा ने सभी 26 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार भी लोकसभा चुनाव में भाजपा का ही पलड़ा भारी रहने की पूरी संभावना है। हरियाणा में गठबंधन कुछ सीटें जीत सकता है। किसानों की नाराजगी का फायदा उसे मिल सकता है। पंजाब में भी नाराज किसान कांग्रेस और आप का समर्थन कर सकते हैं।
पंजाब में कांग्रेस को हो सकता है नुकसान : पंजाब में वर्तमान में भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की सरकार है, लेकिन लोकसभा चुनाव का परिदृश्य विधानसभा से अलग होगा। ऐसे में यह कहना मुश्किल होगा कि आम आदमी पार्टी विधानसभा चुनाव जैसा प्रदर्शन लोकसभा चुनाव में भी कर पाए। यहां कांग्रेस और आप अलग-अलग चुनाव लड़ेंगी, जबकि भाजपा और शिरोमणि दल साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। इसका फायदा उन्हें मिल सकता है।
पिछले चुनाव में पंजाब की 13 में से 8 सीटें कांग्रेस ने जीती थी, जबकि भाजपा और शिरोमणि अकाली दल ने 2-2 सीटें जीती थीं। आप सिर्फ एक सीट ही जीत पाई थी। पंजाब में कांग्रेस के लिए इसलिए भी मुश्किल होने वाली है क्योंकि कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुनील जाखड़ जैसे लोग कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। इसका नुकसान कांग्रेस को हो सकता है।
दक्षिण में भाजपा कमजोर : दक्षिण के राज्यों- कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और केरल में लोकसभा की कुल 129 सीटें हैं। केरल और तमिलनाडु मे भाजपा का कोई जनाधार नहीं है, जबकि कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में वह कुछ सीटें जीत सकती है। कर्नाटक में भाजपा का सबसे ज्यादा प्रभाव है। यहां भाजपा की सरकार भी रह चुकी है। कर्नाटक में लोकसभा की 28 सीटें हैं। सबसे ज्यादा 39 सीटें तमिलनाडु में हैं, जहां कांग्रेस का सत्तारूढ़ डीएमके के साथ गठबंधन है।
आगामी लोकसभा चुनाव में विपक्षी दल भाजपा को चुनौती देते हुए दिखाई नहीं दे रहे हैं। उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती खुद को मजबूत बनाए रखना होगी। क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को तीसरे कार्यकाल के लिए रोकना फिलहाल तो विपक्ष के लिए मुमकिन दिखाई नहीं देता।