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कठिन डगर है अगले विदेश मंत्री की

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नई दिल्ली (नई दुनिया) , रविवार, 17 मई 2009 (14:00 IST)
सुनंदा राव

यूपीए की जीत के बाद नए विदेश मंत्री का पद संभालने वाले के सामने कई चुनौतियाँ होंगी। पाकिस्तान में तालिबान की मौजूदगी सहित पड़ोस का लगभग हर देश समस्याओं से जूझ रहा है। अमेरिका में बराक ओबामा के नेतृत्व में उसकी बदलती नीतियों को समझना और चीन की बढ़ती ताकत जैसे मुद्दों से निपटना इस समय तलवार की धार पर चलने से कम नहीं।

कहीं नेपाल और श्रीलंका में भारतीय विदेश नीति की कथित असफलता की बात हो रही है तो उधर अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान में तालिबान का मुकाबला करने जैसी चुनौतियाँ हैं। चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह ने कहा था कि भारत की स्थिरता के लिए जरूरी है कि पड़ोसी देशों में स्थिरता रहे।

विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार भारत की प्रगति के लिए जरूरी है कि पड़ोस में शांति हो। अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत नरेश चंद्रा के अनुसार अगर भारत अपने आसपास शांति चाहता है तो उसे दक्षिण एशिया में अपनी बड़ी ताकत वाली छवि से बाहर निकलना होगा। अगले विदेश मंत्री को विदेश नीति के मुख्य मुद्दों और राष्ट्रीय हितों के बीच तालमेल बैठाना होगा।

मुंबई हमलों के बाद से पाक के साथ संवाद रुका हुआ है। विदेश मंत्रालय में सूत्रों का मानना है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान में जारी अस्थिरता के कारण आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष नई सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।

परमाणु करार को आगे बढ़ाना आसान : भारत व अमेरिका के बीच परमाणु करार आगे बढ़ने का रास्ता साफ होता लग रहा है। हालाँकि बराक ओबामा चाहते हैं कि भारत परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करे। अमेरिकी अधिकारियों और कई सांसदों का मानना है कि अमेरिका भारत के साथ सामरिक रिश्तों को आगे बढ़ाना चाहता है और जल्द ही इस मामले पर ओबामा प्रशासन कोई नई घोषणा कर सकता है

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