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चुनाव में मददगार रिश्ते

अंतरजातीय विवाह बने मददगार

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जयपुर , शनिवार, 25 अप्रैल 2009 (10:45 IST)
-कपिल भट्ट
अंतरजातीय विवाह किसी और के लिए लाभकारी हो या नहीं चुनाव लड़ने वाले नेताओं के लिए जरूर फायदेमंद साबित हो सकते हैं। इसकी मिसाल राजस्थान में देखी जा सकती है जहाँ अपनी जाति से इतर वैवाहिक बंधन में बँधे नेताओं को अपनी जाति के साथ अपने जीवनसाथी के समुदाय का समर्थन भी मिल रहा है।

सचिन पायलट अजमेर लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। सचिन गुर्जर जाति के हैं। यहाँ गुर्जरों के वोट करीब सवा दो लाख होंगे। अपनी जाति के मतदाताओं के साथ ही सचिन के लिए यहाँ मुसलमान मतदाता भी सहारा बने हुए हैं। सारा जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की बहन और फारुक अब्दुल्ला की बेटी हैं। अब्दुल्ला परिवार मुसलमानों में प्रतिष्ठित भी है। अजमेर में मुस्लिम मतदाताओं की तादाद करीब सवा लाख मानी जाती है।

वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंतसिंह के लिए उनकी पत्नी निहारिका इन दिनों अपने भाईबंधों के बीच जाकर प्रचार करने में जुटी हैं। दुष्यंतसिंह जाट हैं जबकि निहारिका गुर्जर। अपनी जाति के मतदाताओं के बीच जाकर निहारिका कह रही हैं कि मैं गुर्जरों की बेटी हूँ। भाजपा के कार्यकर्ता भी गुर्जरों के बीच दुष्यंत को उनका दामाद, जीजाजी बताकर वोट माँग रहे हैं।

झालावाड़ में गुर्जर मतदाता बहुलता में हैं। यहाँ पर उनकी संख्या करीब पौने दो लाख से ज्यादा है। वैसे गुर्जर परंपरागत रूप में भाजपा के साथ ही रहते आए हैं। लेकिन गुर्जर आरक्षण आंदोलन की वजह से उनमें अपनी समधिन वसुंधरा राजे के प्रति नाराजगी पैदा हो गई थी।

अलवर लोकसभा क्षेत्र से भाजपा की उम्मीदवार किरण यादव को तो सहारा ही अपने ससुराली यादव मतदाताओं का है। किरण खुद पंजाबी हैं। जबकि उनके पति जसवंतसिंह यादव जाति के हैं।

अलवर यादव बहुल इलाका है जहाँ 1977 से नौ बार हुए चुनावों में से सात बार इस जाति का सांसद चुना गया है। उनके पति जसवंत यादव भी एक बार 1999 में लोकसभा के लिए चुने गए हैं। यादवों के साथ ही अलवर के पंजाबी मतदाता भी इस बार अपनी बेटी के लिए लामबंद होते नजर आ रहे हैं। अब देखना है कि अंतरजातीय वैवाहिक संबंधों से बने जातीय समीकरणों के सहारे ये उम्मीदवार अपनी चुनावी नैया को कितना पार लगा पाते हैं।

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