पश्चिम बंगाल में आम चुनाव के अंतिम चरण में सबकी नजर प्रतिष्ठित कोलकाता दक्षिण लोकसभा सीट पर टिकी हुई है, जहाँ नैनो कार परियोजना के राज्य से हटने के बाद तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी की अपने ही किले में अग्निपरीक्षा होगी।
अपने समर्थकों के बीच दीदी के नाम से लोकप्रिय सुश्री बनर्जी का अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के रबिन देव से मुख्य मुकाबला है।
कहा जाता है कि जादवपुर और कोलकाता उत्तर निर्वाचन क्षेत्रों से सटी इस संसदीय सीट ने 1972 के बाद दो से अधिक बार किसी को संसद में नहीं भेजा, लेकिन सुश्री बनर्जी 1991 से यहाँ से पाँच बार जीत चुकी हैं।
...लेकिन इस बार बहुत कुछ बदला बदला सा है। हालाँकि सुश्री बनर्जी ने पूर्ण बदलाव की मतदाताओं से अपील की है, जबकि सत्तारूढ़ वाममोर्चा का प्रमुख घटक माकपा नैनो परियोजना के राज्य से हटने के लिए सुश्री बनर्जी को जिम्मेदार ठहराकर उन्हें बैकफुट पर लाने की ठान चुका है। परिसीमन से इस सीट का स्वरूप काफी बदल गया है और माकपा उससे उत्साहित है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रियरंजन दासमुंशी ने 1972 में तथा भारतीय लोकदल के दिलीप चक्रवर्ती ने जनता पार्टी की लहर में 1977 में यह सीट जीती थी। माकपा के सत्यसाधन चक्रवर्ती ने 1980 में इस सीट पर कब्जा जमाया था, जबकि कांग्रेस के भोला सेन तथा माकपा के विप्लव सेन ने क्रमशः 1984 और 1989 में इस संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीता था।
कोलकाता दक्षिण सीट से सन 1991 से चुनाव जीतती आ रहीं सुश्री बनर्जी का 1999 तक वोट प्रतिशत 52.46 से 59.37 के बीच रहा था। केवल 2004 के आम चुनाव में उनका वोट प्रतिशत घटकर 50 से थोड़ा अधिक रह गया, लेकिन परिसीमन के बाद इस सीट से चौरंगी, टालीगंज और सोनापुर जैसे वामविरोधी विधानसभा क्षेत्र निकल गए।
अब इस सीट में बेहला पूर्वी, बेहला पश्चिमी, कोलकाता पोर्ट विधानसभा क्षेत्र आ गए। कोलकाता पोर्ट में मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है।
इसके अलावा पहले इस लोकसभा की सात विधानसभा सीटों में से छह तृणमूल कांग्रेस के पास थीं, वहीं अब महज चार विधानसभा सीट ही तृणमूल कांग्रेस के पास हैं, जबकि तीन विधानसभा सीट माकपा के खाते में चली गई हैं।
इस लोकसभा क्षेत्र के स्वरूप में व्यापक बदलाव के बावजूद बनर्जी का करिश्मा तथा समझौता नहीं करने वाला व्यक्तित्व विपक्षी उम्मीदवार पर भारी पड़ सकता है। उधर, 2004 में मात खा चुके देव को मुस्लिम बहुल कोलकाता पोर्ट से काफी उम्मीद है।
बनर्जी के साथ एक और अच्छी बात है कि पिछली बार उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस इस बार उनके साथ है। हालाँकि भाजपा ने अपनी महिला शाखा की अध्यक्ष ज्योत्सना बनर्जी को इस सीट से चुनाव मैदान में उतारा है।
हालाँकि इस तरह के सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या सुश्री बनर्जी मतदाताओं के बीच अपनी छवि बनाए रख पाएँगी, क्योंकि युवा मतदाताओं पर नैनो प्रकरण ने गहरा असर डाला है।
टाटा को बनर्जी के आंदोलन की वजह से पश्चिम बंगाल से अपना नैनो संयंत्र अन्यत्र ले जाना पड़ा था। माकपा की प्रदेश समिति के सदस्य देव का दावा है कि नैनो प्रकरण से सुश्री बनर्जी की छवि को गहरा नुकसान पहुँचा है।
उन्होंने कहा इस बार उनके पास मतदाताओं को देने के लिए कुछ भी नहीं है। अब यह पूरी तरह स्पष्ट हो गया है कि वे केवल विध्वंस की राजनीति में विश्वास करती हैं।
सुश्री बनर्जी पिछली बार 98 हजार मतों के अंतर से चुनाव जीती थीं। हालाँकि तृणमूल कांग्रेस को पूरा विश्वास है कि सुश्री बनर्जी भारी मतों के अंतर से छठी बार संसद पहुँचेंगी।
उधर, माकपा ने इस सीट को जीतने के लिए दिन-रात एक कर रखा है। देव को जिताने के लिए पार्टी महासचिव प्रकाश करात, मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार जैसे माकपा के दिग्गज तीन दिनों तक यहाँ डेरा डाले रहे। यदि सुश्री बनर्जी हारती हैं या जीत में मतों का अंतर घट जाता है तो यह माकपा की नैतिक विजय होगी।